जागो बिहार जागो पार्ट- 4, बख्तियारपुर का नाम बदलो "आचार्य राहुल भद्रसेन नगर" करो

जागो बिहार जागो पार्ट- 4, बख्तियारपुर का नाम बदलो "आचार्य राहुल भद्रसेन नगर" करो

(बिहार में महागठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना कराने का अपना वादा पूरा कर रिपोर्ट को प्रकाशित कर दिया। जातीय जनगणना के रिपोर्ट के जारी करते ही जातीय जनगणना के तरीके पर आलोचना शुरू हो गई। साथ ही EBC और अनुसूचित जातियां इस जनगणना को लेकर सड़क पर आंदोलन करने निकल पड़े हैं। बिहार में इस जातीय जनगणना से बिहारी, समाज और राजनिति पर पड़ रहे प्रभाव तथा जनविचार को समर्थ बिहार ‘जागो बिहार जागो’ श्रृंखला के माध्यम से रख रहा है।)

०२ अक्तूबर २०२३ को बिहार सरकार द्वारा फर्जी जातीय जनगणना के आकड़ों को सार्वजानिक करके लालू और नीतीश ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि सारी जमीन वक्फ बोर्ड का है, सिर्फ कुआं ठाकुर का है। इसके साथ ही ठाकुर के कुआं में ठाकुर की लाश डालने की कोशिश की गयी है।

निश्चित रूप से इस फर्जी जातीय सर्वे के माध्यम से वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने की कोशिश की गयी है। लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि इस फर्जी जातीय जनगणना को गढ़ कर नीतीश और लालू ने अपने पॉलिटिकल डेथ सर्टिफिकेटस पर हस्ताक्षर कर लिए हैं। बिहार के लगभग सभी वर्ग के लोग नीतीश द्वारा अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यह जातिगत जनगणना त्रुटिपूर्ण और अपूर्ण है। इसके साथ ही यह राजनीति से प्रेरित है इसलिए इसका विरोध हो रहा है।

दो अक्टूबर को जातिगत जनगणना को सार्वजनिक करने से पूर्व मनोज झा का बयान और उस पर क्रिया-प्रतिक्रिया लालू-नीतीश की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। ये जातिगत जनगणना से पूर्व प्रोफेसर मनोज झा से बयानबाज़ी कराकर बिहार के मानसपटल का आकलन कर रहे थे। खेद का विषय यह है कि जिस गांधी ने जात-पात के विरुद्ध संघर्ष किया उसी के जन्मदिन पर बिहार ने सार्वजनिक जीवन के निम्नतम बिंदु का परिचय दिया।

नितीश कुमार जब भाजपा से अलग होने का मन बना लिये थे तो उन्होंने जातीय जनगणना कराने की बात पर बल देना शुरू किया। उसके पहले वे अपने को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते रहते थे। पूरे भारतवर्ष में जब लोग हिंदुत्व की राजनीति की तरफ झुकाव कर रहे थे और राम मंदिर का निर्माण भी अयोध्या में प्रारम्भ हो गया था तब पिछडो और दलितों के वोट को भड़काने और अपने तीन दशक की असफलताओं को छुपाने के लिए लालू और नितीश ने जाती आधारित सर्वे को मंडल पार्ट -२ की तरह भुनाने की कोशिश में लग गए। यहीं से राजनितिक लाभ के लिए भाजपा सहित अन्य दल भी इसका श्रेय लेने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लग गए।

यह जातिगत जनगड़ना त्रुटिपूर्ण और अपूर्ण है, इसके साथ ही यह राजनीति से प्रेरित है। इसलिए इसका विरोध हो रहा है। इसे हमलोग इस लेख के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं –
इस जातिगत सर्वे के आकंड़े बता रहे हैं बिहार की कुल जनसंख्या करीब १३ करोड़ हैं, जिसमें सवर्ण १०.५% -(ब्राह्मण – 3.65%, भूमिहार – २.८७%, राजपूत – ३.४५%, कायस्थ – ०.६०%),

यादव – 14.26%, कोइरी – 4.21% , कुर्मी – २.८७%, बनिया -2.31%, बधाई -1.45%, धानुक – 2.14%, कहर – 1.64%, कानू -2.21%, कुम्हार -१.४०%, लोहार -०.६२%, नाई -१.५९%, मल्लाह -२.६०%, तेली -२.८१%,

अनुसूचित जाती -19.65%, अनुसूचित जनजाति – 1.68% और मुस्लिम – 17.7% हैं।

इस सर्वे के अनुसार बिहार में लगभग कुल २.८४ करोड़ परिवार हैं। अगर एक परिवार में पांच और छह सदस्य मानने पर कुल जनसँख्या १५ करोड़ के आसपास बैठ रही है। २०२२ में प्रकाशित मतदाता सूचि में ही केवल ७.१४ मतदाता हैं और आमतौर पर कुल जनसँख्या मतदाता सूचि में अंकित आकड़ो के दो गुना से भी ज्यादा होती है।

सवर्ण जाती के लोग जो की अभी तक कुल मिलकर लगभग १६% तक आकलन में थे, वे लगभग ५% कैसे कम हो गए? कुल मिलकर इसको ऐसा बनाया गया कि सवर्णो की आबादी कम कर के दिखाया जाय और बिहार की कुल आबादी को २ से ३ करोड़ कम करके दिखाए जाय। ताकि लोकसभा और विधानसभा के नए परिसीमन से बचा जा सके। साथ ही ये आकड़े १९३१ की जातिगत जनगणना और २०११ के आम जनगणना के आकड़ो से मेल नहीं करते हैं।

अति पिछड़ी जातियों में बहुत की जनसँख्या घटा कर दिखया गया है। करीब २ से ३ करोड़ की सवर्णो और अत्ति पिछडो की आबादी गायब कर दिया गया है। इसके माध्यम से मुस्लिमो को एक जगह और हिन्दुओ को जाती में उलझकर रख दिया गया है। इस प्रक्रिया को सरकार ने मात्र ११० दिनों के अंदर पूरा कर लिया है जो अविश्वश्नीय है। सरकार ने बताया कि जातिगत सर्वे का काम ०५ अगस्त को ही पूरा कर लिया गया था। जबकि हकीकत यह है कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में १८ अगस्त को बताया था कि अभी जातिगत सर्वे का काम अधूरा है। अब खुले तौर पर लोग समूहों में आकर बता रहे है कि उनके घर पर कोई सर्वे करने आया ही नहीं।

समर्थ बिहार इस फर्जी आकड़े को ख़ारिज करता है और लोगों के बिच जाकर बिहार सरकार के इस कुत्सित राजनितिक प्रयास का भंडाफोड़ करेगा। – संजय कुमार व् एस के सिंह, समर्थ बिहार

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