मणिपुर का सामाजिक परिदृश्य- वीरेंद्र परमार

मणिपुर का सामाजिक परिदृश्य- वीरेंद्र परमार


मणिपुर के निवासियों को सामान्यतः तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- 1. मैतेई, 2. नागा समूह की जनजातियाँ और 3. कुकी–चीन समूह की जनजातियाँ।

1. मैतेई : मैतेई समुदाय का मूल इतिहास रहस्य में लिपटा हुआ है। इस विषय में विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। विभिन्न सिद्धांतों और मतों के बावजूद यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जिस मैतेई समुदाय को आज हम एक समूह के रूप में जानते हैं वह विभिन्न विजातीय वर्णों का एक विषम समूह है। मैतेई विभिन्न कालखंडों में विभिन्न दिशाओं से आए भिन्न–भिन्न जनसमूहों का मिश्रण है। 19 वीं शताब्दी के आरंभ से पहले अलग-अलग समूहों के सात प्रमुख गोत्रों और उपगोत्रों के लोगों ने मिलकर मैतेई राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया। इस प्रकार उन सभी को एक सामान्य नाम मैतेई दिया गया। यह भी संभव है कि घाटी के निवासी मैतेई आसपास के पर्वतवासियों के वंशज हों।

मैतेई एक स्वदेशी शब्द है। श्री टी.सी.हडसन ने इस शब्द की व्याख्या करते हुए ‘मी’ का शाब्दिक अर्थ ‘मनुष्य’ और ‘तेई’ का अर्थ ‘पृथक’ बताया हैI भौगोलिक आधार पर मैतेई को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है –खाबम, लाइफम, अहुलूप और नहरूपI वर्तमान में मैतेई जनसंख्या में मैतेई, मैतेई पंगन और लोई शामिल हैं I इनमें से मैतेई और लोई की एक ही उत्पत्ति है और ये स्वदेशी हैं जबकि मैतेई पंगन (मणिपुरी मुसलमान) सिलहट (बंगलादेश) और असम के कछार से आए हैंI उन्होंने मणिपुरी लड़की से शादी कर ली, मणिपुरी भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में अंगीकार कर लिया, लेकिन इनकी वेशभूषा और रीति–रिवाज पूरी तरह इस्लामी है।

मैतेई समुदाय पहले सनामही धर्म को मानता था। सनामही धर्म दक्षिण-पूर्व एशिया का सबसे प्राचीन धर्म है जिसकी उत्पत्ति मणिपुर में हुई तथा मणिपुर, असम, त्रिपुरा, म्यांमार, बंगलादेश आदि में रहनेवाले मैतेई समुदाय इनकी पूजा करता थाI

मणिपुर में प्राचीनकाल से रहनेवाले आदिवासी समुदाय भी सनामही धर्म में आस्था रखता था। लेकिन ईसाई धर्म अपना लेने के बाद सनामही में इन समुदायों की आस्था नहीं रह गई। मणिपुर की तंगखुल, कुकी, कबुई, कोम, पुरुम, चोथे इत्यादि जनजातियाँ भी सनामही धर्म के प्रति पूर्ण आस्था रखती थीं, लेकिन ईसाई धर्म को स्वीकार करने के बाद इन जनजातियों की आस्था सनामही के प्रति नहीं हैI

प्राचीनकाल से प्रत्येक मैतेई घर में सनामही की पूजा की जा रही है I सनामही ही मैतेई समाज के सुख–दुःख का कारण, सृष्टि के नियंता व नियंत्रक और समस्त आध्यात्मिक प्रतीकों के केंद्रबिंदु हैंI सनामही सभी देवताओं के राजा हैं, उन्हीं की कृपा से जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती हैI कालांतर में अनेक कारणों से सनामही धर्म का पतन हो गया, लेकिन मैतेई समाज में अन्तःसलिला की भांति यह धर्म हमेशा विद्यमान रहा है।

