Premkumar Mani

भारत का पूरा इतिहास फिर से लिखा जाना चाहिए

तुर्क तुर्क थे और मंगोल मोगल या मुगल बन गए थे. मुगलों का मूल चंगेज खान था,जो नाम से तो मुस्लिम प्रतीत होता है, लेकिन समानी मूल का था, जिसका सम्बन्ध मंगोलिया से था. समानी बौद्धों की शाखा थी, जिसका सम्बन्ध संभवतः श्रमण शब्द से है. तैमूर तुर्की लोहार था. बाबर का लहू – रिश्ता मंगोलों और तुर्कों दोनों से था . लेकिन उसने खुद को मोगल ही कहा. हालांकि उसका चगताई वंश मूलतः तुर्क था.

भारत में जो इस्लाम बारहवीं-तेरहवीं सदी में आया वह अरबी इस्लाम नहीं था. भारत में अरबी इस्लाम 629 और 712 ईस्वी सं में आया और केरल और सिंध के एक हिस्से में सिमटा रह गया. केरल में उसे व्यापारियों ने लाया और सिंध में मुहम्मद बिन कासिम के हमलों ने,जिसकी एक अलग कहानी है.

अरबी इस्लाम ईरान में आकर अपनी प्रवृति बदल चुका था. लेकिन तुर्कों और मोगलों ने उसे अपने सैनिक ढाँचे के अनुकूल बनाया. वह बन भी गया. लेकिन इस्लाम की एक अलग लहर सूफीवाद के रूप में कश्मीर और फिर भारत के दूसरे हिस्सों में आई. यह ईरानी संस्कृति से मिलजुल कर एक अलग ही स्वरूप की हो गई थी. इस तरह भारत में दो तरह का इस्लाम आया.

एक अरबी राष्ट्रीयता और तुर्क-मोगल बहशीपन में पगा कुरान केंद्रित इस्लाम जो हमलावर की शक्ल में आया और दूसरा ईरान में विकसित सूफी इस्लाम जो मोहब्बत के विराट फलक के साथ आया. इन दोनों में उतना ही अंतर है जितना भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म में. बल्कि और अधिक. सूफियों ने इस्लाम को कुरान और मस्जिद से मुक्त रखा. मजारों और कव्वाली पर केंद्रित किया. कोई कट्टरता नहीं रखी. मजारों पर हिन्दू-मुस्लिम सभी आज तक जाते हैं. भारत का अस्सी फीसद इस्लाम इसी से जुड़ा रहा. खुसरो और मलिक मोहम्मद जायसी इसके ही खूबसूरत प्रतीक हैं. इस इस्लाम को हमारी तथाकथित गंगाजमुनी संस्कृति ने कुचल दिया, क्योंकि यह हिन्दू द्विजों और मुलिम असरफों का संयुक्त सांस्कृतिक मोर्चा था.

अंग्रेज या रोमन अलग प्रवृति के थे. इनकी प्रकृति-प्रवृति पर अभी नहीं जाकर भारत पर उनके प्रभावों को देखें. आधुनिक भारत वस्तुतः उनकी देन है. कार्ल मार्क्स ने भारत में ब्रिटिश राज को इतिहास का अवचेतन साधन माना है. वह सही हैं. भारत को अंग्रेजों ने एक सूत्र में पिरोया. यदि वे नहीं आए होते भारत भी मध्य एशियाई मुल्कों की तरह इस्लामी जहालत झेल रहा होता.

तुर्कों ने हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था रौंद दी थी. जिस समय ऑक्सफ़ोर्ड बन रहा था, हमारा नालंदा-विक्रमशिला ध्वस्त हो रहा था. अंग्रेजो ने शिक्षा, न्याय, स्वास्थ्य, स्थानीय स्वशासन और नगरीकरण को गति दी. उन्हें स्वरूप प्रदान किया. मार्क्स ने जर्मन कवि गेटे की एक पंक्ति उद्धृत की है, जिसका अर्थ है वह दुःख महान है जो एक महान सुख का का साधन बनता है. अंग्रेजों का भारत आना वैसा ही महान दुःख था.

अंग्रेजों ने हिंदुस्तान को जो दिया उसे नजरअंदाज करना कृतघ्नता होगी. वह एकमात्र विदेशी ताकत थी, जो आई और हमें समृद्ध कर चुपचाप लौट गई. उन्होंने न कोई मंदिर गिराया, न मस्जिद. उन्होंने नबाबों और पेशवाओं की अय्याशी जरूर ख़त्म कर दी.

मेकाले ने अंग्रेजी शिक्षा से भारत को जोड़कर अरबी-फ़ारसी और संस्कृत की सामंती-पुरोहिती जकड़न से ज्ञान को मुक्त किया ताकि जनसामान्य और स्त्रियां ज्ञान से जुड़ सकें. जैसे कभी संस्कृत ने अपने उत्थान काल में पूरा भारत एकसूत्र में बाँधा था ( बौद्धों ने भी तीन सौ साल बाद ही संस्कृत को अपना लिया था.) वैसे ही अंग्रेजों ने अंग्रेजी जुबान से भारत को वैश्विक धारा से जोड़ दिया. भारत की सांस्कृतिक कूपमंडूकता ख़त्म कर उसे ग्लोबल चेतना से जोड़ दिया.

भारत का पूरा इतिहास फिर से लिखा जाना चाहिए. उसे हमने गुलाम मानसिकता से लिखा है, आज़ाद तबियत से लिखा जाना वक़्त की जरूरत है.

-प्रेमकुमार मणि (Premkumar Mani)

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