देश भर में मुसलमानों के वक्फ बोर्ड को लेकर डरावने समाचार व सूचनाएं मुख्य मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी आते रहते हैं। इसके आधार भी हैं और इसके पीछे तथ्य भी हैं। भारत सरकार के नागरिकता आदि संबंधी कुछ कानूनों पर मुस्लिम समुदाय की सांप्रदायिक प्रतिक्रियाएं और आंदोलन तथा हिंदू पर्वों पर पत्थरबाज़ी ने गैर मुस्लिम समाज और समुदाय के आम मन में अलगाव, द्वेष, डर, अविश्वास व राष्ट्रविरोधी छवि को बढ़ाया ही है। इसके साथ साथ ही वक्फ बोर्ड को लेकर धारणा भी भयावह बनती है, जिसमें कांग्रेस पार्टी की सरकार और राज्यवार क्षेत्रीय दलों की सरकारें भी प्रश्न के घेरे में हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 संपन्न होने के साथ 18वीं लोकसभा का गठन हो गया और नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली। भाजपा अकेले बहुमत नहीं पा सकी। इस अभियान में सबसे बड़ा रोड़ा मुलायम सिंह यादव परिवार की समाजवादी पार्टी बनी, जिसके सर्वेसर्वा मुलायम पुत्र अखिलेश यादव ने काफी दिमाग और मेहनत लगाया और 37 संसदीय क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। अखिलेश यादव का साथ पाकर राहुल गांधी भी 99 लोकसभा सीट जीत पाए।

मुलायम परिवार के समाजवादी पार्टी की जबरदस्त जीत से उत्तर प्रदेश के गांव गांव में एक दहशत फैल रही है कि भारतीय जनता पार्टी के बहुत कमजोर हो गई है, अपराध और गुंडाराज फिर आतंक मचाएगा। खासकर उत्तर प्रदेश में गुंडाराज को पालने पोसने वाली विपक्षी इंडी गठबंधन की समाजवादी पार्टी के बहुत संसद हो गए हैं जो माफिया अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी व अन्य अपराधियों के मौत पर शोक मानते हैं। इनके ताकत के बल पर तो अब वक्फ बोर्ड और भी मनमानी करेगा।

अब तो वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन पर दावे कर देगा तो वह उसकी हो जाएगी। क्योंकि समाजवादी कांग्रेसी उनके साथ हैं और उनका का भी उसमें हिस्सा होगा ! अगर कोई ऐसी अफवाह है तो यह सरकार का दायित्व है कि अधिकारी उससे जनता को उबारे। लेकिन हमारे यहां जातीय और सांप्रदायिक की तरह दहशत में वोट की फसल कटती हो तो भला ऐसा क्यों किया जाएगा? इसमें तो फायदा ही है।

असल में वक्फ बोर्ड एक सरकारी संस्था है, जिसके पदाधिकारी केंद्र या राज्य सरकारें नियुक्त करती है। यह संस्था किसी की जमीन पर दावा नहीं कर सकती है न उसे किसी से छीन सकती है। संविधान से परे शक्तियां तो छोड़िए, इसकी शक्ति किसी स्थानीय प्रशासन से भी इतर नहीं है। हालांकि सत्ताधारी और विपक्षी दोनों तरफ के लोग वक्फ को लेकर तमाम दहशत पहले भी फैलाते रहे हैं कि बोर्ड को असीमित पावर है, यह आपका हक है तो दूसरी ओर कि यह संविधान विरुद्ध है आदि आदि।

वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है सीमित करना या रोकना। कोई व्यक्ति अपनी किसी को सम्पत्ति को अगर अल्लाह के नाम पर दान कर देता है तो वह वक्फ में चली जाती है और वह सार्वजनिक हित मे काम आए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाती है। यह संपत्ति या जमीन मौखिक नहीं बल्कि लिखित में दान की जाती है कि यह संपत्ति वक्फ के लिए मैंने दी। उस पर कब्रिस्तान, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या कोई भी ऐसी चीज बनाई जा सकती है जो सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल की जा सके और हर नागरिक उसका लाभ उठा सके।

