Samarth-Bihar

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“बिहार की बदहाली को दूर करने के लिए बिहार से बाहर बसे बिहारियों को भी कुछ हद तक जिम्मेवार माना जा सकता है। यह वर्ग अपने स्वार्थ में लिप्त होकर राज्य और राष्ट्र के जिम्मेदारी से दूर हो गया है, वे बिहार में फ़ैल रहे अंधकार और कुव्यवस्था को बिहार की अनंत नियति मान उसके खिलाफ संघर्ष से पलायन करते रहे। बिहार इस अन्धकार और कुव्यवस्था का पर्याय हो गया।”

पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से बिहार कुशासन से ग्रस्त है तथा राजनीतिक कारणों से जातिगत स्वार्थ में रहकर अपने राष्ट्रीयता के बोध को खोता जा रहा है। इसके लिए केवल राजनीतिज्ञों को ही दोष नहीं दिया जा सकता। राजनिति करने वालों ने बिहार से बाहर की ट्रेन की संख्या में इजाफा करके मज़दूरों का पलायन कराकर बिहार के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया।

बिहार की विभिन्न सत्ताएं शिक्षा, रोजगार और बुद्धिजीवियों के खिलाफ रही। उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर चरवाहा विद्यालय जैसे पिछड़ी और प्रगति विरोधी विचारप्रणाली को स्थापित किया। पटना विश्वविद्यालय को ख़त्म करना इसका उदहारण है। इनके समय बिहार की डिग्री बिहार से पढ़कर बाहर निकले छात्रों को अपमानित कराती थी। बिहार पिछड़ेपन का सिरमौर होता गया।

बिहार की कथित प्रगतिशील व क्रांतिकारी ताकतें इस वैचारिक-राजनितिक पिछड़ापन के सिद्धांत की वाहवाही करती रही। बुद्धिजीवियों के लिए अपना भाग्य खुद निर्धारित करने के लिए छोड़ दिया गया। परिणाम स्वरूप पढ़े लिखे लोग बाहर जाकर बसते गए। बिहार में बाहर से अच्छे लोग तो आये नहीं और यहाँ के अच्छे लोग बाहर चले गए। नतीजा, दूर्भाग्य और अंधकार ! बदतरी और बेहाली के रूप में बिहार की जनता के जीवन का हिस्सा बन गया।

आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की 5 वीं बड़ी इकॉनमी है, लेकिन अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से बड़ी है। क्योंकि कैलीफोर्निया के सिलीकन वैली में पूरी दुनिया से उत्तम ब्रेन (Brain) जाता है। उसी प्रकर बैंगलोर में भारत से अच्छे ब्रेन के लोग अपना करियर बनाने जाते हैं। बिहार में अवसर की कमी और कुशासन के कारण अच्छे ब्रेन का पलायन होता रहा।

पिछले कई शासनों में बिहार में भ्रष्टाचार को बढ़वा मिला और सरकारी तंत्र आम आदमी से उदासीन होता गया। जिसके कारण लोग यहाँ पर उद्यम लगाने से बचते रहे। शिक्षा हासिये पर जा खड़ी हुई। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों को बर्बाद किया गया तथा शिक्षा के नाम पर मिड डे मिल, पोशाक और साइकल के वितरण को अहम बताया गया। शिक्षण के काम को छोड़ शिक्षा के नाम पर शिक्षक को हर एक काम जैसे जनगणना, शराब बंदी जैसे काम में लगाया दिया गया। बिहार में ले-दे कर मूलरूप से कृषि ही सहारा है, उसे भी सरकार ने उपेक्षित रखा और नतीजा के तौर पर लोग बाहर पलायन करते रहे।

जातिगत जनगणना राष्ट्र के बोध से दूर ले जाता है, यह पिछड़ी विचारधारा की राजनितिक पार्टियों के लिए सत्ता का औजार बनेगा। यह हमें आपस में जातिय और नस्लीय संघर्षों में ही उलझा कर रखता है।

बिहार की बदहली को दूर करने के लिए बिहार से बाहर बसे बिहारियों को भी कुछ हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है। यह वर्ग अपने स्वार्थ में लिप्त होकर राज्य और राष्ट्र के जिमेदारी से दूर हो गया है, वे बिहार में फ़ैल रहे अंधकार और कुव्यवस्था को बिहार की अनंत नियति मान उसके खिलाफ संघर्ष से पलायन करते रहे। बिहार इस अन्धकार और कुव्यवस्था का पर्याय हो गया।”

बिहार भारत का ह्रदय है ! जबतक बिहार में राष्ट्र के प्रति चेतना जागृत नहीं होगी, तब तक भारत भी राष्ट्रीयता से दूर रहेगा। बिहार में राष्ट्रीयता और सुशासन के लिए बिहार से बाहर गये बिहारियों को आना होगा और यहाँ की स्थिति को बेहतर करने हेतु भाग लेना होगा !

बिहार के लोगों को खासकर जो बिहार के बाहर रह रहे हैं, उनको इसमें एक सामजिक, आर्थिक और राजनितिक रूप से सुधार हेतु लगना होगा।

– एस के सिंह (समर्थ बिहार)

6 thoughts on “बिहार में राष्ट्रीयता तथा सुशासन : एस.के. सिंह

  1. बिल्कुल सही बात आपने कही है । घर की समस्याएं घर के लोग ही ठीक करते हैं जैसे बिहार या फिर हमारा देश । बिहार की समस्याएं बिहार के लोग हीं ठीक कर सकते हैं । उसी तरह देश की समस्याएं देश के लोग हीं ठीक करे विदेशी नहीं । विदेशी या बाहर के लोग तो लूटेंगे और बर्बाद करते हैं, इतिहास हमें यही बताता है ।

    1. धन्यवाद सर! कुछ आर्टिकल भी भेज कर हमारी मदद करें।

  2. Sir, Thanks a lot for analysing the real causes for backwardness of Bihar. Shall be grateful if you provide the social, economic, educational and empowerment status of Bihar prior to 30 yrs back. Simultaneously please provide the probably necessary steps to overcome the problems and to convert Bihar into a place of Bahar that is happiness

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