पाकिस्तानी नोबेल प्राइज विजेता भौतिकविद डॉ अब्दुस सलाम और प्रो अनिलेंद्र गांगुली

पाकिस्तानी नोबेल प्राइज विजेता भौतिकविद डॉ अब्दुस सलाम और प्रो अनिलेंद्र गांगुली

बात दो देश की नहीं बल्कि दो अलग अलग धर्म के गुरु और शिष्य के बीच रिश्ते का भी है, साथ ही इस्लाम में जातिय भेदभाव की हिंसक घृणा का भी है। वर्ष 1979 में पाकिस्तान के भौतिकविद डॉ अब्दुस सलाम को नोबेल प्राइज़ मिलने के बाद अपने गुरु की बहुत याद आने लगी। डॉ अबदुस सलाम ने भारत सरकार से निवेदन किया कि उनके गुरु प्रोफ़ेसर अनिलेंद्र गांगुली को खोजने में उनकी मदद करे।

प्रो अनिलेंद्र गांगुली ने डॉ अब्दुस सलाम को लाहौर के सनातन धर्म कॉलेज में गणित पढ़ाया था। प्रो अनिलेंद्र गांगुली से मिलने के लिए डॉक्टर अब्दुस सलाम को 2 साल का इंतजार करना पड़ा और 19 जनवरी 1981 को कलकत्ता में उनकी मुलाकात अपने गुरु गांगुली से हुई।

Professor Abdus Salam, of Imperial College of Science and Technology, shared the 1979 Nobel Prize for Physics with Americans Sheldon L. Glashow and Steven Weinberg.

प्रो गांगुली भारत विभाजन के बाद लाहौर छोड़कर कलकत्ता आ गए थे। जब डॉ अब्दुस सलाम अपने गुरु गांगुली से मिलने उनके घर पहुंचे। वे बहुत वृद्ध और कमज़ोर हो चुके थे, उठ कर बैठ भी नहीं पा रहे थे। डॉ अब्दुस सलाम ने अपना नोबेल पुरस्कार का मेडल निकाल कर प्रो गांगुली को देते हुए कहा कि सर यह मेडल आपके द्वारा दी हुई शिक्षा के साथ मेरे अंदर भरे गए गणित के प्रति प्रेम का परिणाम है।

अब्दुस सलाम ने वह मेडल गांगुली के गले में डाल दिया और कहा सर यह आपका प्राइज़ है, मेरा नहीं। पाकिस्तान के भौतिकविद का अपने गुरु के प्रति ऐसे समर्पण ने स्पष्ट कर दी कि भले ही देश विभाजित हो गया था, लेकिन भारतीय परंपरा के उसके मूल्य और उसकी आत्मा अभी भी ज़िंदा थी।

विभाजित देश और धर्म की सीमा के पार जाकर अपने गुरु को इस तरह से मान और महता देना यह बताता है कि यही वह सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार होता है जो एक गुरु अपने शिष्य से अपेक्षा करता है।

लेकिन पाकिस्तान और पाकिस्तानियों ने प्रोफेसर अब्दुस को खूब प्रताड़ित किया। क्योंकि वह अहमदिया थे यानी कादियानी थे। पाकिस्तान में उनके ऊपर कई बार हमले किये गए और पाकिस्तान ने उन्हें पाकिस्तानी मानने से इनकार कर दिया था। सिर्फ जीवित ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी उन्हें प्रताड़ित किया गया। उनके कब्र पर लिखी शिलापट को पाकिस्तान सरकार के आदेश से हटवा दिया गया। यह सब सिर्फ इसलिए डॉ अबदुस के साथ हुआ था क्योंकि वह अहमदिया मुस्लिम थे। (साभार #इतिहासनामा)

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