यदि आंख का तात्पर्य यह है कि आंखें छवियों को कितनी अच्छी तरह कैप्चर करती हैं, तो दृष्टि का तात्पर्य है कि मस्तिष्क आंखों से आने वाली जानकारी को कैसे संसाधित करता है। दृष्टि उस जानकारी को समझने और उस पर कार्य करने के लिए हम जो देखते हैं उसे संसाधित करने की क्षमता है। अब अयोध्या के श्रीराम मंदिर को केवल देखना ही नहीं है अपितु उसके होने के दृषिकोण को भी समझना है।

अयोध्या राम का मूल निवास है। सरयू नदी पर उसका स्थान वहीं से शुरू हुआ जहां उनका न्यायपूर्ण शासन शुरू हुआ। दिवाली, भारत का सबसे बड़ा त्यौहार, जगह से अलग होने के उनके 14 साल के कष्ट के अंत का प्रतीक है। सनातन संस्कृति श्री राम के कथानक के बिना अधूरी है। संस्कृति के इस दृष्टिकोण के समझने के लिए आँखे और मष्तिष्क का तालमेल एक खास प्रकार से होने की जरुरत है। पूरा राष्ट्र अपने ईश्वर स्वरूप, सदाचारी राजा और सदाचार और गरिमा के प्रतीक का आज श्री राम मंदिर में स्वागत कर रहा है।

राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर जन्मे राम आदर्श, नैतिकता, सत्य और समग्र रूप से धर्म के अवतार हैं। उनका जीवन एक सबक है कि जब आप अपना सब कुछ खो देते हैं तब भी कैसे जीत हासिल की जाती है।

दूसरा दृष्टिकोण यह है कि श्रीराम मंदिर के पुनः निर्माण में सदियों का संघर्ष है और न जाने कितनी पीढ़ियों का योगदान इसमें समाहित है। श्रीराम हमारे सांस्कृतिक चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान् एवं समर्थवान होते हुए भी उन्होंने आम आदमी की तरह जीवन के संघर्षो से लड़ा और सामजिक सहयोग से अपने लक्ष्य को साधा। संबंध प्रबंधन की दृष्टि से श्रीराम ने न केवल मानवीय संबंधों का सम्मान किया, बल्कि उन्होंने जानवरों (वानरों) को भी बहुत महत्व दिया ।

समकालीन समय में जहां स्वार्थ कृतज्ञता पर हावी होता जा रहा है, श्रीराम इस बात के उदाहरण हैं कि व्यक्ति को जीवन में कैसा व्यवहार करना चाहिए। विशेष रूप से नई पीढ़ी जो पैसा कमाने के लिए तथाकथित सफल लोगों के नक्शेकदम पर चल रही है, अक्सर अपने आदर्श श्रीराम का अनुसरण करना भूल जाती है, जिन्होंने अपने व्यवहार और दूसरों के प्रति निस्वार्थ रवैये के कारण सब कुछ हासिल किया और नियंत्रित किया।

ऐसा माना जाता है कि लगभग सूर्यवंशी क्षत्रियों के 90 हजार पूर्वजों ने मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा शुरू किए गए हमलों से राम कोट (भगवान राम का किला) की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी। हालाँकि, मुगलों की संख्या अधिक थी और उन्हें शहीद होना पड़ा। 1528-29 में राम मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके खंडहरों में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया।

सूर्यवंशियों के नेता सूर्य कुंड (घर को समर्पित एक तालाब और मंदिर) पर एकत्र हुए और राम मंदिर के पुनर्जीवित होने तक पगड़ी दान नहीं करने या चमड़े के जूते और छतरियों का उपयोग नहीं करने की कसम खाई। आज उनका भी संकल्प पूरा हुआ। यह हमें प्रेरणा दे रहा है कि किसी बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए दृढ संकल्प होकर उसको करना पड़ता है।

समर्थ बिहार भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े सभी दृष्टिकोण को आम आदमी के समक्ष लेकर जाने का प्रयास कर रहा है ताकि एक बेहतर बिहार और भारत का निर्माण हो सके। – डा. सुधीर कुमार सिंह (प्रभारी – समर्थ बिहार, भोजपुर)

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