जागो बिहार जागो पार्ट- 4, बख्तियारपुर का नाम बदलो "आचार्य राहुल भद्रसेन नगर" करो

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बिहार की जातीय सर्वे जो कि फ़र्ज़ी आकड़ो पर तैयार किया गया वह अब लालू और नितीश का सरदर्द बनकर तैयार हो रहा है। लालू और नीतीश को किसी भी राजनीतिक गठजोड़ से समाप्त करना असंभव लग रहा था पर जातीय जनगणना ने इनके अस्तित्त्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अतिपिछड़ी जातियां (EBC) जिनकी आबादी इस सर्वे के अनुसार ३६% से ज्यादा है वे अब सरकार के खिलाफ मैदान में है और अब यादव और कुर्मी जातियों जैसी आरक्षण के द्वारा समान प्रतिनिधित्व कि मांग कर रही है। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट इस सन्दर्भ में प्रासंगिक है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग को 2 अक्टूबर, 2017 को नियुक्त किया गया था और यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया था कि ओबीसी में अधिक पिछड़े लोग आरक्षण के लाभों से लाभान्वित हो सकें। रोहिणी आयोग का कार्य यह भी अध्ययन करना था कि ओबीसी के भीतर लाभों को कैसे विभाजित किया जाना चाहिए और 2633 ओबीसी समूहों की सूची को अद्यतन करना चाहिए। रिपोर्ट के परिणामस्वरूप प्रमुख ओबीसी जातियों को आरक्षण का लाभ खोना पड़ सकता है। सरकार द्वारा रोहिणी आयोग को २७% आरक्षण कोटा को सभी पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों में सामान रूप से लाभ कैसे मिले इसके तरीके कि खोज पर रिपोर्ट बनाने को कहा गया था। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अब महामहिम राष्ट्रपति को मिल गया है।

सरकार तो आँकड़े के हेर-फेर से तो बनती है पर जब समाज को आँकड़ो के माध्यम से विश्लेषण करते हैं तो इसका नुक़शान राजनीति से लेकर राज्य तक होता है। अंकगणित में बड़ा वर्ग/जाति न केवल सरकार और राजनीति में अपने हिस्से की बात करता है बल्कि इसके लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता है।

अमेरिकी गणितीय इतिहासकार जे.आर. न्यूमैन अपनी पुस्तक द वर्ल्ड ऑफ मैथमेटिक्स में कहते हैं कि “जहाँ तक गणित के नियमों का संबंध वास्तविकता से है, वे निश्चित नहीं हैं; और जहां तक वे निश्चित हैं, वे वास्तविकता का उल्लेख नहीं करते हैं। यह उन लोगों के लिए सावधानी का एक शब्द हो सकता है जो बिहार जाति सर्वेक्षण को सामाजिक न्याय का गणितीय आधार मानते हैं और भविष्यवाणी करते हैं कि यह भारत के विपक्षी गुट को केंद्र में सत्ता में ला सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सर्वेक्षण के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए, भाजपा रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लागू कर सकती है और जातियों के उपवर्गीकरण को वास्तविकता बना सकती है। तो, यह रिपोर्ट क्या है जिसके बारे में कुछ पर्यवेक्षकों का दावा है?

ईबीसी 130-विषम जातियों का एक समूह है जो ओबीसी स्पेक्ट्रम के निचले पायदान पर हैं, जिन पर यादवो और कुर्मियों का वर्चस्व है। ईबीसी में मल्लाह, नाई, नोनिया, धानुक, कहार आदि हैं। पहचान की राजनीति जो आरक्षण और पिछड़ी जाति के दावे पर आधारित है, जिसने बिहार में नीतीश की जद (यू) और लालू प्रसाद की राजद और यूपी में मुलायम सिंह की सपा जैसी समाजवादी पार्टियों को इन राज्यों में एक चौथाई सदी तक हावी रहने की अनुमति दी ।