सनामही एक प्रकार का जड़ात्मवाद अथवा प्रकृतिपूजा हैI इसमें पूर्वजों और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती है। सनामही का शाब्दिक अर्थ है ‘सर्वत्र तरल पदार्थ की तरह फैलना’। तात्पर्य यह कि भगवान सनामही सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैंI हिंदू धर्म के आगमन से पहले मणिपुर के मैतेई समुदाय सनामही धर्म का अनुसरण करते थे। सनामही का दूसरा नाम ‘अशीबा’ भी था। ऐसी मान्यता है कि ‘अशीबा’ ने आकाश, पृथ्वी और अन्य सभी चेतन–अचेतन वस्तुओं की रचना की। यह एक लोक धर्म है। यह वैष्णववाद के साथ प्रतिस्पर्धा करता है। अनेक लोग और गुट मणिपुरी विरासत पर जोर देने के साथ-साथ सनामहीवाद और संबंधित प्रथाओं को पुनर्जीवित करने की मांग करते रहते हैं। सनामहीवाद और हिंदू धर्म दो अलग-अलग धर्म हैं, लेकिन दोनों में अनेक समानताएं भी हैं।

चराईरोंगबा (1697–1709) मणिपुर के पहले राजा थे जिन्होंने हिंदू धर्म को अपना लिया, लेकिन उन्होंने मैतेई समाज में हिंदू धर्म के प्रसार के लिए कोई प्रयास नहीं किया, न ही पारंपरिक सनामही धर्म को नष्ट करने का कोई प्रयत्न किया। राजा गरीब नवाज़ (1709–1748) के शासनकाल में हिंदू धर्म का उत्थान हुआ। वर्ष 1717 में सिलहटी ब्राह्मण संत दास गोसाईं ने राजा गरीब नवाज़ को हिंदू धर्म में दीक्षित किया। गरीब नवाज़ ने पारंपरिक सनामही धर्म को नष्ट करने के लिए अनेक कदम उठाए। उन्होंने वर्ष 1723 ई. में उमंग लाई के सभी मंदिरों को ध्वस्त करा दिया। वर्ष 1723 ई. में उन्होंने क्षत्रिय जाति को अंगीकार कर लिया।

संस्कृति, धर्म, इतिहास, राजनीति, भूगोल, साहित्य आदि पर मैतेई लिपि में लिखित 120 से अधिक पुस्तकों को अग्नि के हवाले कर दिया गया। मैतेई समाज पर हिंदुत्व थोपा गया और जिन्होंने हिंदू धर्म को स्वीकार करने से मना किया उन्हें दण्डित किया गया। मणिपुर के विभिन्न भागों से उमंग लाई को एकत्रित कर उन्हें कब्र में दफना दिया गया। पारंपरिक मैतेई गोत्र के स्थान पर सात नए हिंदू गोत्रों की रचना की गई-1.शांडिल्य 2.कश्यप 3.मधुगल्य 4.गौतम–भरद्वाज 5.अत्रेय-अंगिरा 6.भारद्वाज 7.वशिष्ठ। राजाज्ञा से मैतेई भाषा में धार्मिक गीत गाने पर रोक लगा दी गई। गरीब नवाज के पौत्र भाग्यचन्द्र (1759-1798) के शासनकाल में हिंदू वैष्णव धर्म का गौरव चरम पर था। उन्होंने गौरिया वैष्णव धर्म को अपना लिया था। राजा चन्द्रकीर्ति ने भी हिंदुत्व का विकास जारी रखा।

