Monkeypox-virus

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नई दिल्ली, 28 जुलाई 2022: मंकीपॉक्स से पीड़ित मरीज के घाव के सैंपल से इस बीमारी के वायरस में अलग करने में ICMR पुणे की लैब ने सफलता हासिल कर ली है। अब भारत में ही इस बीमारी का इलाज ढ़ूंढ़ना आसान हो गया है। अब इस वायरस के सैंपल से देश के वैज्ञानिक देशी वैक्सीन बना सकेंगे।

बरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर प्रज्ञा यादव

मनुष्यों में मंकीपॉक्स की पहचान सबसे पहले वर्ष 1970 में अफ्रीकन यूनियन के देश रिपब्लिक ऑफ कांगो Republic of the Congo में एक 9 साल के लड़के में हुई थी। यहाँ 1968 में चेचक, स्मॉल पॉक्स को समाप्त कर दिया गया था। उसके बाद से इसके अधिकांश मामले ग्रामीण और वर्षावन क्षेत्रों में आए।

आमतौर मंकीपॉक्स के संक्रमण से लक्षणों की शुरुआत 6 से 13 दिनों तक होती है, लेकिन यह 5 से 21 दिनों तक हो सकती है। बुखार, तेज सिर दर्द, नाक और होठों में सूजन, पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और एनर्जी की कमी जैसे लक्षण इसकी विशेषता है, जो पहले स्मॉल पॉक्स की तरह ही नजर आते हैं। इसके साथ ही त्वचा का फटना आमतौर पर बुखार दिखने के 1 से 3 दिनों के भीतर शुरू हो जाता है। दाने गले के बजाय चेहरे और हाथ-पांव पर ज्यादा होते हैं। यह चेहरे और हाथों की हथेलियों और पैरों के तलवों को ज्यादा प्रभावित करता है।

ICMR पुणे लैब की बरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर प्रज्ञा यादव कहती हैं कि मंकीपॉक्स का वायरस दो अलग अलग जेनेटिक डीएनए से मिलकर बना है। हमें मरीज के सैंपल से वायरस के अलग कर लेने में मिली सफलता से अब इस बीमारी के खिलाफ रिसर्च आगे बढ़ाने और वैक्सीन बनाने में भारत को बड़ी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि हमने वैक्सीन निर्माताओं, दवा बनाने वाली कंपनियों और शोध संस्थानों को साथ मिलकर काम करने के लिए आमंत्रित किया है। (चित्र साभार ANI और गूगल)

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