बिहार-के-सीमांचल-में-बदलती-डेमोग्राफी

बिहार-के-सीमांचल-में-बदलती-डेमोग्राफी

बिहार के सीमांचल जिलों की बदलती डेमोग्राफी देश के लिए ख़तरे की घंटी है। बिहार से पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) की गतिविधि और सीमांचल की बदलती डेमोग्राफी को संपूर्णता में देखने की जरूरत है।

आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सीमांचल के माध्यम से बिहार के राजनीति को साधने की कोशिश हो रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री श्री अमित शाह ने बिहार के सीमांचल से रैली कर राजनीतिक समीकरण साधने की कोशिश की है। उसके बाद महागठबंधन ने भी बिहार के सीमावर्ती इलाकों में रैली करने का लक्ष्य रखा है। इससे प्रमाणित होता है कि सीमांचल को राजनीतिक रूप से विभिन्न दल साधने में लगे हुए हैं।

किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिला सयुंक्त रूप से सीमांचल के नाम से जाने जाते हैं। यहां पर दशकों से बांग्लादेशी मुसलमानों का गैरकानूनी रूप से आकर बसना जारी रहा है। जिसके कारण यहां की डेमोग्राफी और इकॉनमी बुरी तरह प्रभावित हुई है। भारत में मुसलमानो की औसत आबादी 17 प्रतिशत है। वहीँ बिहार के सीमांचल में मुसलमानों की औसत आबादी लगभग 48 प्रतिशत है। पिछले जनगणना के अनुसार इन चारों जिलों की कुल आबादी 108 लाख है। जिसमें मुस्लिम आबादी 49 लाख है।

मुस्लिम आबादी किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 44.5 प्रतिशत, अररिया में 43 प्रतिशत तथा पूरनिया में 38.5 प्रतिशत है।

राजनीतिक रूप से बिहार के कुल 243 में से 17 विधायक यहाँ से चुन कर आते हैं। पिछले पांच चुनावों में यहां का मत प्रतिशत बिहार के औसत मत से पाँच प्रतिशत रहा है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि राजनीतिक रूप से बिहार को यहां से प्रभावित करने की कोशिश हो रही है।

बिहार के सीमांचल जिलों की बदलती डेमोग्राफी देश के लिए ख़तरे की घंटी है। बिहार से पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) की गतिविधि और सीमांचल की बदलती डेमोग्राफी को संपूर्णता में देखने की जरूरत है।

समर्थ बिहार की टीम ने सीमांचल का दौरा किया और वहाँ की वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की। लोगों ने जानकारी दी कि पिछले कई दशकों से राजनीतिक दलों ने केवल वोट बैंक की तरह उपयोग किया है और वहाँ की स्थित गैरकानूनी रूप से बांग्लादेशी लोगों के आने से भयानक होती जा रही है।

सीमावर्ती जिले बिहार के पिछड़े इलाकों में से प्रमुख है। यहां पर साक्षरता दर बिहार की कुल साक्षरता से लगभग आधी है। पोठिया नामक प्रखण्ड बिहार का ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे पिछड़ा प्रखण्ड है।

सीमांचल में प्रति व्यक्ति आय 10,000 रुपया है जबकि बिहार का प्रति व्यक्ति आय 14,574 रुपया है। यहां पर 50 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के निचे हैं।

किशनगंज मिनी पाकिस्तान बन गया है। पूर्णिया जिला के अंदर पाकिस्तान नाम का एक गाँव भी है।

प्रश्न यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
UPA सरकार इस सन्दर्भ में उदासीनता से पेश आई। NDA की सरकार भाजपा के नेतृत्व में केन्द्र में 2014 से शासन में है। इसके पहले भी शासन में रही है। बिहार में नीतीश कुमार के साथ 15 वर्षों तक शासन में रही है। इसके वावजूद भी कोई ठोस पहल नहीं की गई। NRC की बात केवल चुनाव के समय होती है। बिहार में सरकार चला रही, कभी भाजपा की भागीदार रही JDU ने NRC के मुद्दा पर अपना स्टैंड स्पष्ट किया कि वो बिहार में रह रहे सभी को बिहारी मानती है। उसके लिए बांग्लादेशी कोई मुद्दा नहीं है।

लोगों के अनुसार बिहार में भाजपा ने सत्ता में बने रहने के लिए अपने को जदयू के सामने समर्पण कर दिया था। नतीजे के रूप में सीमांचल में जनसांख्यिकी की बदलती स्थित को रोकने के लिए कोई असरदार कारवाई नहीं हुई।