राजा चूराचाँद (1891–1941) के शासनकाल में एक प्रसिद्ध विद्वान थे जिनका नाम फुरैलतपम अतोमबापू शर्मा था। उनका मानना था कि मणिपुर आर्यों की प्राचीन मातृभूमि थी। उन्होंने हिंदुत्व की दृष्टि से पारंपरिक धर्म और संस्कृति की व्याख्या की। उन्होंने मैतेई समुदाय के आर्यीकरण का औचित्य सिद्ध करने के लिए बंगला, मणिपुरी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओँ में अनेक आलेख और पुस्तकों की रचना की। उनकी प्रतिभा और विद्वता से प्रभावित होकर डॉ सुनीति कुमार चटर्जी ने उन्हें पूर्वी भारत के अगस्त मुनि की संज्ञा दी है। मणिपुर में राजा गरीब नवाज़ से राजा चूराचाँद तक की अवधि में हिंदू धर्म खूब फूला–फला।

2. नागा समूह की जनजातियाँ–‘नागा’ एक व्यापक शब्द है जिसका प्रयोग नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम में रहनेवाले आदिवासियों के एक समूह के लिए किया जाता है और जिनमें सामाजिक–सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत समानता है। मणिपुर में तंगखुल, माओ, मरम, कबुई, कच्चा नागा, कोइराव, कोईरेंग, मरिंग आदि जनजातियाँ नागा समूह में शामिल हैं I सभी नागा जनजातियों की अपनी–अपनी भाषा/बोली है I इन आदिवासी समुदायों के पर्व–त्योहार भी अलग–अलग हैं तथा लोकदेवी–देवताओं के नाम और उनकी अवधारणाओं में भी भिन्नता है। मणिपुर की नागा जनजाति यहाँ के मूल निवासी हैं।

3. कुकी–चीन समूह की जनजातियाँ : ‘कुकी’ का शाब्दिक अर्थ पहाड़ी मनुष्य होता है, लेकिन कुकी शब्द की उत्पत्ति और इस समुदाय के मूल निवास के संबंध में विद्वानों में मतभिन्नता है। चीनी भाषा में ‘कुकी’ का शाब्दिक अर्थ ‘कु’ नामक झील के निकट रहनेवाला लोग होता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि कुकी लोगों का मूल निवास क्षेत्र चीन में था जबकि कुछ लोग मानते हैं कि कुकी का मूल निवास म्यांमार के चीन हिल्स राज्य में था। ऐसा विश्वास है कि ये लोग विभिन्न कालखंडों में मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम के वर्तमान निवास क्षेत्र में आए। मणिपुर में कुकी लोग अठारहवीं शताब्दी में आए और पर्वतीय क्षेत्रों में अपना निवास बनाया। कुकी चीन समूह की विभिन्न जनजातियों की एक सामान्य मान्यता है कि उनकी उत्पत्ति एक गुफा से हुई है। उत्पत्ति की दृष्टि से ही नहीं बल्कि इन जनजातियों के देशांतरण के संबंध में बहुत समानता है। इस समूह की सभी जनजातियों की मान्यता है कि वे तिब्बत और बर्मा होते हुए चीन से भारत में आए। इन जनजातियों की लोककथाओं, प्रथाओं और धार्मिक विश्वासों में भी समानता है। मणिपुर की कुकी–चीन समूह की जनजातियाँ हैं-थडाऊ, पाइते, गंगते, सिम्ते, वाईफे, सहते, जोऊ, हमर, मिज़ो, बाइते, पुरुम, कोम, राल्ते, आईमोल आदि। इन जनजातियों को ‘जोमी’ नाम दिया गया है। ये मुख्य रूप से सेनापति, चूराचांदपुर, चंदेल और जिरिबाम सबडिविजन में रहते हैं। नागा जनजातियाँ हों या कुकी-चीन सभी के पास अपनी संस्कृति और भाषा है। यह उल्लेखनीय है कि कुकी-चीन समूह की जनजातियों की भाषाएँ एक–दूसरे के लिए परस्पर संप्रेषणीय हैं, लेकिन यह संप्रेषणीयता नागा जनजातियों की भाषाओँ में नहीं है। नागा जनजातियों की भाषाएं एक–दूसरे के लिए अबूझ हैं। इसलिए वे आपस में बातचीत के लिए नागामीज अथवा मैतेई भाषा का उपयोग करते हैं। – वीरेंद्र परमार

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