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श्रीनगर के मिर्जा कामिल चौक पर बिहार के कारीगरों और मज़दूरों का सुबह 8.0 बजे से ठेकेदारों द्वारा दिन भर के लिए काम पर रखा जाता है। तो बिहार ने अपने कामगार को कश्मीर पहुँचाने के लिए ट्रेन चला रखी है। अंतर यह है कि कश्मीरी पंडितों के पलायन पर काश्मीर फाइल्स बनी। लेकिन बिहार के बुद्धिजीवी और मजदूरों के पलायन पर बिहार फाइल्स बनना शेष है।

बिहार और काश्मीर के राजनीतिक हालात एक जैसे हैं। हो भी क्यों न, यद्धपि बिहार की आबादी जम्मू-काश्मीर की आबादी से 11 गुना ज्यादा है। दोनों जगह सरकारी कर्मचारियों की संख्या लगभग बराबर है। बौद्ध धर्म अपने समय में बिहार और काश्मीर को लगभग समान रूप से प्रभावित किया है। सम्राट् अशोक ने काश्मीर की राजधानी श्रीनगर को व्यवस्था दी और वैभवशाली बनाया। दोनों राज्यों में निजी क्षेत्र में भी रोजगार की कमी है। क्योंकि राजनीतिक स्थिरता नहीं होने से निवेश और व्यापार बाधित है।

पिछले कई वर्षों से बिहार और काश्मीर में दलों का राजनीतिक गठबंधन बदलता रहा है। काश्मीर में धारा 370 के हटने के विरोध में राजनीतिक दलों में अपने को आगे दिखाने की होड़ लगी हुई है। तो बिहार में पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों का उद्धारक दिखने और अपने पारिवारिक पार्टी के लिए राजनितिक सत्ता हड़प लेने की होड़ है।

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काश्मीर की राजनीति विशेष दर्जा प्राप्त होने के कारण प्रभावित थी। तो बिहार की राजनीति राज्य के अब तक के उपलब्ध संसाधनों को लेकर विकास के वजाय, अब विशेष राज्य का दर्जा न मिलने के केंद्र सरकार पर दोषारोपण की ही चल रही है।

काश्मीर में नेशनल कॉन्फरेंस और पीडीपी पर परिवारवाद का आरोप है। तो बिहार में राजद, लोजपा और अन्य पर परिवारवाद का आरोप है। काश्मीर में भाजपा का गठबंधन पीडीपी के साथ नहीं चल पाने से नये समीकरण की तलाश है। तो बिहार में भाजपा का गठबंधन जदयू से टूटने से नये समीकरण की खोज जारी है। आर.सी.पी. सिंह का जदयू से अलग होना और गुलाम नवी आजाद का कांग्रेस से अलग होना समान रूप से देखा जा रहा है।

काश्मीर में उग्रपंथी विचार वाले छोटे दल सत्ता में आने की फिराक में है। तो बिहार में माओवादी दल भी उसी ताक में है।

काश्मीर में काश्मीर के पंडितो को वहां के अराजक-आतंकी संगठनों के कारण काश्मीर से भागना पड़ा। तो बिहार में बिहार के मेहनतकश और बुद्धिजीवी वर्ग को बिहार में अवसर की कमी और सरकार की उदासीनता के कारण बिहार से बाहर पलायन करना पड़ा।

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काश्मीर में आतंकी संगठनों का जमघट है, तो बिहार में अब पीएफआई ने जाल फैला रखा है। कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को सहयोग मिला, तो बिहार में चीन का वैचारिक सहयोग माओवादियों को मिलता रहा है। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसन्हार और बिहार में माओवादियों द्वारा किये गए नरसन्हार में समानता है।

कश्मीर में कश्मीरियत का मुद्दा उछाला जाता रहा, तो बिहार में जाति आधारित शोषण और आरक्षण का मुद्दा जारी रहा। कश्मीर के राजनीतिक दल अपने को सत्ता में बने रहने के लिए उग्रवाद के साथ साठगांठ करते रहे हैं। बिहार में राजनीतिक दलों ने जातिवादी पारिवारिक दलों और माओवादियों के साथ मिलकर राजनीतिक गठबंधन बनाया।

श्रीनगर के मिर्जा कामिल चौक पर बिहार के कारीगरों और मज़दूरों का सुबह 8.0 बजे से ठेकेदारों द्वारा दिन भर के लिए काम पर रखा जाता है। तो बिहार ने अपने कामगार को कश्मीर पहुँचाने के लिए ट्रेन चला रखी है। अंतर यह है कि कश्मीरी पंडितों के पलायन पर काश्मीर फाइल्स बनी। लेकिन बिहार के बुद्धिजीवी और मजदूरों के पलायन पर बिहार फाइल्स बनना शेष है।

अंतर यह भी है कि कश्मीर की सरकार कश्मीरी पंडितो को वापस बुलाने की कोशिश कर रही है। लेकिन बिहार की सरकार को बिहार से बाहर गये बिहार के मेहनतकशों और बुद्धिजीवियों को बुलाना बाकी है। बिहार को भी एक विवेक अग्निहोत्री की जरूरत है। जो बिहार के मेहनतकश आबादी और बुद्धिजीवी वर्ग के पलायन का सिनेमा के माध्यम से चित्रण करे।

इतिहास अपने आप को दोहरता है। कोई विस्मय नहीं होगा कि काश्मीर और बिहार के चुनावी परिणाम एक दूसरे को प्रभावित करें। आखिर दोनों राज्यों का सदियों पुराना सम्बन्ध है।

एक बिहारी सब पर भारी ! इसको चरितार्थ किया है बिहार के मोतिहारी के एक व्यक्ति ने। उसने काश्मीर में जम्मू-काश्मीर नेशनलिस्ट पिपुल फ्रंट नाम से एक राजनीतिक दल बना कर लम्बे समय से उपस्थित सभी राजनीतिक दलों को सीधे चुनौती दी है।

बिहार में भी आवश्यकता है, एक ऐसे ही प्रयास की, जो यहां के आशा के अनुरूप वर्तमान तुष्टीकरण की राजनीति से छुटकारा दिलाकर बिहार को समृद्ध बनाए। समर्थ बिहार राज्य में एक ऐसे वैकल्पिक राजनीतिक संगठन देने की कवायद को आगे बढ़ाने हेतु प्रयास करेगा।(यह लेखक के निजी विचार हैं)

-एस. के. सिंह (समर्थ बिहार)

4 thoughts on “बिहार फाइल्स कब बनेगा : एस के सिंह

  1. तर्क के साथ अच्छी जानकारी आपने इस लेख के साथ दिया है।

    1. बिहार को सही इतिहास के साथ प्रस्तुत करना एक बड़ी जिम्मेदारी है।

  2. बहुत ही अर्थपूर्ण तर्क।
    बिहार की मृत पड़ी गाथा को फिर से जीवित करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है की हम सभी बिहार वासी जाति धर्म, अगड़ी पिछड़ी के मायावी जंजाल से ऊपर उठकर बिहार को बनाने में योगदान दें।
    बहुत बहुत धन्यवाद।

    1. बिहारवासी और बिहार की चिंता करने वालों को इस मुद्दे पर सचेतन सक्रिय होना होगा।

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