जागो बिहार जागो पार्ट- 4, बख्तियारपुर का नाम बदलो "आचार्य राहुल भद्रसेन नगर" करो

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बिहार की वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम के बाद प्रदेश सोशल मीडिया पर हंसी-मज़ाक़ का पात्र बना हुआ है। लोग चुटकुले और व्यंग्य के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। जैसे “बिहार एक मात्र राज्य है जहां मुख्यमंत्री नहीं बल्कि विपक्ष बदलता है।” इसी प्रकार एक व्यंग्य में नीतीश कुमार तेजस्वी को बोल रहे हैं कि बेटा जितनी क्लास तक तू पढ़ा है उतनी बार मैं मुख्यमंत्री का शपथ ले चुका हूँ। हद तो यह है कि बिहार की पलटिमार राजनीति के कारण कुछ लोग सलाह दे रहे हैं कि अब प्रदेश की राजधानी का नाम ‘पटना’ के स्थान पर “पलटनिया” कर देनी चाहिये।

कहना न होगा कि इस स्थिति के लिये राजनीतिक दलों के नेता ज़िम्मेदार हैं। बिहार की “पलटिमार” राजनीति के बाद नेताओं ने भविष्य में एक-दूसरे के साथ नहीं जाने की क़समे खाते हैं। पर पुनः कुछ अंतराल के बाद क्या क्या होता है उससे सभी परिचित हैं। नितीश से नैतिकता की उम्मीद करना लोगों ने बहुत पहले ही छोड़ दिया था। और अब सोशल मीडिया पर नितीश के साथ-साथ भाजपा के नेता भी ट्रोल हो रहे हैं। क्योकि कुछ महीने पहले ही अमित शाह ने बिहार में सार्वजनिक मंच से घोषणा किया था कि नितीश के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए हैं। शायद यही कारण रहा होगा कि भाजपा के समर्थन से नितीश के मुख्यमंत्री शपथग्रहण समारोह में अमित शाह नहीं आये। जो सुशील मोदी कभी अपने को उप मुख्यमंत्री बनाये रखने के लिए नीतीश को पीएम् मटेरियल कहते थे, उन्होंने अब भी कहा कि राजनीति में दरवाजे किसी के लिए हमेशा के लिए बंद नहीं किये जाते हैं।

बिहार भाजपा के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने भी सार्वजनिक मंच से घोषणा की थी कि जबतक वे नितीश को मुख्यमंत्री के पद से नहीं हटाएंगे तबतक पगड़ी नहीं उतारेंगे। ठीक इसके उलट सम्राट चौधरी ने नितीश के डिप्टी के रूप में पगड़ी बांधकर ही शपथ लिया। भाजपा का चाल चरित्र और चेहरा ये लोग अपनी करनी और वक्तव्य से उजागर कर रहे हैं।

२०२५ बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता खेला करेगी। पलटीमार राजनीति का खामियाज़ा भाजपा और नितीश दोनों को २०२५ के चुनाव में भुगतना पड़ेगा। बिहार की जनता अब वर्तमान राजनितिक दलों के पलटीमार पॉलिटिक्स से त्रस्त हो चुकी है और अब बिहार नए राजनितिक विकल्प की तलाश में है।

राजनितिक प्रेक्षकों का मानना है कि २०२४ लोकसभा चुनाव के बाद और २०२५ विधानसभा चुनाव से पहले नितीश एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। कुछ दिन पहले ही केंद्र की भाजपा सरकार ने अतिपिछड़ों के वोट के लिए बिहार के पूर्व राजनेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया क्योकि २०२४ लोकसभा का चुनाव नजदीक आ गया है।

कोई आश्चर्य नहीं होगा कि भाजपा सरकार २०२४ में सत्ता में आने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव २०२५ जीतने के लिए नितीश को भी पद्मविभूषण से सम्मानित कर दे। भाजपा के शीर्ष नेता पहले ही कह चुके हैं कि नितीश समाजवाद को आगे बढ़ा रहे हैं। अंतर केवल इतना है कि तुष्टिकरण में मुलायम नितीश से पहले समाजवाद को बढ़ाने के लिए पद्मविभूषण से सम्मानित हो गए क्योकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवाद को पहले दिखाना जरुरी था।

नितीश ने लालू को छोड़ने के लिए राजनीति में परिवारवाद का बहाना बनाया। लगता है कि नितीश की यादाश्त अब कमजोर होने लगी है। चिराग पासवान और पशुपति पारस भी परिवारवाद की राजनीति को आगे बढ़ा रहे है जो कि नितीश के NDA गठबंधन के सहयोगी है। क्या जीतन राम मांझी राजनीति में अपने लड़के को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं?

नितीश आवश्यकतानुसार भ्रष्टाचार और राजनीति में परिवारवाद का जुमला इस्तेमाल करते हैं। लालू यादव का राजनीति में परिवारवाद तो राबड़ी देवी के समय से ही चल रहा है। नितीश जब पलटी मारते हैं तो उनको स्पष्ट कहना चाहिए कि अपनी कुर्सी बचाये रखने के लिए हम पलटी मार रहे हैं, बिहार की जनता कहती कि चलो महत्वकांक्षी है मगर सच बोलता है।

अगर बिहार के सत्तारूढ़ दल मगरमच्छ हैं, तो बिहार की जनता पानी है। पानी के बिना मगरमच्छ का कोई अस्तित्व नहीं है। मगरमच्छ थूथन को बगल में घुमाकर जलीय जानवरों को अपने जबड़ों में पकड़ लेते हैं। उनके पास मुंह के चारों ओर गड्ढों में स्थित संवेदनशील दबाव रिसेप्टर्स होते हैं जो गति का पता लगाते हैं; ये संरचनाएँ अंधेरे या गंदे पानी में शिकार को पकड़ने में सहायता करती हैं। ठीक ऐसी प्रकार बिहार की राजनीति में गति को भांपते हुए जदयू और राजद कमजोर राजनितिक दलों को अपने जबड़े में फसाकर उनका शिकार करती है।

समर्थ बिहार राज्य में नए पोलिटिकल स्टार्टअप्स का स्वागत करता है क्योंकि सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल अब बिहार में अप्रासंगिक हो गए हैं। २०२५ में नए राजनीतिक स्टार्टअप को बिहार में राजनीतिक जगह भरने के लिए योजना बनाने की जरूरत है। समर्थ बिहार इस दिशा में पहल करेगा। – संजय कुमार व एस के सिंह (समर्थ बिहार)

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