बिहार के पटना में बाबा बागेश्वर के धीरेंद्र शास्त्री के दरबार का आयोजन बिहार के 32वर्षों में एक ऐतिहासिक हुआ। रातदिन जातीय और सांप्रदायिक राजनीति में डुबाया गया बिहार, इस एक धार्मिक आयोजन से बिहार की आम जनता खुले में ताजी सांस ली।

इधर भारत एक बार फिर से अपनी सनातन पहचान को बनाने के लिए अग्रसर है। इस कार्य में लाखों करोड़ों लोगों के प्रयास के साथ साथ दैवीय कृपा भी शामिल है। कालांतर में भारत के ऋषियों के तप का प्रभाव ही रहा जब पूरी दुनिया के देशों को भीषण त्राशदी से गुजरना पड़ा, भारतवर्ष ने अपने मौलिक गरिमा को बनाये रखा।

आज बिहार के कुछ राजनेता और राजनैतिक दल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से श्री बागेश्वर धाम के बाबा श्री धीरेन्द्र शास्त्री का विरोध कर रहे हैं, यह उनके षड्यंत्रकारी, दंगाई और कुंठित मानसिकता को दर्शाता है।

बिहार के वे राजनितिक दल जो दशकों से सत्ता का सुख भोग रहे हैं और विकास को प्राथमिकता नहीं देकर समाज को बांटने के लिए जातिगत गणना और वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीती को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे थे, वे अब अपने को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए श्री बागेश्वर धाम के बाबा श्री धीरेन्द्र शास्त्री के कथा का विरोध कर रहे हैं। राष्ट्र और धर्म की बात करनेवाले श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी की कथा में मीडिया के अनुसार दस लाख लोग एकसाथ उपस्थित हुए। यह बिहार के जनमानस की धार्मिक एवं सनातनी संस्कृति के रुझान का एक प्रतीक है।

राजनीतिक दल और उनके नेता जो इस कथा का विरोध कर रहे हैं उनको सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि अब लोग उनके तुष्टिकरण की राजनीती को नहीं चाहते हैं और सनातन संस्कृति इस राष्ट्र के हर व्यक्ति में मौजूद है। जरूरत है उसको जगाने की।

अगर आस्था को थोड़े देर के लिए किनारे भी कर दिया जाय तो लोगों की इतनी बड़ी उपस्थिति यह दर्शाती है कि आमलोग अपनी समस्या का निदान सरकार से न पाता देखकर देव शरण में जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

बिहार की राजद और सहयोगी दलों की सरकार ने पिछले तीन दशकों में तुष्टिकरण के द्वारा मुसलमानों को साधने के लिए इस्लामिक आतंकवाद की सहयोगी संगठन पीएफआई (PFI) को जानबूझकर फलने फूलने दिया और अपने एजेंडा को आधिकारिक रूप से बढ़ाया।

क्या यह विडंबना और हास्यास्पद नहीं है कि ऐसे राजनेता और राजनितिक दल श्री धीरेन्द्र शास्त्री की कथा का विरोध कर रहे हैं ? अगर संवैधानिक रूप से भी इस तथ्य को समझा जाय तो उनका विरोध संविधान प्रदत्त धार्मिक और सांस्कृतिक प्रचार प्रसार के अधिकार के खिलाफ है। जो कि गैरकानूनी है। बिहार में सुशासन में राजद मंत्री तेजू ने अपनी लंपट दंगाई सेना से पटना में धीरेंद्र शास्त्री के पोस्टर फाड़े, कालिख पोती और पोस्टर पर 420चोर लिखा, जबकि जनाब खुद ही सजायाफ्ता चारा चोर परिवार से हैं।

बिहार के कुछ राजनितिक दलों के प्रवक्ता उस समय भी चुपी साधे बैठे थे जब बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरित मानस का मजाक उड़ाया था। कुछ तथाकथित प्रगतिशील दलों के प्रवक्ता उस समय इस पर बोलने से बचते रहे। बिहार के अधिकांश राजनितिक दल, खासकर राजद केवल जातिगत और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी अपने अपने इलाको में रामकथा का आयोजन करें। ताकि इन राजनेताओं और राजनितिक दलों के तुष्टिकरण की राजनितिक जमीन खिसक जाय।

समर्थ बिहार अगले महीने से अलग अलग जगहों पर रामकथा का आयोजन करेगा। -संजय कुमार एवं एस के सिंह ‘समर्थ बिहार

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