सन ४९ के विग्रह के स्थान पर नई मूर्ति की स्थापना को लेकर बहुत से लोगों को एतराज़ है। उनका एतराज़ है नये मंदिर में वही मूर्ति स्थापित की जानी चाहिए थी जो तथाकथित रूप से उस रात को प्रकट हुई थी। अब नया विग्रह स्थापित करने से प्रतीत होता है कि सब धोखाधड़ी थी।

सच तो यही है कि पूजा तो सदा से भगवान की ही होती आई है मूर्ति तो निमित्त मात्र है। जिन मूर्तिभंजकों ने सैकड़ों हज़ारों मंदिरों को नष्ट कर दिया क्या उन्होंने मूर्ति को विद्रूप नहीं किया होगा ? क्या प्राचीन राम मंदिर में स्थापित मूर्ति सुरक्षित रही होगी ? जिन लोगों ने गीज़ा के महान पिरामिड में स्फिंक्स की मूर्ति की नाक तोड़ दी वे भला हिंदू देवी देवताओं की मूर्ति को अक्षुण्ण रहने देंगे ?

महत्व मूर्ति का है ही नहीं, महत्व उस अस्मिता का है जिस पर चोट की गई और उत्तर भारत के पेशावर से बंगाल तक हज़ार वर्ष पुराने सभी मंदिरों और उनमें स्थापित मूर्तियों को या तो नष्ट कर दिया गया या विद्रूप कर दिया गया। एलोरा का कैलाश मंदिर जो तोड़ा न जा सका उसमें भी जहाँ तक संभव हो सका मूर्तियों को अंग भंग किया गया। बामियान के बुद्ध को डायनामाइट के आविष्कार के कारण उड़ा दिया गया वरना पहले उनके चेहरे क्षत विक्षत किए गये थे। औरंगज़ेब ने खुद कंधार से लौटते समय उन पर तोप के गोले दागे थे पर उन विशाल मूर्तियों का कुछ न बिगाड़ सका।

संकट काल में मूर्तियों को बचाने की कोशिश की जाती है , श्रीनाथ जी को गोवर्द्धन से बचते बचाते मेवाड़ में नाथद्वारा में स्थापित किया गया। मूर्तियाँ हमारे लिए पवित्र अवश्य हैं भगवान उनमें बसते हैं पर मूर्तियाँ भगवान नहीं हैं। अगर खंडित हो जायेंगी तो हम बदल देंगे। हम तो पार्थिव शिवलिंग की भी पूजा कर लेते हैं। मिट्टी से शिवलिंग बनाते हैं पूजा करते हैं और विसर्जित कर देते हैं।

सनातन धर्म सही अर्थों में एकेश्वरवादी धर्म है। सारा जगत् ही सीता राम मय है। हमारा राम सातवें आसमान में नहीं बैठता वह तो रोम रोम में रमनेवाला राम है। उसकी मूर्ति से अधिक फलप्रद तो उसका नाम है।

सदियों के बाद भगवान का विग्रह स्थापित हो रहा है। सौभाग्यशाली हैं हम आप जो इस पल के साक्षी हैं। मन विवेक को निर्मल करके अपने को धन्य मानिए और व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास करके जी खट्टा न कीजिए।

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