राष्ट्रीय परिदृश्य पर नरेंद्र मोदी के आगमन से मंडल-कमंडल द्वंद्व कुंद हो गया और नई भाजपा हिंदुत्व और कल्याणवाद के मिश्रण के साथ ओबीसी तक पहुंच गई। उल्लेखनीय है कि बीजेपी की संघीय सरकार अस्सी करोड़ से अधिक लोगों को खाद्यान्न और रोज़गार दे रहा है जिसमें अधिकांशतः अति-पिछड़ा वर्ग से आता है। मोदी सरकार के कई निर्णय इस वर्ग के एम्पावरमेंट को दर्शाता है यह भी कि अति-पिछड़ा को सत्ता में अपनी हिस्सा भी उन जातिओं से लेनी है जिनकी पूरी राजनीति उनके कुनबे तक सीमित है। ज्ञातव्य है कि मंडल आयोग के लागू होने के बाद जिन जातिओं का समूह सत्ता में आया है वह आज आर्थिक- सामाजिक रूप से अगड़ी पंक्ति में खड़ा है तथा अति- पिछड़ों का शोषक वर्ग के रूप में भी उभरा है। अतः जातिय जनगणना का लाभ लेना लालू-नीतीश के लिये आसान नहीं होगा।

महत्त्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब किसी दल या उनके नेताओं का “दृष्टिकोण” बड़ा नहीं होता है तो वे इसी प्रकार की राजनीति का सहारा लेते हैं पर इसकी दूरगामी परिणाम उनके हित में नहीं होता है। जातीय सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित होने के साथ हीं जातीय अंकगणित के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी माँगने की शुरुआत हो गई है। उल्लेखनीय है कि बीजेपी इस बात को जानती थी अतः उसने नीतीश के साथ अपने दल के दो अति-पिछड़ा को उप-मुख्यमंत्री बनाया। इसका लाभ उसे लोक सभा चुनाव में अवश्य मिलेगा।

बिहार में जाति सर्वेक्षण के नतीजे जदयू-राजद को नए सिरे से अति पिछड़े वर्ग की लामबंदी का मौका दिया है । विपक्षी भारत गठबंधन आने वाले दिनों में देशव्यापी जाति जनगणना कराने के लिए भाजपा पर दबाव बनाने के लिए सर्वेक्षण का उपयोग करने की तैयारी में है।

सर्वेक्षण के नतीजे ओबीसी कोटा को 27% से अधिक बढ़ाने और ईबीसी के लिए कोटा के भीतर कोटा के लिए मांग को बढ़ा देंगे। न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग, जो 2017 से OBC कोटा -वर्गीकरण; के प्रश्न की जांच कर रहा था, ने जुलाई के अंत में अपनी रिपोर्ट सौंपी – इसकी सिफारिशें अभी तक सार्वजनिक नहीं हैं। बिहार सर्वेक्षण अन्य राज्यों को भी इसी तरह की कवायद करने के लिए प्रेरित कर सकता है। सर्वेक्षण डेटा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई आरक्षण पर 50% की सीमा पर लंबे समय से चली आ रही बहस को भी फिर से खोल देगा। यह सीमा प्रशासन में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए लगाई गई थी, और अदालतों ने राज्यों द्वारा इसका उल्लंघन करने के कई प्रयासों को रोक दिया है।

यद्यपि रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अभी सार्वजानिक नहीं हुई है परन्तु विशेषज्ञों का मानना है कि २७% कोटा को १० + १० + ७ में बाटने की अनुशंषा की गई है। जिनको अभी तक प्रभावी रूप से आरक्षण का लाभ एकदम नहीं मिला उनको १०%, नयी जातियां जो अभी आरक्षण के दायरे में नहीं हैं उनको १०% और OBC की प्रभावशाली जातियां जो अभी तक आरक्षण का लाभ उठाकर आगे बढ़ी उनको ७%। समर्थ बिहार OBC आरक्षण कोटा को अति पिछड़े जातियों में सामान रूप से बाटने का समर्थन करता है ताकि अति पिछड़ी जातियां जिनकी आबादी ३६% है उनको आरक्षण का सही रूप में लाभ मिल सके। – संजय कुमार व् एस के सिंह, समर्थ बिहार

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