बिहार में MY-BAAP, लव कुश और कमल दल का रहस्य क्या है ?

बिहार में MY-BAAP, लव कुश और कमल दल का रहस्य क्या है ?

बिहार में जन विश्वास यात्रा की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी के लिए एक नया नारा पेश किया है। एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने राजद को “MY-BAAP की पार्टी बताया। उन्होंने बताया कि BAAP का मतलब है बहुजन (पिछड़े और दलित), अगड़ा (फॉरवर्ड, आधी आबादी (महिला), पिछड़ा और गरीब। उन्होंने कहा कि लोग अक्सर इसका जिक्र करते हैं। राजद को MY (मुस्लिम-यादव) पार्टी के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। इसका समर्थन आधार MY-BAAP को शामिल करते हुए बहुत व्यापक है। जबकि तथ्य यह है कि हाल के विश्वास मत में उच्च जाति के 2 विधायकों और यादव समुदाय के एक विधायक ने पाला बदल लिया। फिर से राजद के एक विधायक समेत 2 कांग्रेस विधायकों ने पाला बदल लिया है और इससे संकेत मिलता है कि बिहार में राजद की जातिवादी राजनीति की हार हो रही है।

राजनीतिक टिप्पणीकारों ने प्रतिक्रिया दी है कि राजद इस अर्थ में MY-BAAP की पार्टी है, क्योंकि यह लालू यादव और राबड़ी यादव द्वारा शासित है। लोग अच्छी तरह जानते है कि जो पार्टी लालू- राबड़ी के 15 साल के कुशासन और जंगलराज के लिए जिम्मेदार थी, वह अपने भविष्य के कल्याण के एजेंडे के लिए MY-BAAP से आगे नहीं सोच सकती। उम्मीद थी कि अब ये क्षेत्रीय दल जातीय तुष्टिकरण से बाहर आकर नए बिहार के कथानकों के अनुरूप घोषणापत्र पेश करेंगे। दुर्भाग्य से आगामी लोकसभा चुनाव में फिर से जातीय समीकरण और गठबंधन परिभाषित हो रहा है। यहां यह बताना अप्रासंगिक नहीं होगा कि नीतीश से अलग हुए उपेन्द्र कुसवाहा ने फिर से कुर्मी कुशवाहा (लव कुश) वोटों को एकजुट करने के मकसद से अपना नरम रुख दिखाया।

लवकुश, पिछड़ा-दलित, अगड़ा-पिछड़ा ये शब्द बिहार की राजनीति का पर्याय बन गए हैं। ये पार्टियां बिहारियों के विकास की कहानी पर बात क्यों नहीं कर पाती ? कोई पटना से अन्य राज्यों के लिए स्लीपर क्लास में आरक्षित ट्रेन टिकट बनाता है, कोई भी यह महसूस कर सकता है कि अपनी आजीविका के लिए राज्यों से बाहर जाने वाले बिहारियों की भीड़ के कारण स्लीपर क्लास सामान्य श्रेणी से भी बदतर है। वहां माय-बाप, लव-कुश, अगडा पिछड़ा का कोई भेद नहीं, उनकी एक ही पहचान है और वो है बिहारी।

बिहार के सियासी गलियारे में कोई आख्यान क्यों नहीं है कि काम की तलाश में कुशल जनशक्ति की दुर्दशा कैसे रोकी जाए ? और बिहार अपने राज्य में ही काम के अवसर क्यों नहीं उपलब्ध करा पा रहा है ? कारण बहुत सरल है- राजद, वामपंथी, जदयू जैसी पार्टियां गरीबी से बाहर निकलने के लिए जातिवादी जनगणना जैसी ऐसे मानक को परिभाषित करती है ताकि लोग इन आख्यानों के पीछे पड़ जाते हैं और बिहार के राजनीतिक दल छोटे और वृद्दिशील विकास कार्यों को पहले की स्थिति के संदर्भ में प्रदर्शित करते हैं। दूसरी ओर कमलदल पर सवार भाजपा जैसी पार्टियां गुप्त रूप से यथास्थिति बनाए रखना चाहती है, ताकि बिहार से बाहर जाने वाली कुशल जनशक्ति राष्ट्रीय स्तर पर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सर्वोतम योगदान दे सके।

बिहार में नई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जैसे ही नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की सत्ता में आने का एक महीना पूरा हुआ, नीतीश की प्रमुख सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राजद और कांग्रेस के विधायकों को दलबदल कराने में जोर-शोर से लगी हुई है। भाजपा अपनी नैतिक स्थिति को नजरअंदाज कर रही है। और हर तरह की चाले चल रही है जैसा कि वह अन्य राजनीतिक दलों पर आरोप लगाती थी।

बिहार के राजनीतिक दलों के बीच लगातार गठबंधन में बदलाव को देखते हुए 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले जाति समीकरण से परे राजनीतिक कथानक को फिर से स्थापित करना और नए राजनीतिक स्टार्टअप के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करना अनिवार्य है। समर्थ बिहार 2025 चुनाव से पहले नए राजनीतिक स्टार्टअप का हिस्सा बनने के लिए कार्यरत है। – संजय कुमार एवं एस. के. सिंह, समर्थ बिहार

Sanjay Kumar & S K Singh
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