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प्रयागराज, UP, 26 जुलाई 2022: इलाहावाद का नया नाम प्रयागराज में 10 जून को अटाला चौक पर जुमे की नमाज़ के बाद प्रदर्शन और पथराव किया गया था, जिसमें लगभग आधा दर्जन पुलिस वालों और कई दर्जन नागरिकों को चोटें आई हैं। कई दोपहिया और चारपहिया वाहनों में तोड़फोड़ की गई थी। 11 जून की भोर में 70 लोगों के खिलाफ नामजद और 5000 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज हुई थी। इसमें लगभग 150 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिसमें कई नाबालिग भी हैं।

पुलिस द्वारा इस घटना का ‘मास्टरमाइंड’ वेलफेयर पार्टी के पदाधिकारी जावेद मोहम्मद को बताया गया। उसे 10 जून की रात 8.30 बजे घर से ही पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी पत्नी और बेटी को कानून का उल्लंघन करते हुए रात में 12.30 बजे थाने पर ले जाया गया और 33 घण्टे बाद 12 जून को सुबह 9.30 पर एक रिश्तेदार के घर पर छोड़ा गया। (PUCL की पूरी रिपोर्ट पढ़ने अथवा डाउनलोड करने के लिए पेज के निचे जाएँ)

प्रयागराज में 10 जून को घटी घटना के पीछे 27 अप्रैल 2022 को भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट में इस्लाम धर्म के पैगम्बर मोहम्मद पर टिप्पणी थी। जिससे देश भर के मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा नुपुर शर्मा को गिरफ्तार करने की मांग करने लगा। 3 जून को शुक्रवार, जुमे के रोज़, जिस दिन देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी प्रयागराज में आना था, कानपुर में दंगा भड़काया गया।

पुलिस सक्रिय हुई और वहां तुरंत बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई। इसके बाद का जुमा 10 जून को था। कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा बिना किसी नाम के सोशल मीडिया पर नमाज़ के बाद भारत बंद की अपील भी की गई और साथ में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आह्वान किया जा रहा था। इलाहाबाद में 9 जून की रात से ही अटाला और करेली की मस्जिदों के आसपास चौराहों पर भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गयी थी।

PUCL ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि “इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय महिला आयोग में शिकायत पत्र भेजा जा चुका है और मामले की जांच चल रही है। 12 जून को ही जावेद मोहम्मद का घर बुलडोजर से ढहा दिया गया। इलाहाबाद में घटी यह घटना पूरे देश में ही नहीं विदेशों तक में निंदा का कारण बनी।

पुलिस पर यह भी आरोप लगाये गये कि उसने फर्जी गिरफ्तारियां की हैं, पूरे मामले में गैरकानूनी तरीका अपनाया गया है और यह पूरा घटनाक्रम नागरिकता आंदोलन, CAA और NRC के विरोध के आन्दोलन में शामिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक बड़ी साजिश है।”

इस कार्यवाही के लगभग 15 दिन बाद पुलिस महकमे ने उमर खालिद, शाह आलम, जीशान रहमानी, आशीष मित्तल और फजल खान को फरार घोषित कर उनके ऊपर 25 हज़ार का ईनाम घोषित कर दिया। ईनाम घोषित करने वाले ऐलान में यह भी कहा गया कि ‘उन्हें पकड़ने के दौरान यदि मुल्ज़िमों को चोट आती है या उनकी जान भी चली जाती है तो उन्हें पकड़ कर लाने वाले के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जायेगा।’

पुलिस की यह घोषणा मानवाधिकार संगठनों और व्यक्तियों द्वारा पुलिस की कार्यवाही की आलोचना का कारण बना। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के अनुसार “किसी भी इनकाउन्टर में शामिल होने की वजह से प्रमोशन और ईनाम की कार्यवाही गैरकानूनी है, इससे गैर न्यायिक हत्यायें और अराजकता बढे़गी।”

इसी कारण मानवाधिकार पर सक्रिय संगठन पीयूसीएल ने इस घटना और मामले की जांच करने का निर्णय लेकर एक जांच कमिटी बनाकर जाँच शुरू किया, जिसमे श्रीवल्लभ मिश्र, आनन्द मालवीय, अविनाश मिश्रा, सीमा आज़ाद, मनीष सिन्हा, सोनी आज़ाद और विश्वेस राजरत्नम सदस्य हैं, इन्होंने स्थानीय गाइड के रूप में अनवर आज़म और मोहम्मद आक़िब को शामिल किया।

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