जिसने पूरे प्रदेश को समस्या का पर्याय बना दिया हो, समाज और राजनीति को उलझा दिया हो, जिसने सनातन समाज को खंड-खंड में विभाजित कर दिया है, यही नहीं जिसने बिहार के सभी संस्थानों को निरर्थक बना दिया हो, वह “समाधान यात्रा” करने को निकल पड़ा है। अतः प्रश्न उठता है कि जो स्वयं समस्या हो वह क्या समाधान कर सकेगा? कहावत है कि रोम जल
रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था।
इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि नीरो ने ही रोम में आग लगवाई थी इसलिए वह खुश था और वाद्य यन्त्र बजा रहा था। नीरो की तुलना नितीश कुमार से करना सार्थक बैठता है। क्योंकि नितीश ने भी बिहार में आर्थिक संकट पैदा करके, बिहार के डेमोग्राफि को बदलके, बिहार को इस्लामिक आतंकी संगठन पीएफ़आई की राजधानी बनाकर तथा अब वोट बैंक हेतु बिहार को जातीय जनगणना की आग में झोंककर यात्रा पर निकल लिया है।
स्वाभाविक है कि सभी दल अब अपनी राजनीतिक रोटियाँ इस आग में सेंक रहें हैं। कहना न होगा कि नीतीश के इस निर्णय के बाद एकाएक प्रत्येक जाति के हीरो की महिमामण्डन आरंभ हो गई है।
पहला पांच साल का कार्यकाल रोम के इतिहास का स्वर्णिम काल माना जाता है। उसी प्रकार नितीश ने भी लालू के जंगल राज्य ख़त्म होने के बाद तथाकथित सुशासन की स्थापना की और नितीश का भी पहला पांच साल विकासोन्मुखी माना गया है। उसके बाद अपने को राज्य के मुख्यमंत्री के कुर्सी पर बनाये रखने के लिए नितीश ने भी कमोवेश वही काम किये जो रोम के राजा नीरो ने अपने को गद्दी पर बनाये रखने के लिए उस समय किया था। लगता है नितीश कुमार ने जाने-अनजाने नीरो के मॉडल को फॉलो किया।
अगर आज बिहार की स्थिति की पड़ताल की जाय तो एकदम स्पष्ट रूप से कुछ बातें सामने आती हैं – भ्रष्टाचार को गैरकानूनी रूप से कानूनी बना दिया गया है। पुलिस निरंकुश हो गयी है। अपराध बढे हैं। शराब की होम डिलीवरी हो रही है। जंगल राज पार्ट- 2 का दृश्य जारी है। शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी है। विश्वविद्यालयों में भ्रष्टचार और गबन के आरोपी कुलपतियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। जातिगत जनगणना करने से समाज में विषवमन का काम शुरू हो गया है। ऐसे समय में सद्भावना यात्रा किसलिए ?
बिहार के इतिहास में इतना अवसरवादी और जातिवादी राजनीति कभी नहीं हुआ। राजनीति में इस न्यूनतम मापदंड को स्थापित करने का श्रेय नितीश कुमार को जाता है। इन्होंने जे पी को ठगा। बिहार के शिक्षा व्यवस्था को चौपट किया। शराबबंदी करके शराब से मिलने वाले राजस्व को अपराधियों और नेताओं तक पहुँचने को सुलभ बनाया। ऐसे समय में नितीश की समाधान यात्रा न केवल हास्यास्पद है बल्कि यह बिहार की जनता को मुंह चिढ़ाती है।
परोक्ष और अपरोक्ष रूप से अपने को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर नितीश अब समाधान यात्रा के द्वारा बिहार की जनता को छलने चले हैं। राजनितिक तुष्टिकरण को अपने परकाष्ठा पर पहुंचाकर नितीश ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अपने स्वार्थ के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं।
पीएफआई बिहार में इस्लामिक आतंकवाद की जड़ मजबूत कर रही है। यह एक समस्या है जो समाधान मांग रहा है। इसका समाधान यात्रा से नहीं बल्कि कठोर कानूनी करवाई से प्राप्त होगी।
समाधान यात्रा के दौरान नितीश ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाई है। अगर विशेष राज्य का दर्जा मिलने से ही समाधान निकलेगा तो नितीश सरकार के 17 वर्षो की जबाबदेही किसकी है ?
नितीश और लालू के शासन से पहले बिहार में साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, लंगट सिंह कॉलेज इत्यादि अनेकों कॉलेज अपने शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए जाने जाते थे, आज उनकी हालत किसी से छुपी हुई नहीं है।
सरकारी विद्यालय इनलोगों के शासन से पहले बेहतर कार्य कर रहे थे। तब किसी ने कोई विशेष राज्य की मांग नहीं की। क्या विशेष राज्य का दर्जा जातिवादी राजनीती को पोषित करने के लिए मिलनी चाहिए ? नितीश ने जातिवादी राजनीती का सोशल इंजीनियरिंग करके एक बेंचमार्क तैयार किया है जो राष्ट्रीयता के खिलाफ है और तुष्टिकरण को बढ़ावा देती है।
अपने समाधान यात्रा के दौरान उन्होंने जिन परियोजनाओं का निरिक्षण किया है उसमें से एक नल जल, हरियाली योजना है। नल जल, हरियाली योजना पर कहीं काम हुआ है तो कहीं हवा-हवाई है।
ऐसा लगता है कि राज्य में जब जब नितीश के नेतृत्व में सरकार को पलटी मारनी होती है तब-तब नितीश किसी यात्रा पर निकल जाते है। शायद यह समाधान यात्रा जनता की समस्याओ के समाधान के लिए नहीं बल्कि अपनी कुर्सी बचाने हेतु समाधान ढूंढने के लिए है। लेकिन अब बिहार की जनता ने इनको बहुत दिनों तक बर्दाश्त कर लिया है। शायद यह समाधान यात्रा इनकी राजनीति से विदाई यात्रा साबित होने वाली है। हम इस तथाकथित समाधान यात्रा पर नज़र रखे हुए हैं और बिहार के हित के परिप्रेक्ष्य में इसका विशद विश्लेषण करेंगे। – संजय कुमार एवं एस के सिंह @समर्थ बिहार (Photos from Google and social media)