इस कजरी पर कजरी की यादें कुछ विशेष उमड़ रही है। इस वर्ष 2 सितंबर को हमारा कजरी त्यौहार हुआ। कजरी का मिर्ज़ापुर में स्थानीय अवकाश ज़िलाधिकारी द्वारा घोषित किया गया था। यह मिर्ज़ापुर का विशिष्ट त्यौहार है। कजरी में गाँव मुहल्ले की लड़कियाँ सबके घर जा कर बहुओं के साथ, हाथ से हाथ बांध कर कजरी गाने की परंपरा तो अभी भी कुछ कुछ चल रही है।

सभी घरों से नाग पंचमी के दिन बोई गई जरई, मिट्टी के पिण्ड सहित तालाब /गंगा जी में डुबो कर मिट्टी के पिण्ड को बहाने और जरई ला कर पिता तथा भाई के कान पर खोस कर अपना नेग लेने की प्रथा भी काफ़ी कुछ चल ही रही है। यह घर की लड़कियों का अधिकार है। कजरी तो मूलतः उन्हीं का त्यौहार है।

कजरी के पहले वाली रात तो रतजगा, कजरी गायन, नीम के पेड़ पर झूले झूलना होता ही रहा है। इस रात मेरे कछवा गाँव में लड़कियाँ हाथी घोड़े, बाजे गाजे के साथ बारात भी निकालती रही हैं। पूरा आयोजन उन्हीं का होता रहा है। पुरुषों की भागीदारी नगण्य।

कुछ लड़कियाँ पुलिस वर्दी पहन किसी के घर पुरुषों को डांट डपट करने की ठिठोली भी करती थीं। काफ़ी कुछ बदल रहा है। इस साल भी रतजगा हुआ। लड़कियों ने बारात तो नहीं निकाली परंतु डीजे रात भर बजता रहा। उस कारण मैं भी नहीं सो पाया। कजरी के दिन सुबह ही जरई माई को लेटा दिया गया। मान लिया गया कि उनके विसर्जन का समय आ गया।

गाँव मुहल्ले के सभी ननद भाभियों का त्यौहार है कजरी। महिलायें अब भी अपने पतियों का नाम नहीं लेती हैं। साल में इसी एक दिन ननदें कजरी गा गा कर भाभियों से उनके दूल्हे का नाम पूछती हैं। बहुएँ काफ़ी कुछ देवर आदि का नाम लेने के बाद अन्त में पति का नाम बताती ही हैं। इस एक दिन तो नाम लेना ही पड़ता है। शायद इसलिये भी कि यदि साल में एक बार भी नाम नहीं लिया तो कहीं वक्त ज़रूरत पर भी वे याद न कर पाएँ।

तुलसी ने वन गमन के समय रास्ते में जानकी जी से ग्राम बहुओं से राम के बारे पूछवाया कि वे आपके कौन हैं तो शायद कजरी का ही समय रहा होगा !

सास तो बहुओं की माँ नहीं सरकार साहब होती हैं। मेरी माँ, दादी को सरकार साहब ही कहती थीं। मेरे बड़े बेटे की बहुत इच्छा थी कि उसकी पत्नी उसके माँ को सरकार साहब ही कहे परंतु उसकी माँ इस संबोधन को लेने के लिए तैयार नहीं हुई। वह बेटे और बहू दोनों की माँ ही रहना चाहती थी। सरकार साहब का संबोधन बेटे के ही गले पड़ गया। कभी कभी कोंकणी का बबुना भी हो जाता है।

कजरी बेटी, बहन, भाभी सबका त्यौहार है। रक्षा बंधन तो ब्राह्मण गुरुजनों द्वारा धर्म रक्षा सूत्र बाँधने का त्यौहार रहा है। धर्मों रक्षति रक्षतः। यजमान धर्म की रक्षा के वचन से बंधे। धर्म उसकी रक्षा करेगा। सिनेमा ने इसका स्वरूप ही बदल दिया है !

– राम नारायण सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *