‘कवि और कविता (http://कवि और कविता)’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “झांको कभी” …
■ झाँको कभी – डॉ. प्रेरणा उबाळे
झाँको कभी
मन के बीते दर्द में
गीली आँखों की नोंक में
झाँको कभी
दबे लफ्जों की घुटन में
संभलती-संवरती गिरहबान में
झाँको कभी
नाखूनों की चुभन में
चुपचाप रुकी आह में
झाँको कभी
सन्नाटे के डर में
शोर की खामोशी में
झाँको कभी
बिछोह के आँसुओं में
टूटती लहरों की तार में
झाँको कभी
माला के धागों में
पेड़ के निचोड़ते रस में
झाँको कभी
मलय की सन् – सन् ध्वस्तता में
बादल से बिछुड़ी आखिरी बूँद में
झाँको कभी
लावाओं-सी धधकती इच्छाओं में
थम जाती सपनों की साँसों में
झाँको कभी
बिखरन के नवनिर्माण में
टूटन से बने अस्तित्व में
झाँको कभी
ब्रह्मांड के अनहद नाद में
ईश्वर की अंतरात्मा में
झाँको कभी
झाँको
झाँको
बस
झाँकते जाओ….
महसूस करो…
पाओगे तुम…
अनवरत –
त्याग
तपस्या
प्रेम
अथाह सार
जीवन का ….. – डॉ. प्रेरणा उबाळे (3 जून 2024)
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर पुणे-411005, महाराष्ट्र)
Great imagination Dr Prerna Ubale Ji, Congratulations
thank you
Bohot sundar kavita. Sensitivity of human feelings are expressed in a delicate manner.
thank you