‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “जिंदगी दौड़ती है” …

जिंदगी दौड़ती है – डॉ. प्रेरणा उबाळे

जिंदगी दौड़ती है
जिंदगी खिलती है
खिलखिलाती है
चमकती-चहकती है
मुस्कुराती-गाती है
हँसती-बोलती है।

खुश हो कल-कल बहती
दिवाकर को पकड़ने उछलती
जिंदगी सुधांशु-सी रोशनी फैलाती
कौमुदी-सी मदहोश करती
बैरी-सी ठुकराती
मीत-सी संभालती
बादल-सी गरजती
मलय-सी सहलाती
सवालों के चक्रव्यूह बनाती
कहीं उलझाती-परखती
उत्तरों के मायाजाल बनाती
कहीं सुलझाती-बुझाती

जिंदगी अभीमोद के साथ
वटवृक्ष की छाया देती
छाँह उसकी महाकाय
मानो समाया ईशतत्त्व
हाथों से रेत है जब छूटती
पैर जमाती दलदल में भी
गुहारती नहीं
पुकारती नहीं
लड़खड़ाते हुए
लीलाओं को समझती
ज्ञानदीप जलाती l

जिंदगी समरस होकर
हर्षोल्लास मनाती
अडिगता मिलती जाती
स्थितप्रज्ञ होती जाती l

जिंदगी थमती नहीं थाम लेती
थक कभी जाती नहीं
श्रमविंदु से बनाकर लीक
चलने लगती, दौड़ने लगती

जिंदगी दौड़ती है
जिंदगी खिलती है
खिलखिलाती है
चमकती-चहकती
मुस्कुराती-गाती है
हँसती-बोलती है , जिंदगी दौड़ती है …. (08 अक्टूबर 2023)

डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale

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