उज्जैन : वैचारिक रूप से गांधीवादी, मानवतावादी सुधीर भाई गोयल का जीवन बाबा आमटे से प्रभावित हुआ। मानवजीवन को ईश्वरी भाव से देखने वाले सुधीर भाई दुखियों, बेसहारों, बीमार और अनाथ बच्चों, लड़कियों, महिलाओं एवं बुजुर्गों को देख कर द्रवित हुआ करते थे। उधर भाई के द्रवित और व्याकुल हृदय को 1988 में बाबा आमटे से उज्जैन में संस्थागत कार्यक्रम में हुई मुलाकात और प्राप्त मार्गदर्शन से जीवन की धारा बदल गई। किंतु सुधीर भाई गोयल वर्ष1970 से समाज सेवा को लेकर विभिन्न तरीकों से समर्पित रहे।

सुधीर भाई गोयल ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में सेवाधाम आश्रम को स्थानीय लोगों के घोर विरोध के बावजूद स्थापित किया। अपने समर्पित श्रम से उन्होंने इस आश्रम के प्रति समाज में एक विश्वास स्थापित किया। यहां दुखियों की राहत देने और उनकी सेवा-सुश्रुषा करने और बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों की सेवा, देखभाल और प्यार बांटने का काम बिल्कुल निशुल्क और पूरे तन-मन से करते हैं। अभी में सेवाधाम आश्रम ने बिना जाति धर्म और सम्प्रदाय भेदभाव के 700 बेघर, बेसहारा, पीड़ित शोषित निराश्रित, दिव्यांग मनोरोगी एवं मरणासन्न वृद्ध, युवा स्त्री-पुरुष एवं विशेष बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

सुधीर भाई गोयल मानव सेवा की अपनी इस अथक प्रयासों के बारे में बताते हैं कि वह विज्ञान से स्नातक हैं और 1976 में पवनार में आचार्य विनोबा भावे से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद उन्होंने खुद के चिकित्सक बनने का सपना छोड़ दिया। फिर कुछ व्याकुलता और भटकन के साथ अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से शहर के गंदी बस्तियों, आदिवासी गांवों, श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और सड़कों पर निराश्रित, असहाय, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों की सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन और सद्भाव से संबंधित पंच सूत्रीय प्रकल्पों को जीवन का आधार बनाकर अपने सामाजिक कार्य को गति दी। और वर्ष 1986 में मध्य प्रदेश में उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की।

मध्य प्रदेश के उज्जैन से 15 किलोमीटर दूर ग्राम अम्बोदिया में 14 बीघा भूमि दान देकर सेवाधाम आश्रम की स्थापना की जिसे अपने बेटे अंकित को समर्पित कर ‘अंकित ग्राम’ सेवाधाम आश्रम के नाम से भी जाना जाता है।

दुखियों, बीमार, असहाय, लाचार और पीड़ितों में भगवान का दर्शन करने का भाव रखने वाले सुधीर भाई गोयल धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग से ऊपर उठकर वह स्वयं पीड़ित को आश्रम में लाकर उसे नहलाने, उसके घावों, चोटों का मरहम-पट्टी करने, कपड़े पहनाने, बाल काटने, नाखून काटने, अपने हाथों से खाना खिलाने का कार्य ईश्वरीय समर्पण के सेवाभाव से करते हैं। इस कार्य में उन्हें आध्यात्मिक आनंद और खुशी मिलती है। यहां 300 से ज्यादा अन्य ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें विशेष तरह की देखभाल की जरूरत है और इनके लिए चिकित्सा सुविधा, दावा, भोजन आदि जुटाने का कठिन कार्य सुधीर भाई दिनरात करते रहते हैं।

सुधीर भाई गोयल कहते हैं कि वह मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की। फिर कुष्ठधाम की स्थापना कर उन्हें शिक्षा और स्वावलम्बन के साथ जीवनोपयोगी सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु लम्बा संघर्ष करता रहा हूं। और परिणाम स्वरूप आज कुष्ठधाम में बच्चों और महिलाओं की शिक्षा केन्द्रों के विविध प्रशिक्षणों की व्यवस्था है।

सुधीर भाई के इस मानव सेवा की श्रमसाध्य और समर्पण के किस्से सुनकर उद्योगपति, राजनेता, सोशल ऐक्टिविस्ट, पत्रकार, डॉक्टर, आदि आकर्षित होते हैं और इस आश्रम को धन, सेवा और समर्पण दे जाते हैं। सुधीर भाई कहते हैं कि यहां अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों से बाल कल्याण समितियों, जिला-पुलिस प्रशासन से दुखी, बीमार और बेसहारा बच्चे, महिला, बुजुर्ग भेजे जाते हैं। इनमें मनोरोगी गर्भवती स्त्रियां, विवाहित-अविवाहित माताएं व उनके बच्चे भी होते हैं। इन सभी को सेवाधाम अपनाता है और सेवा करता है।

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