दंतेवाड़ा, Himanshu Kumar

दंतेवाड़ा, Himanshu Kumar

छतीसगढ़, 14 जुलाई 2022: गाँधीवादी हिमांशु कुमार ने SC में याचिका दाखिल कर दंतेवाड़ा में वर्ष 2009 में केंद्रीय सुरक्षा बलों द्वारा 17 आदिवासियों की हत्या के मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी। नक्सल विरोधी अभियान के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की हत्या की जांच को लेकर 13 साल पुरानी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने यह जांच करने को कहा है कि कुछ व्यक्ति और संगठन कोर्ट का इस्तेमाल कथित तौर पर वामपंथी चरमपंथियों के बचाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं।

गाँधीवादी विचार के दंतेवाड़ा में आदिवासियों के बीच कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु ने देश के सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले पर कहा कि “मारे गए 16 आदिवासियों जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था के लिए इंसाफ मांगने की वजह से आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ऊपर 5 लाख का जुर्माना लगाया है। और, छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह मेरे खिलाफ धारा 211 के अधीन मुकदमा दायर करे। मेरे पास 5 लाख तो क्या 5 हजार रुपया भी नहीं है तो मेरा जेल जाना तय है, अपराध यह कि इंसाफ क्यों मांगा!”

साल 2019 में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की तरफ से दाखिल याचिका पर जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसला सुनाया।

कोर्ट द्वारा तय जुर्माने की राशी जमा नहीं करने की स्थिति में हिमांशु के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। छत्तीसगढ़ पुलिस का मानना है कि याचिकाकर्ता माओवादियों के साथ सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति है। हिमांशु कुमार ने साल 2009 में दंतेवाड़ा जिले की तीन अलग-अलग घटनाओं में 17 ग्रामीणओं की मौत को लेकर अपनी तरफ से रिकॉर्ड गए बयानों के आधार पर याचिका दायर की थी।

एपेक्स कोर्ट ने फरवरी 2010 में दिल्ली के जिला जज जीपी मित्तल को 12 आदिवासी याचिकाकर्ताओं के बयान की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की बात भी कही थी और याचिकाकर्ता को सुरक्षा देने के भी आदेश जारी किए थे। इसके बाद जिला जज ने 19 मार्च 2010 को बयानों के संबंध में रिपोर्ट दाखिल की थी और सभी पक्षों को रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे।

इस वर्ष केंद्र सरकार ने गृहमंत्रालय के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि जिला जज की एक रिपोर्ट कोर्ट रिकॉर्ड्स से गायब हो गई थी, जो मार्च 2022 में मिली। केंद्र के अनुसार, रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शिकायतकर्ताओं ने जिला जज के सामने बयान दिए थे कि कुछ अज्ञात लोगों ने जंगल से आकर ग्रामीणों की हत्या की है। साथ ही किसी ने भी सुरक्षा बलों के सदस्यों पर सवाल नहीं उठाए थे।

केंद्र ने इसके बाद कोर्ट से किसी भी केंद्रीय एजेंसी को जांच के निर्देश देने की अपील की थी। जिससे उन लोगों और संगठनों की पहचान हो सके जो हिंसक माओवादी गतिविधियों को बचाने के लिए मुकदमेबाजी में शामिल हैं।

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