चेन्नई : मजदूरों और ट्रेड यूनियनों द्वारा भारी विरोध को देखते हुए तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने 12 घंटे काम वाले शिफ़्ट की फ़ैक्ट्रीज़ (तमिलनाडु संशोधन) बिल 2023 को फिलहाल वापस लेने की घोषणा कर दी है।

फ़ैक्ट्रीज़ (तमिलनाडु संशोधन) बिल 2023 विधेयक विधानसभा में शुक्रवार को तमिलनाडु के विधायकों ने पास किया था। बिल पास होते ही राज्य के मजदूर संगठनों ने राज्य भर में आंदोलन शुरू कर दिया था और सरकार के सहयोगी दलों के अलावा विपक्षी दलों ने भी स्टालिन सरकार को निशाने पर ले लिया था।

फ़ैक्ट्री संशोधन विधेयक 2023 के मुताबिक फ़ैक्ट्रियों में कर्मचारी अगर चार दिन का कार्य दिवस चुनते हैं तो वहां शिफ़्ट 12 घंटे की होगी और उन्हें तीन दिन की सवैतनिक छुट्टी मिलेगी। सप्ताह में 48 घंटे काम की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन सरकार फैक्ट्रियों में यह नियम लागू कैसे करवाएगी यह स्पष्ट नहीं है।

राज्य में DMK शासन में है। DMK की सहयोगी कांग्रेस और VCK ने तमिलनाडु विधानसभा में बिल का विरोध किया और विधानसभा से बाहर आ गए। वामपंथी पार्टियों में सीपीआई और सीपीएम ने इसकी निंदा की और सरकार पर मज़दूर विरोधी क़ानून थोपने का आरोप लगाया। खास बात यह थी कि डीएमके से जुड़ी मज़दूर यूनियनों ने भी इसका विरोध किया।

यूनियनों के दबाव को देखते हुए उद्योग मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा कि कर्मचारियों के लिए सप्ताह में काम के कुल घंटों को नहीं बदला गया है। जबकि इस बदलाव से महिला कर्मचारियों को फायदा होगा।

शनिवार को मुख्यमंत्री स्टालिन ने ट्रेड यूनियनों को चर्चा के लिए बुलाया था। यूनियनों ने बैठक में आरोप लगाए कि यह चर्चा कैसी चर्चा है कि सरकार क़ानून पास करके विरोधियों से बात करे।

INTUC और वामपंथी ट्रेड यूनियनों ने आरोप लगाए कि नया क़ानून बीजेपी की ओर से थोपी जा रही मज़दूर विरोधी नीतियों को ही आगे बढ़ा रहा है। राज्य सरकार ने फिलहाल कानून के लागू होने पर रोक लगाते हुए यूनियनों की चिंता पर ध्यान देने की बात कही है।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा है कि मज़दूरों के अधिकार और कल्याण के प्रति वो प्रतिबद्ध हैं और राज्य के संपूर्ण विकास में शांतिपूर्ण श्रम का माहौल बहुत अहम है। बिल पेश करते हुए उन्होंने कहा था कि छुट्टी, ओवरटाइम, वेतन आदि के मौजूदा नियमों को नहीं बदला गया है। उन फ़ैक्ट्रियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी जो कर्मचारियों को इच्छा के विरुद्ध काम कराने पर मज़बूर करेंगे।

इस श्रम संशोधन विधेयक के पक्ष में तमिलनाडु के अधिकारियों ने तर्क दिया था कि अगर कंपनियों और फैक्ट्रियों के लिए काम के घंटों को लचीला नहीं बनाया गया तो वे पड़ोसी राज्य कर्नाटक में चली जाएंगी। जहां 12 घंटे की शिफ़्ट का क़ानून अभी हाल ही में बनाया गया है।

ट्रेड यूनियनों से बातचीत में सरकार ने आश्वासन दिया है कि इस क़ानून को अनिवार्य की बजाय वैकल्पिक बनाया जाएगा, यानी जिन फ़ैक्ट्रियों में वर्कर और मैनेजमेंट दोनों सहमत होंगे, वहीं लागू होगा। साथ ही वर्करों को ये अधिकार होगा कि वो 12 घंटे की शिफ़्ट से इनकार कर सकें। लेकिन प्रबंधन को ये अधिकार नहीं होगा कि वे वर्करों से ज़बरदस्ती करें।

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