लोगों ने कहा कि राजनीतिक सन्दर्भ में JDU के लिए अपने वोट बैंक के राजनीतिक लाभ के लिए न तो NRC कोई मुद्दा है, न ही बांग्लादेश से आये घुसपैठिये।

लोगों ने यह भी बताया कि प्रशांत किशोर जो कि अब बिहार के लिए जनसुराज की बात कर रहे हैं, उनकी राष्ट्रिय सोच नहीं है। जब वे JDU में थे तो उन्होंने CAA तथा NRC का विरोध किया था और इस मुद्दे पर बहुत ही मुखर थे। प्रशांत किशोर शुध्द रूप से एक व्यवसायी है और पैसे के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए काम किया है।

उनकी बिहार के लिए कोई प्रतिबद्धयता नहीं है। अभी भी जब वे कह रहे हैं कि वे पूरा समय बिहार की समस्या का समाधान ढूढने में देंगे, तो दूसरी ओर प्रशांत किशोर तेलंगना में के.चंद्रशेखर राव KCR के लिए चुनावी आंकडे इकठा कर राव को तेलंगाना का अगला मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम कर रहे हैं।

प्रशांत किशोर की भूमिका को प्रेक्षक संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। NRC आदि मुद्दे पर नीतीश से अलग होना, पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक आधार पर समीकरण बनाकर ममता को मदद करना, बंगलादेशी वोटरों के महत्त्व को राजनीतिक दलों को बताना, जाती-वर्ग और समुदाय की राजनीति से धीरे-धीरे विमुख हो रहे बिहार में लालू-नीतीश का गठजोड़ कराकर इसे बिहार में संस्थागत/स्थाई करना प्रशांत किशोर की देन है। जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने आज तक सार्वजनिक रूप से राष्ट्र और सनातन धर्म शब्द का प्रयोग नहीं किया है।

राजनीतिक रूप से काम कर रहे एक आदमी ने बताया कि एक राजनीतिक दल द्वारा ओवैसी की पार्टी को तथाकथित रूप से पीछे से दिया गया सपोर्ट मुस्लिम वोटों को बाँटकर चुनावी लाभ लेना, आगे चलकर राष्ट्रहित मे नुकसानदायक होगा। अब ओवैसी की पार्टी ने कश्मीर की तरह सीमांचल में 371 का माँग करने लगा है। जिस तरह केन्द्र की गलत नीति के कारण कश्मीर का मुद्दा जटिल हो गया, उसी प्रकार सीमांचल का मुद्दा भी धीरे-धीरे जटिल होता जा रहा है।

सीमांचल में लैंड जिहाद जारी है। हवाला के माध्यम से पैसा आ रहा है और जमीन मुस्लिम समुदाय के हाथ में जा रहा है।

समर्थ बिहार सीमांचल के मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों को सीधे चुनौती देगा और बिहार में एक वैकल्पिक राजनीतिक दल की कवायद को आगे बढ़ाएगा। समर्थ बिहार सीमांचल पर एक श्वेत पत्र जारी करने का प्रयास करेगा। (समर्थ बिहार के सीमांचल दौरे के आधार पर संकलित)

S.-K.-Singh-and-Sanjay-Kumar
S.K. Singh and Sanjay Kumar

एस के सिंहसंजय कुमार (समर्थ बिहार)

2 thoughts on “बिहार के सीमांचल में बदलती डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी), जिम्मेदार कौन?

  1. भारत में रहने वाले मुस्लिमों को किसी ने ये समझाने का प्रयास ही नहीं किया कि विश्व में भारत ही एक ऐसा देश हैं जहां इस्लाम के मानने वाले सभी मतों के लोग एक साथ रहते हैं और ये घुसपैठिए इस्लाम की समरसता को यहाँ आ कर ख़त्म करेंगे । केवल बहुसंख्यक का भय दिखा उनको radicalise किया गया । ईमानदार पहल की ज़रूरत है ।
    भाजपा नागनाथ को निबटाने के फेर में सांपनाथ के साथ १७ बर्श उलझ कर रह गयी ।

    1. हमारे देश की राजनीति व्यवस्था बदलने के मुद्दे पर अराजकतावादी, जातिवादी, पहचानवाद पर केंद्रित हो जाती है। जिससे राजनीतिक-सामाजिक भ्रष्टाचार की जड़ें और भी गहरी और फैल जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *