यह एक तथाकथित बलात्कारी की जिन्दगी की प्यास है, जिसने भारत से नेपाल की एक अविस्मर्णीय यात्रा की। १९९९ से इलाहाबाद से शुरू हुई वामपंथी राजनीति की इस गैर-मामूली यात्रा में कवि के भीतर बसे राजनैतिक कार्यकर्ता को एक नेपाली कवयित्री से प्रेम, फिर एक फर्जी मनगढ़ंत बलात्कार के केस में तिहाड़ जेल जाना पड़ा। तिहाड़ जेल का यह अस्तित्व कवि के मानस में अंतर व बाह्य संघर्ष उसे जीवन के किनारे पर पहुंचा देता है। कवि के अस्तित्व के इस विकट और विकल्पहीन संघर्ष से इस स्वयं भू कवि का जन्म हुआ।
‘स्वयं भू कवि की नेपाल डायरी’ कविता संग्रह ४ भागों में विभक्त है- प्रस्तावना, मिले, सुर, मेरा-तुम्हारा। पहले खंड “प्रस्तावना” के तहत हिंदी में नेपाल विमर्श का एक संक्षिप्त लेखा जोखा प्रस्तुत है।
दुसरा कविता संग्रह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू में अध्ययन के दौरान कवि के मानसिक आंदोलनो, वहां के राजनीतिक संघर्ष, नेपाल में घटित क्रांति प्रयोग के दौरान कवि के जीवन में तूफान पैदा करने वाली एक घटना से हुई समग्र उथल-पुथल को दर्शाती कविताएँ सामील है।
‘एक स्वयंभू कवि की नेपाल डायरी’ के बाद यह हिंदी कविता का दूसरा संग्रह है। – दयानंद कनकदंडे