नई दिल्ली : जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी JNU में ‘सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में अतिपिछड़ा-पसमांदा सवाल और रोहिणी कमीशन, जाति जनगणना तथा हिस्सेदारी‘ विषय पर व्याख्यान ‘सामाजिक न्याय दावेदारी मंच’ के तत्वाधान में 31 अगस्त 2022 को आयोजित किया गया था।
इस व्याख्यान कार्यक्रम ‘सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में अतिपिछड़ा-पसमांदा सवाल और रोहिणी कमीशन, जाति जनगणना तथा हिस्सेदारी‘ पर विषय प्रवेश और मंच संचालन JNU के रिसर्च स्कॉलर सहित छात्र नेता वीरेंद्र कुमार ने किया।
इस विषय के वक्ता थे यूपी सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, बिहार से जदयू के पूर्व राज्यसभा सांसद और आल इंडिया पसमांदा महाज के राष्ट्रिय अध्यक्ष अनवर अली अंसारी, इंडियन नेशनल कांग्रेस से लोकसभा और राज्यसभा सांसद तथा कांग्रेस सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरमैन मधुसूदन मिस्त्री, भाजपा के कुरुक्षेत्र, हरियाणा से पूर्व सांसद और लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष राजकुमार सैनी।
मंच संचालन करते हुए JNU शोध छात्र और छात्र नेता वीरेंद्र कुमार ने विषय प्रवेश कराया। इस व्याख्यान कार्यक्रम में ओमप्रकाश राजभर और मधुसूदन मिस्त्री किन्ही इमरजेंसी कारणों से शामिल नहीं हो पाए।
विषय प्रवेश कराते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा कि मौजूदा सरकार अतिपिछड़ों और पसमांदा सवालों को लेकर बिल्कुल भी गम्भीर नहीं है तथा दोहरी नीति अपनाए हुए है। जिसका उदाहरण ओबीसी रिजर्वेशन के वर्गीकरण को लेकर 2017 में बनी जस्टिस रोहिणी कमिटी का अब तक रिपोर्ट नहीं आ पाना है। रोहिणी कमिटी को अब तक 10 बार एक्सटेंशन मिल चुका है। फिर भी रिपोर्ट नहीं आ पायी है।
पिछड़ों, अतिपिछड़ों, पसमांदा के आर्थिक सामाजिक स्थिति और जनसंख्या को जानने के लिए जाति जनगणना बहुत ही जरूरी है। लेकिन सरकार लगातार जाति जनगणना के सवाल से पीछे भाग रही है। और, ये तब हो रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आप को पिछड़ी जाति से बताते है। वे पिछड़ों को बरगला कर सिर्फ वोट प्राप्त करने के लिए अपने आप को पिछड़ों का रहनुमा बताने से नहीं थकते, इस तरह की रहनुमाई एकदम फर्जी ढकोसला है।
एक तरफ भाजपा पसमांदा स्नेह यात्रा निकालने की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ मोब लिंचिंग और समाज में नफरत का माहौल पैदा कर पसमांदा समाज को पीछे ढकेलने के साथ साथ एक डर में रहने को मजबूर कर रही है।
अतिपिछड़े और पसमांदा जातियों का रिप्रजेंटेशन भी देखा जाय तो वो जॉब हो या विधानसभा या संसद सभी जगहों बहुत कम है। इसलिए इसके हिस्सेदारी को मुक्कमल बनाने के लिए सरकार के खिलाफ लगातार आंदोलन की जरूरत है।
व्याख्यान के वक्ता राज कुमार सैनी ने व्याख्यान दिया कि … मुझे 28 साल हो गए आप सब के लिए लड़ते हुए। … सामाजिक भेदभाव के खिलाफ बंशी लाल और ओम प्रकाश चौटाला हरयाणा में मंत्री पद छोड़ दिया। … अपने समाज के लोगों को हिस्सेदारी 10-10 % से ज्यादा नहीं मिलती है। 10% से आगे दलित को नहीं और 10% से आगे पिछड़े को नहीं मिलती। जब 3200 मास्टर लगते हैं, जिसमे 70% लोग SC, BC के लोग मेरिट में आते हैं, तब मेरिट लिस्ट फाड़ दिया जाता है और वहां अपने लोगों को लगाया जाता है। यह भेदभाव चरम पर पहुँच चूका है। पिछले दिनों हरयाणा का हाल आपसब ने देखा है। …
… देश के अंदर 25 हाई कोर्ट और एक सुप्रीम कोर्ट है। गूगल पर सर्च करेंगे तो न्यायलय में कितने OBC जज हैं, मिलेगा नहीं। उन्होंने डाली ही नहीं। पूरे देश में एक भी OBC का सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में जज नहीं है। 18 जज हैं, जिसमे SC, ST हैं और एक-दो मुस्लिम है। 600 जजों में 18 जज यानि 3% हैं… । … देश का विदेश में राजदूत एक भी दलित-पिछड़े से नहीं है… । ब्राह्मण, क्षत्रिय, पंजाबी, वैश्य और सवर्ण को आरक्षण दो। हमें आरक्षण नहीं चाहिए, हमें हमारा हिस्सा दे दो, जनसँख्या के अनुपात में। उसी दिन यह देश आगे चलने लगेगा… ।…
जदयू से निष्कासित सांसद और पसमांदा महाज के नेता अनवर अली अंसारी ने अपने व्याख्यान में कहा कि … पसमांदा के लिए जो बात हो रही है उसमे मेरी बात यह है कि पसमांदा के लिए भी एक शब्द तलाशा जाये जो सटीक हो, जो धर्म सूचक नहीं हो। जो जाति सूचक भी नहीं हो। …
… मैं इस बात का कायल रहा हूँ कि धर्म को सियासत से अलग करना चाहिए। धर्म और सियासत का घालमेल नहीं होना चाहिए, नहीं तो इसके बड़े दुष्परिणाम होते हैं। और, हमारे लोग ज्यादा ही धार्मिक होते हैं…।
कयूम अंसारी साहब, जो पिछड़ी जातियों की स्थिति की जानकारी के लिए पहला आयोग बना था, ‘काका कालेलकर आयोग‘ के एक सदस्य थे, मोमिन कांफ्रेंस चलाते थे। बिरादरियों की अलग अलग जमातें पंचायतें थी उस समय, जो हिन्दू समाज में भी होता है…।
… पसमांदा शब्द चलाया। साल 1998 में मैंने एक संगठन बना कर ‘ऑल इंडिया पसमांदा महाज’, काम शुरू किया। पसमांदा एक निरूपित वर्ग (denote class) है। पसमांदा नाम का कोई मजहब नहीं है दुनिया में। पसमांदा नाम की कोई जाति भी नहीं है। पसमांदा एक वर्ग है, एक जमात है और धर्म सूचक नहीं है। देश के 80-90% लोग पसमांदा ही हैं… ।
… प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी इस शब्द पसमांदा को लपक लेना, हाईजैक कर लेना चाहते हैं। वो पसमांदा शब्द रख रहे हैं। बाकि पार्टियाँ और लोग इस शब्द से परहेज कर रहे हैं…। पसमांदा पूरे दलित-पिछड़े आन्दोलन के पार्ट हैं। हम बंटाना नहीं चाहते। हमारा नारा है- ‘दलित-पिछड़ा एक समान, हिन्दू हो या मुसलमान’। … तभी एकता मजबूत होगी। … (पसमांदा फारसी का शब्द है। जिसका अर्थ होता है, जो पीछे रह गए। यह शब्द आमतौर मुस्लिम समुदाय के लिए प्रयोग किया जाता है)