A-Demon-in-the-Pentagon-Kalishwar-Das.

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A Demon in the Pentagon‘ के लेखक कालीश्वर दास से मनु चौधरी (‘World 360 with Manu‘ टॉक शो) ने उनकी उक्त फिक्शन बुक पर एक साक्षात्कार लिया।

पुस्तक परिचय — ”मुहम्मद ने झाड़ी के पार हिटलर के भूत को देखा पर, लोगों को बताया कि उसने दैवदूत को देखा और तब उसने इसी भूत के कहने पर इस्लाम की शुऱुआत की। ताकि सनातन हिन्दू धर्म, ईसाईयत और बौद्ध धर्म का सर्वनाश किया जा सके।”

इसी पुस्तक में लेखक आगे लिखते हैं कि दुनियां में किसी को यह नहीं पता कि मूसा को मानने वाले यहूदी और सूर्यपूजक इजिप्शियन फराओ कौन थे ? हकीकत में यही इजिप्शियन फराओ अंतिम सूर्यवंशी राजा बृहद्वल के वंशज थे। वहीं दूसरी तरफ यहूदियों का संबंध द्वारिका नगर के उन्हीं ग्वाल खानदान से है जो भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता माने गए। बलराम के वंशज थे जो कि महाभारत के युद्ध के 300 सालों के बाद पश्चिम एशिया की ओर अंतिम सूर्यवंशी राजा बृहद्वल के वंशजों के बाद प्रस्थान कर गए थे औऱ वही आगे चलकर आज के यहूदी कहलाए। जबकि आज के इस्लाम को मानने वाले कुरैशी वही कुरुवंशी हैं। और इसका सबसे बड़ा प्रमाण खुद पैगम्बर मुहम्मद हैं। जिनका जन्म एक कुरुवंशी कबीले में हुआ था। जिसे वे आज भी कुरैश कहा करते हैं। इसका एक और सत्य प्रमाण कुर्द जनजाति के रुप में आज भी हमारे सामने मौजूद है जो अपनी सनातन हिन्दु धार्मिक परंपराओं को मानते हुए इस्लाम के सामने झुकने से इंकार कर रहे हैं। “A demon in the Pentagon,” पुस्तक के लेखक श्री कालिश्वर दास से बात की।

प्रश्न 1 – कालिश्वर दास जी जहां एक तरफ दुनियां हिटलर के नाम तक से नफरत करती है वहीं आपने इसी विवादास्पद हिटलर को अपने फिक्शन बुक के कवर पृष्ठ पर अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन के नाम के साथ लिया है। इन दोनों में किसी प्रकार की रवायती मिलाप का सवाल ही पैदा नहीं होता। तो आपने यह कदम क्यों उठाया?

उत्तर — देखिए, वो कहते हैं न कि जो दिखता है वही बिकता है और जो विवादित होता है उसी पर लोगों का ध्यान जाता है। बेशक केवल यही मेरी मंशा तो नहीं थी पर थी। और वो इसलिए कि पुस्तक में कहीं भी अमेरिका के रक्षा मुख्यालय की अवमानना नहीं की गई है। ऐसा न तो इस काल्पनिक पात्र ने किया है औऱ न ही लेखक के रुप में मैंने किया है। कानूनी लिहाज से भी अमेरिका में ऐसा करना संभव था और दरअसल ऐसे मिलते-जुलते शीर्षकों पर भिन्न विषयों के साथ एकाधिक पुस्तकों का प्रकाशन पहले भी हो चुका है। ऐसे मामलों में पेंटागन और अमेरिकी सरकारें हमेशा से वयस्काना वर्ताव करती रही है और क्योंकि संवैधानिक रुप से यहां बोलने की आजादी भी है इसीलिए ऐसी पहल को वे संविधान की अदद अनुपालन के रुप में भी देखते हैं ।

चलिए अब आते हैं कि आखिर पेंटागन ही क्यों और हिटलर ही क्यों? ऐसा इसलिए कि हिटलर को मैंने हिटलर के रुप मात्र में न दिखा कर एक प्राग्एतिहासिक पात्र के रुप में दिखाया है जो वस्तुतः प्रकृति की नैसर्गिक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता आया है और इसी कारण उसका दैविय विधानों से विरोध रहा है। हिटलर को पेंटागन में दिखा कर मुझे अमेरिका के समाज में व्याप्त हुए पतन के बहुविध कारणों के बारे में भी बताने में सहूलियत हुई है। इससे अमेरिकी सहजता से समझ सकते हैं कि उनके बीच एक गुप्त शत्रु है जिसकी पोल लेखक ने खोली है और उन्हें सावधान रहने की जरुरत है। पर, इस रुप में मेरा फोकस भारत की भूला दिए गए कल को उकेरना भी था और उस आदि भारत की तुलना मैंने एक ऐसी आद्य शक्ति के रुप में किया है जो यूरोप और मध्यपूर्व से आई अब्राहमिक शक्तियों से बुरी तरह आहत हुई पड़ी थी। हिन्दूगण स्वंय इसका तिरस्कार करते आ रहे थे क्योंकि उनमें उनके सम्मान की चेतना का ह्रास हो चला था। सो, इस रुप में हिटलर ने पेंटागन में यह बात कह कर सारी दुनियां को इस सत्य से आगाह करवाया है कि हम भारतवंशी ऐतिहासिक रुप से महान क्यों हैं और कैसे हैं। इसे आप यूं भी समझ सकती हैं कि यह वास्तव में हिन्दु पुनर्जागरण का साहसिक प्रयाण ही है जिसे यदि बगैर हिटलर और पेंटागन के नाम के साथ विश्व इतिहास की तुलना करते हुए प्रस्तुत न किया जाता तो शायद ही लोगों का ध्यान हमारी महान विरासत और उपलब्धियों की ओर जाता।

प्रश्न 2 – तो ठीक है इस पुस्तक की मूल कथानकता के संबंध में कुछ बताइए।

उत्तर — मूल कथानकता में विशेष यही है कि अमेरिका में कोविड के चलते हुए भारी क्षति और अमेरिकी सरकार की चुप्पी से आहत लेखक उपायों के लिए सोचता हुआ-उंघता हुआ सपने में पेटागन में आ जाता है जहां उसकी मुलाकात हिटलर से हो जाती है। अपने बेहद विवादास्पद परिचयादि के बाद हिटलर की मांग होती है कि लेखक उसे दैव-दर्शन के उस सूत्र से अवगत करवाए जो उसके अनुसार वैज्ञानिक व्याख्या के लायक है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो हिटलर उसे दुनियां-संसार की अनंत कथा को तब तक बताता रहेगा जब तक कि उधर असली दुनियां में डॉक्टर उसे ब्रेनडेड घोषित कर उसका अंतिम संस्कार न करवा दें। यह एक भयानक धमकी थी पर लेखक ने ईश्वर पर भरोसा रखते हुए हिटलर को तब तक उलझाए रखा जबतक कि साधना की ब्रह्म-मुहूर्त का उदय न हो गया जब उसे इस अतिनिद्रा की अवस्था से निकल भागने का अवसर मिला जिसे हिटलर के प्रेत ने सारी रात थाम रखा था। उस सारी रात हिटलर ने एक प्राकृतिक आद्यशक्ति के रुप में जो कुछ भी बताया वही भारत का भुला दिया गया इतिहास है जो वस्तुतः लेखक द्वारा पिछले तीस सालों का विशाल संग्रहण है। प्राचीन साधना, आधुनिक विज्ञान और विश्व इतिहास के तामझाम में लिपटी यह भारत की ऐसी कहानी है जिसे आप जैसे ही समझना प्रारंभ करेंगी, कहानी का रोमांच आपको स्वंय ही संबोधित करना प्रारंभ कर देगा।

प्रश्न 3 – क्या आपको किताबें पढ़ना पसन्द है और आपने आखिरी किताब कौन सी पढ़ी थी? 

उत्तर — बहुत पसंद तब तो अपनी वाली लिख सका न। पुस्तकों और पेन्स का शौक मुझे बचपन से रहा है। लेकिन मैं इस मामले में कुछ अलग सा हूँ। सीख कर पढ़ने के लिए मैंने किसी नामी-गिरामी साहित्यकारों का ही नहीं बल्कि अज्ञात या सामान्य साहित्यकारों पर भी नजरें रखा है। मुझे अज्ञेय औऱ महादेवी वर्मा सहित मुंशी जी, मुंशी प्रेमचंद जी की कृतियों ने प्रभावित किया है। सामान्य या अज्ञात लेखकों को जानने के जतन में मैंने विख्यात राजनीतिज्ञों के विचार भी पढ़े जिसमें लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नेतागण भी थे। साउथ के कुछ साहित्यकारों को मैंने अमेरिका आने के बाद पढ़ा है और वो भी विदेश के कुछ विवादित विचारों व लेखकों की कृतियों को समझने, समाहित करने के उद्देश्य से ताकि मेरा अपना कोश विस्तृत होता रहे। मैं उतने सारे लोगों के नाम नहीं गिना सकता पर, यकीनन वे सैकड़ों में हैं। 

प्रश्न 4 – आपके जीवन में किस व्यक्ति ने आपको सबसे अधिक प्रेरित किया है और क्यों? 

उत्तर — कहिए तो मैंने किसी को अपना आदर्श नहीं माना है। “मैंने जो पढ़ा-सीखा मैं वही हूँ” का सिद्धांत मेरे साथ लागू होता है। पर आपने पूछा है तो मुझे इंकार नहीं करना चाहिए कि महान वैज्ञानिक लिवर, अलबर्ट आइंस्टीन और फ्रेंच दार्शनिक सार्त्र से कहीं न कहीं मैं जरुर प्रभावित रहा हूँ। वो भी तब जबकि मैं उनके विषय से संबद्ध शिक्षाधारी कभी न रहा। जरुरी नहीं कि सोशियोलॉजी का विद्यार्थी भौतिकी व रसायन शास्त्र में रुचि न रखे पर भारत में मेरी इस रुचि का अपने ही लोगों ने मखौल उड़ाया था। सो, आदतन मैं गोपनीय रुप से उनके पीछे पड़ा रहा। आपके सवाल से आज उसकी पोल खुल गई है। इसके लिए क्षमा चाहूंगा।

प्रश्न 5 – हमें उस समय के बारे में बताएं जब आपकी सोच के अनुसार चीजें आपके पक्ष में नहीं रही।

उत्तर — मेरी सोच के अनुसार चीजें मेरे पक्ष में नहीं रह रही होती हैं, तो मैं यह समझता हूँ कि मैं अधिक विभिन्न दृष्टिकोण और विचार की आवश्यकता है। यह मेरी सोच को विस्तारित करने और अधिक समझने का मौका प्रदान कर सकता है। इससे मैं नए दृष्टिकोण प्राप्त कर सकता हूँ और अपनी सोच और विचारों को विकसित करने का अवसर मिलता है।

यदि चीजें मेरे पक्ष में नहीं हैं, तो मैं उन्हें एक अवसर के रूप में देखता हूँ जिससे मैं सीख सकता हूँ और अपने विचारों को मजबूती देने का प्रयास करता हूँ। यह मेरी सोच को और विशाल और समर्पित बना सकता है और नई सीख और नए दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 6 – कालीश्वर दास जी मेरा आखरी सवाल, जीवन में सफलता और असफलता को आप किस तरह से देखते हैं ? 

उत्तर — जीवन में सफलता और असफलता को मैं व्यक्तिगत और पेशेवर परिपरिणामों का मूल्यांकन के रूप में देखता हूँ। सफलता व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति, संतोष, और आत्म-संवाद के साथ जुड़ी होती है, जबकि असफलता अक्सर एक अवसर से सीखने और आगे बढ़ने का एक अवसर प्रदान करती है। यह एक सीखने और विकास की प्रक्रिया हो सकती है, और यह अकसर व्यक्तिगत और पेशेवर विकास का माध्यम बनती है।

सफलता और असफलता व्यक्तिगत अनुभवों और परिपरिणामों का हिस्सा होते हैं, और ये जीवन के विभिन्न पहलुओं पर निर्भर करते हैं। यह व्यक्तिगत परिपरिणामों के साथ आता है और आपके खुद के मानकों और मूल्यों के साथ सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए।

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लेखक ने अपने इसी पुस्तक “द डीमन इन द पेंटागन” के सभी तीन खण्डों में उस रहस्य से भी पर्दा उठाया है जहां तक अभी भी दुनियां भर के दार्शनिक-वैज्ञानिक और शोध संस्थाऐं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण परमाणु अनुसंधान के लिए यूरोपीय संगठन, CERN वर्षों से अरबों डॉलर्स लगाता रहा है। आप सभी जानते हैं कि यही CERN गॉड पार्टिकल्स पर भी रिसर्च कर रही है जो दुनिया में सबसे बड़ी कण भौतिकी प्रयोगशाला संचालित करता है। इसी विषय पर जब हमने पुस्तक के लेखक श्री कालिश्वर दास से बात की कि वो कौन सा रहस्य है जहां तक CERN या कोई भी दार्शनिक-वैज्ञानिक अभी तक नहीं पहुंच पाया है पर, जिसका खुलासा आपने अपनी पुस्तक में किया है। तब लेखक कहते हैं कि वह रहस्य है method of attaining divinity tangibly which is a scientificization of divine. अगर आसान भाषा में आपको बताउं तो CERN जिस प्रोजेक्ट पर वर्षों से अरबों डॉलर लगा चुका है और अभी भी उस लक्ष्य तक पहुंचने का दावा नहीं कर सकता जिसे हमारे प्राचीन भारत की आगम विद्या सदियों पहले ही हासिल कर चुकी है। अगर ईश्वर की वैज्ञानिकता को आप साक्षात देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको दो मुख्य बिन्दूओं पर ध्यान देना होगा जिसमें प्रथम है आइंस्टाइन व अन्यान्य वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का संपूर्णता (theory of entirety) के नए सिद्धांत के साथ स्थापित सिद्धांन्तों का पुनरीक्षण व दार्शनिक सिद्धांतों के गुह्य रहस्यों में छुपी वैज्ञानिकता की पुनर्स्पष्टता। – कालीश्वर दास (A demon in the Pentagon)

मुहम्मद ने हिटलर के भूत के कहने पर इस्लाम की शुरुआत की : कालीश्वर दास (A demon in the Pentagon)
@ManuChaudhary

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