वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्ति को वापस लेने की जरूरत है : संजय कुमार & एस के सिंह

वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्ति को वापस लेने की जरूरत है : संजय कुमार & एस के सिंह

वक्फ बोर्ड के पास इस्लामी दान/दान के नाम पर संपत्तियों पर दावा करने की असीमित शक्तियां और अधिकार हैं, जिससे पूरे भारत में वक्फ की संपत्तियों में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जिसे व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों पर अतिक्रमण कहा जा सकता है।

वक्फ बोर्ड वो संस्था है जो अल्लाह के नाम पर दान में दी गई संपत्ति का रख-रखाव करता है। जैसे इस्लाम मजहब मानने वाले जब अपनी किसी चल या अचल संपत्ति को जकात में देते हैं तो वो संपत्ति तभी से ‘वक्फ’ कहलाती है। जकात दिए जाने के बाद इस संपत्ति पर किसी का मालिकाना अधिकार नहीं होता। उसे अल्लाह की संपत्ति माना जाता है और उसकी देख-रेख ‘वक्फ-बोर्ड’ को दी जाती है। वक्फ़ संस्थान उस संपत्ति से जुड़े सारे कानूनी काम को संभालती है जैसे उसे बेचने-खरीदना-किराए पर देना आदि। एक बार यदि कोई व्यक्ति ये वक्फ दे देता है तो फिर उसके बाद उसका उस संपत्ति को कभी वापस नहीं ले सकता। वक्फ बोर्ड उसे जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल करता है।

वह दिन था 5 मार्च 2014, और अगले दिन आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने वाली थी। तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने जल्दबाजी में एक अभूतपूर्व कदम उठाने का फैसला किया। रातों रात, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के एक अंतिम कार्य में दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया। जबकि 123 संपत्तियों में से 61 का स्वामित्व भूमि एवं विकास कार्यालय (एलएनडीओ) के पास था, शेष 62 संपत्तियों का स्वामित्व दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पास था। कांग्रेस सरकार ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से उक्त संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।  विडंबना देखिये कि वक्फ बोर्ड को ये असीमित ताकत खुद देश का कानून देता है जिसका नाम है वक्फ एक्ट 1995 जिसमें ऐसे प्रावधान हैं जिनका इस्तेमाल करके वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को खुद की संपत्ति घोषित कर सकता है।   

वक्फ अधिनियम पहली बार 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया जिसने वक्फ बोर्डों को अधिक शक्तियां प्रदान कीं। 2013 में, वक्फ बोर्डों को किसी की संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने के लिए इस अधिनियम में और संशोधन किया गया, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। मार्च 2014 में, लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक पहले, कांग्रेस ने इस कानून का उपयोग करके दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दे दिया। इस काले कानून के कारण अब तक देश में हिंदुओं की हजारों एकड़ जमीन छीन ली गई है। हाल ही में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने 1500 साल पुराने हिंदू मंदिर समेत तमिलनाडु के 6 गांवों को वक्फ संपत्ति घोषित किया है। इस एक्ट के अंतर्गत बोर्ड ने तमिलनाडु के एक हिंदू बहुल गांव को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था। कहना न होगा कि तमिलनाडु का गांव और गांव में बना प्राचीन मंदिर, वक्फ बोर्ड की कब्जाधारी नीति का इकलौता शिकार नहीं है। 

वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, इस समय वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,54,509 संपत्तियां हैं जो आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हुई हैं।  जानकर हैरानी होगी कि सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां चार लाख एकड़ जमीन पर फैली हुई थीं. जो अब दोगुना से भी ज्यादा हो गया है. जबकि देश में जमीन वैसी ही है जैसी पहले थी. तो वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है? वक्फ बोर्ड देश में जहां भी कब्रिस्तान की बाउंड्रीवाल कराता है, उसके आसपास की जमीन को अपनी संपत्ति मानता है। इसी तरह धीरे-धीरे अवैध धर्मस्थलों और मस्जिदों को भी वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति घोषित कर देता है। आसान भाषा में लोग इसे अतिक्रमण कहते हैं और इस अतिक्रमण का अधिकार वक्फ बोर्ड को मिला हुआ है वक्फ बोर्ड एक्ट की शक्ति इतनी असीमित है कि वक्फ का मन करे तो वो लालकिले दिल्ली में कर्तव्यपथ (प्रधानमंत्री आवास) की जमीन को भी अपना बता सकता है। विडंबना यह है कि जिस जमीन पर वक्फ अपना दावा जता देता है, उसे उस संपत्ति के मालिक को इसकी सूचना देना तक जरूरी नहीं होता। उस बेचारे को तो तब पता चलता है जब वो अपनी संपत्ति को बेचने निकलता है और फिर वो अपनी संपत्ति तभी बेच पाता है, जब वक्फ बोर्ड वाले उसे अनुमति दे।

वक्फ बोर्ड एक्ट की शक्ति इतनी असीमित है कि वक्फ का मन करे तो वो लालकिले दिल्ली में कर्तव्यपथ (प्रधानमंत्री आवास) की जमीन को भी अपना बता सकता है। विडंबना यह है कि जिस जमीन पर वक्फ अपना दावा जता देता है, उसे उस संपत्ति के मालिक को इसकी सूचना देना तक जरूरी नहीं होता। उस बेचारे को तो तब पता चलता है जब वो अपनी संपत्ति को बेचने निकलता है और फिर वो अपनी संपत्ति तभी बेच पाता है, जब वक्फ बोर्ड वाले उसे अनुमति दे।
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में वक्फ एक्ट जैसा धार्मिक कानून कैसे लागू हो गया? सवाल यह है कि हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों के लिए ऐसा कोई अधिनियम क्यों नहीं है? सिर्फ मुसलमानों के लिए ही क्यों? विडम्बना देखिये कि वर्ष 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया गया जिसमें कहा गया कि देश की आजादी के समय जो धार्मिक स्थल मौजूद थे, उन्हें वैसे ही रखा जायेगा। वहीं, 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होता है, जो पूरे देश में वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर अपना हक जताने का अधिकार देता है और पीड़ित पक्ष इसके खिलाफ देश की किसी भी अदालत में अपील भी नहीं कर सकता है।
केंद्र ने 22 अगस्त, 2023 को वक्फ बोर्ड से 123 संपत्तियों को लेने के लिए एक नोटिस जारी किया, जिसमें दिल्ली की जामा मस्जिद भी शामिल है। मई में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी कर केंद्र सरकार को 123 संपत्तियों का भौतिक निरीक्षण करने की अनुमति दी थी। ये संपत्तियां वर्तमान में विवाद में हैं क्योंकि दिल्ली वक्फ बोर्ड और केंद्र सरकार दोनों उनके कब्जे का दावा करते हैं। 
भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को 2014 में चुनाव जीतने के तुरंत बाद वक्फ बोर्ड को दी गई शक्तियों को रद्द करने की कार्रवाई करनी चाहिए थी। टुकड़ों-टुकड़ों में यह खबर आ रही है कि वक्फ बोर्ड अनुसूचित जाति के लोगों के धर्म परिवर्तन के लिए दी गई असीमित शक्तियों का फायदा उठा रहा है। डेढ़ सौ से अधिक याचिकाएँ देश के विभिन्न आदालतों में इस एक्ट को निरस्त करने हेतु लंबित हैं, आशा करते हैं कि न्यायालय से शीघ्र हीं न्याय मिलेगा। समर्थ बिहार वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्ति वापस लेने का समर्थन करता है। - संजय कुमार एवं एस.के. सिंह, समर्थ बिहार @Samarth_Bihar 
वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्ति को वापस लेने की जरूरत है : संजय कुमार & एस के सिंह
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