भारत मे 1954 में पहली बार वक्फ एक्ट पारित किया गया। वक्फ बोर्ड भारत सरकार द्वारा बनाया गया संगठन है और सरकार यह तय करती है कि कौन कौन इसमें सदस्य रहेगा। बोर्ड में सर्वे कमिश्नर होता है, जो संपत्तियों का लेखा-जोखा रखता है। इसके अलावा इसमें विधायक, सांसद, IAS अधिकारी, टाउन प्लानर, अधिवक्ता और समुदाय के बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल किये जाते हैं। वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। ट्रिब्यूनल में कौन शामिल होंगे, इसका फैसला राज्य सरकार करती है। इसके ज्यादातर पदाधिकारी मुस्लिम समुदाय से होते हैं क्योंकि वक्फ और दान मुस्लिम करते हैं।

वक्फ की जमीन बेची नहीं जा सकती। न तो उसे विरासत में दिया जा सकता, व्यक्ति दान देकर उसे वापस नहीं ले सकता कि यह हमारे बाप दादा की प्रॉपर्टी है इसे वापस दीजिए। इस संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता, लेकिन पट्टे पर दिया जा सकता है जिसमें दुकान बनाकर किराए पर लगाया जा सकता है। यह किसी भी मजहब तक सीमित नहीं है, स्कूल अस्पताल का लाभ सभी उठा सकते हैं। इस समय रक्षा और रेल मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है।

दिल्ली में वक्फ बोर्ड सैंकड़ों दुकानें बनवाए और किराए पर लगाया है। इनकी 80% दुकानें हिंदुओ ने मामूली किराए पर ले रखी है और अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं। वक्फ की जमीन मुस्लिम समुदाय के माफिया, अपराधी, दबंग और गुंडे मवाली ही कब्जा कर लेते हैं और उसे अपने मुताबिक निजी इस्तेमाल करते हैं। इसलिए बाद में 1995 में बने एक कानून में वक्फ बोर्ड को अतिरिक्त शक्तियां दी गईं।

वक्फ बोर्ड पर लगनेवाले आरोपों से अलग मुस्लिम संगठन इस बात का विरोध करते हैं कि सरकार ने अधिकार देने के नाम पर वक्फ बोर्ड पर कब्जा कर लिया है और मुस्लिम नेता इसका भरपूर दुरुपयोग भी करते हैं। मुस्लिम संगठन चाहते हैं कि इसमें सरकार का दखल बंद होना चाहिए।

लगने वाले आरोपों से अलग वक्फ बोर्ड किसी की जमीन पर कब्जा कर सकता है, हालत तो यह कि वक्फ बोर्ड को अपनी जमीन संभालना ही आफत हो रही है जिस पर गुंडों ने कब्जा कर रखा है। हर साल दानदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है जो चैरिटी में जमीन दान कर देते हैं कि उनकी सम्पदा का इस्तेमाल गरीबों, मजलूमो और जरूरतमंदों के लिए हो।

दूसरी बात, यह बोर्ड पूरी तरह सरकारी है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि योगी सरकार या शिवराज सरकार या मोदी सरकार है तो वक्फ बोर्ड में किनके लोग बैठे होंगे। तीसरी बात, वक्फ बोर्ड हिन्दू तो छोड़िए किसी मुस्लिम की जमीन पर भी दावे नहीं कर सकता कि वह उसकी जमीन है। वह केवल उस जमीन पर दावे कर सकता है जो उसकी अपनी जमीन है और किसी ने उस पर कब्जा कर रखा है जो उसे दान में मिली है।

अब सरकारों ने लैंड रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण किया है किसी भी सरकार का एक महान काम है, खासकर यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों के लिए। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का प्रयास है कि जमीन के नाम पर गांवों में चलने वाला खूनी संघर्ष रोका जाए, मुकदमे में बर्बाद हो रहे ग्रामीणों को बचाया जाए। ऐसा काम अगर वह कर ले गए तो यह मानवता के लिए बहुत महान होगा। ऐसे कार्य सभी राज्यों की सरकारें कर सकती है। इस डिजिटलीकरण में तमाम जमीनें सामने आ रही हैं जो किसी दूसरे की है और कब्जा किसी और ने किया हुआ है।

इसी डिजिटलीकरण के कारण वक्फ की बहुत सारी जमीनें निकली हैं जिन पर लोगों ने कब्जा जमा रखा है और उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। ज्यादातर कब्जेदार स्वाभाविक रूप से मुस्लिम हैं, हिन्दू का उसमें कोई मामला ही नहीं है। कहा जा सकता है कि आपकी जमीन योगी जी या मोदीजी द्वारा नियुक्त कोई वक्फ बोर्ड छीन नहीं सकता। चाहे आप हिन्दू हों या मुसलमान ! अरुण प्रधान/10 जून 2024

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