कवि और कविता' श्रृंखला में डॉ प्रेरणा उबाळे की कविता 'सहज' ...

कवि और कविता' श्रृंखला में डॉ प्रेरणा उबाळे की कविता 'सहज' ...

– राम नारायण सिंह

रात में कान्हा का जन्म हुआ, कृष्ण जन्माष्टमी थी। सनातनी घरों और मंदिरों में कान्हा का जन्म दिन मनाया गया। अपने घर के मन्दिर के अलावा अपने क़स्बे के शिरडी साईं मन्दिर, मानस मन्दिर और सच्चिदानन्देश्वर महादेव मन्दिर में भी हम लोगों ने कान्हा के जन्म दिन मनाने की व्यवस्था की। तमाम भक्त लोग छठी और बरही भी धूम धाम से मनायेंगें। हर साल मनाते हैं। जन्म के अगले दिन दहिलापो का जलूस भी निकलता रहा है। हल्दी और दही की होली खेलते हुए, हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की गाते हुए।

कहते हैं कान्हा का जन्म पाँच हज़ार साल से भी पहले द्वापर में हुआ था। किंतु द्वापर भी कई हुए। युगों का चक्र तो चलता ही रहता है। हर द्वापर में कान्हा का जन्म होता ही होगा। कृष्ण सनातन हैं। व्यक्ति जब भी वसुदेव और देवकी की तरह घोर विपत्ति में घिर जाते हैं तो कान्हा जन्म लेते ही हैं। कान्हा भादो की भयानक अंधेरी घोर वर्षा वाली रात में बन्दी गृह में अर्ध रात्रि को जन्म लेते हैं।

किसी भी व्यक्ति के जीवन में इससे ज़्यादा संकट का क्या समय हो सकता है! बन्दी गृह में पैदा हुई सात संतानें मार दी गई हैं। वह भी और किसी द्वारा नहीं, सगे मामा द्वारा। उफनती हुई जमुना को पार कराकर नन्दगाँव पहुँचाये जाते हैं। वहाँ भी कंस सारे षडयंत्र करता ही है। सब पर विजय प्राप्त करते हुए वृंदावन में रासलीला करते हैं।

कृष्ण जन्म के पन्द्रह दिन बाद उनकी सखी राधा जी बरसाने में जन्म लेती हैं। कृष्ण चन्द्रवंशी हैं। चंद्रमा की कलाएँ पंद्रह दिन की होती हैं। कृष्ण सोलह कला के हैं। अमावस्या, जब चंद्रमा एक दम नहीं उगता वह भी एक कला है। इस प्रकार सोलह कलाएँ।

राम चैत्र के मधुमास में बारह बजे दिन में चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के राजमहल में अयोध्या में जन्म लेते हैं। दशरथ से बेहतर स्थिति किसकी हो सकती है। वे सूर्यवंशी हैं।

सूर्य की बारह कलाएँ, बारह महीने और जोडियक- राशियों के अनुसार बदलती हैं। उनकी शक्ति सीता एक महीने बाद महाराज जनक के यहाँ जन्म लेती हैं। राम बारह कला के अवतार हैं, सूर्य की सभी बारह कलाओं को समेटे हुए। त्रेता की घटना है। त्रेता भी कई कई हुए।कृष्ण और राम सनातन हैं। उसी तरह जैसे चन्द्र और सूर्य सनातन हैं।

राधा अष्टमी को पन्द्रह दिन बाद और सीता नवमी को एक महीने बाद मना कर सनातन, चन्द्र और सूर्य की सभी कलाओं को समेटता है।

किसी व्यक्ति का जीवन बहुत दुःख पूर्ण होगा तो वसुदेव देवकी से ज़्यादा क्या होगा और सुख पूर्ण होगा तो चक्रवर्ती सम्राट दशरथ से ज़्यादा क्या होगा। भादों की विकराल वर्षा वाली अंधेरी मध्यरात्रि और बसन्त ऋतु के चैत्र के नवमी का मध्य दिवस दोनों को कृष्ण और राम जन्म लेकर व्यक्ति के समस्त काल परिस्थिति को समेटते हुए सनातन को कालजयी बनाते हैं।

कृष्ण कारगर के कठोर बन्धन में जन्म लेकर सभी बर्जनाओं को तोड़ते हैं, उन्मुक्त प्रेम करते हैं, आत्मा का सास्वत सनातन से योग कराते हैं। राम चक्रवर्ती सम्राट के घर जन्म लेकर समाज की सभी मर्यादाओं को पूर्ण पालन करते हैं, एक निष्ठ प्रेम करते हुए पूरे समाज को समन्वय की पराकाष्ठा, राम राज्य में स्थापित करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति से लेकर पूरे समाज को कृष्ण और राम के मध्यम से सनातन साधता है। इसलिए सनातन पूर्ण है, काल जयी है, अविनाशी है।

सनातन की जय हो। राम, कृष्ण की जय हो।
हरे राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे हरे।
– राम नारायण सिंह
कृष्ण जन्माष्टमी २०२३

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