नई दिल्ली : गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों, बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह और माता गुजरी के असाधारण साहस और बलिदान को याद करते हुए भारत सरकार 26 दिसंबर को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में ‘वीर बाल दिवस‘ मनाया। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी लगभग तीन सौ बाल कीर्तनियों द्वारा प्रस्तुत किए गए ‘शबद कीर्तन’ में भी शामिल हुए।

वीर बाल दिवस’ कार्यक्रम में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, “वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि शौर्य की परकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती। वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि दस गुरुओं का योगदान क्या है? देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान क्या है? वीर बलिदान दिवस हमें बताएगा कि भारत क्या है? भारत की पहचान क्या है?”

उन्होंने कहा, “औरंगजेब के आतंक के खिलाफ गुरु गोबिंद सिंह जी पहाड़ की तरह खड़े थे, लेकिन ज़ोरावर सिंह साहब और फ़तेह सिंह साहब, जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगबेज और उसकी सल्लतन की क्या दुश्मनी हो सकती थी। दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गई।” वो इसलिए क्योंकि औरंगबेज और उसके लोग गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे। जिस राष्ट्र में उसकी नई पीढ़ी जोर जुर्म के आगे घुटने टेक देती है उसका आत्मविश्वास और उसका भविष्य अपने आप मर जाता है।”

छोटे साहेबज़ादों के शहीदी दिवस को केंद्र सरकार द्वारा ‘वीर बाल दिवस’ घोषित करने के बाद विवाद शुरू हो गया। जिस पर कुछ सिख विद्वानों ने इसे सिख धर्म के आंतरिक मामलों में दख़ल बताया और सरकार से इस फ़ैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की थी।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ‘वीर बाल दिवस’ के नाम को लेकर एतराज़ जताते हुए 25 दिसंबर की शाम को मीडिया से कहा था कि, “मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाने का एलान किया है, जबकि ‘वीर बाल दिवस’ नाम लिया जाता है तो साहिबज़ादों का नाम और उनके बलिदान का ज़िक्र नहीं आता। इस नाम में साहिबज़ादों और शहादत शब्द जोड़ने की मांग की गई थी। सरकार द्वारा ऐसा करने के संकेत भी दिए गए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया”।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि, ”वे प्रधानमंत्री की भावनाओं की क़द्र करते हैं, लेकिन छोटे साहिबज़ादों की शहादत को बाल दिवस तक सीमित करना सिख भावनाओं और परंपराओं के अनुरूप नहीं है।”

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य किरणजोत कौर ने शहीद दिवस को दिन का नाम देने की जगह स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कराने की मांग की। साहिबज़ादों की शहादत को नज़रअंदाज़ करते हुए ग़ैर सिख सरकार ने छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस का नाम ‘वीर बाल दिवस’ रखा है। मोदी सरकार ने इसे बच्चों का खेल बना लिया है। धार्मिक शब्दावली में छोटे साहिबज़ादों के लिए बाबा शब्द का इस्तेमाल होता है और किसी ग़ैर सिख को यह अधिकार नहीं है कि वह धार्मिक शब्दावली से छेड़छाड़ करे।”

खालसा के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि “सरकार को सिखों के धार्मिक मामलों में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है।” दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा था कि देश और दुनिया साहिबज़ादों की शहादत के इतिहास को जानेगी। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस घोषणा का स्वागत किया है। दमदमी टकसाल के प्रधान हरनाम सिंह खालसा ने ‘वीर बाल दिवस’ मनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़ैसले की सराहना की है। शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के नेता परमजीत सिंह सरना ने बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह की शहादत को आधिकारिक मान्यता दिए जाने का स्वागत किया। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब स्टडी सेंटर के निदेशक डॉक्टर अमरजीत सिंह ने कहा, “मैं भारत सरकार के इस फ़ैसले की सराहना करता हूं।” (चित्र साभार DD news)

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