अशोक-स्तम्भ

अशोक-स्तम्भ

-कल्बे कबीर

नए संसद-भवन के शीर्ष पर जिस अशोक-स्तंभ की अनुकृति का अनावरण किया गया है, वह कलात्मक रूप से बहुत घटिया और विकृत अनुकृति है। यह विश्वप्रसिद्ध भारतीय कला और मूर्तिकला का अपमान है। यह भारत के श्रेष्ठ शिल्पियों का अपमान है। यह निर्माण के वैदिक देवता विश्वकर्मा का अपमान है !

अशोक-स्तंभ की यह कांस्य अनुकृति राजस्थान के एक मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास ने अपने चालीस शिष्यों/सहायकों के साथ दो वर्षों में टुकड़ों-टुकड़ों में तैयार की है – जिसे बाद में जोड़ा/एसेंबल किया गया है। यह काम लक्ष्मण व्यास को सुनील देवड़े/टाटा कंपनी के मार्फ़त मिला था जिसको सेंट्रल-विस्ता के निर्माण का ठेका दिया गया है। सेंट्रल-विस्ता का नक्शा किसी गुजराती वास्तुकला कंपनी का बनाया हुआ है, जिसमें भी भारतीय वास्तुकला परंपरा की कोई छाप/छाया नहीं दिखाई पड़ती।

कोरोना-काल में शुरू हुए पच्चीस हज़ार करोड़ रुपए के इस सेंट्रल-विस्ता-प्रोजेक्ट की शुरुआत ही आलोचना से हुई थी।

यह कार्य संवैधानिक रूप से गलत है या नहीं इस पर विषय-विशेषज्ञ और राजनीतिक पार्टियां बात/विवाद/बहस कर रहे हैं, लेकिन हमारा कहना है कि यह कलात्मक रूप से गलत है। यह संविधान के प्रतीक का अपमान है या पता नहीं, लेकिन यह भारतीय कला परंपरा का अपमान ज़रूर है।

इस विषय पर राजनीति करने से अच्छा है कि हमारे बीच मौजूद विश्व-विख्यात बुजुर्ग मूर्तिकार राम सुतार की अध्यक्षता में मूर्तिकारों/कलाकारों, कला-समीक्षकों और इतिहासकारों की एक कमेटी बने जो इस अशोक-स्तंभ की अनुकृति की समीक्षा करे और ज़रूरी हो तो इसे पुनर्निर्मित करवाए।

कल्बे कबीर

राजनेताओं और प्रशासकों को इस संवेदनशील मामले से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए। यह पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दलों का नहीं, देश की प्रतिष्ठा/सुरक्षा/सौंदर्य से जुड़ा मसला है। कृपया, इसे कोई भी अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाए।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। #मूर्खता_के_मूर्तिकार १. अशोक-स्तंभ : सारनाथ म्यूजियम। साभार)

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