पिछले दो दशकों से भी ज्यादे समय से बिहार की सरकार समय-समय पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के लिए राजनितिक दबाव बनाती रही है। बिहार सरकार का तर्क है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार में कंपनियों को टैक्स में छूट मिलने से कंपनियां बिहार में निवेश करेगी जिससे राज्य में रोजगार बढ़ेगा। विशेषज्ञों और राजनितिक पर्यवेक्षको का मानना है कि बिहार राज्य विशेष राज्य के निर्धारित मापदंडो को पूरा नहीं करता है और बिहार में निवेश नहीं होने का सबसे बड़ा कारण राज्य की खराब कानून व्यवस्था और राजनीतक अस्थिरिता है जिसके कारण कंपनियां बिहार में निवेश नहीं करती हैं। बिहार सरकार की यह मांग अपने नाकामियों को छुपाने की एक कोशिश है और यह केंद्र पर दबाव बनाये रखने का एक राजनितिक हथकंडा है।

भारत सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा उन राज्यों को दिया जाता है जो कुछ मानकों को पूरा करते हैं- जैसे दुर्गम भूभाग में अवस्थित होना, अंतरराष्ट्री सीमा के साथ सामरिक स्थान की स्थिति में होना, प्रतिव्यक्ति आय काम होना, कम जनसँख्या घनत्व या बड़ी जनजाति की आबादी का होना, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन का होना इत्यादि। इसमें एक महत्वपूर्ण मानक राज्य वित् की गैर व्यवहार्य प्रकृति भी है।

मूलतः विशेष राज्य का दर्जा भौगोलिक और सामजिक – आर्थिक नुक्सान का सामना करनेवाले राज्यों के विकास में सहायता के लिए केंद्र द्वारा प्रदत एक वर्गीकरण है। 1969 में पांचवे वित् आयोग के अनुशंसा के आलोक में जम्मू कश्मीर, असम, और नागालैंड को विशेष श्रेणी के राज्यों का दर्जा प्राप्त हुआ। तीन राज्यों के बाद आठ (अरुणाचलप्रदेश , हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड ) अन्य राज्यों को भी इसमें शामिल किया गया।

यहाँ यह जानना आवयश्यक है कि विशेष श्रेणी के राज्यों को अन्य राज्यों को प्राप्त होनेवाले 60% या 75% कि तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में 90% धनराशि प्रदान किया जाता है और शेष धनराशि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है। विशेष श्रेणी के राज्यों को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर, कॉर्पोरेट कर में भी महत्वपूर्ण रियायते प्रदान की जाती हैं।

14वें वित् आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर राज्यों के लिए विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया। इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को कर विचलन के माध्यम से भरा जाय। केंद्र से कर राजस्व में राज्यों कि हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया गया जिसे वर्ष 2015 से लागू कर दिया गया।

पिछले दो दशकों से भी ज्यादे समय से बिहार की सरकार समय-समय पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के लिए राजनितिक दबाव बनाती रही है। बिहार सरकार का तर्क है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार में कंपनियों को टैक्स में छूट मिलने से कंपनियां बिहार में निवेश करेगी जिससे राज्य में रोजगार बढ़ेगा। विशेषज्ञों और राजनितिक पर्यवेक्षको का मानना है कि बिहार राज्य विशेष राज्य के निर्धारित मापदंडो को पूरा नहीं करता है और बिहार में निवेश नहीं होने का सबसे बड़ा कारण राज्य की खराब कानून व्यवस्था और राजनीतक अस्थिरिता है जिसके कारण कंपनियां बिहार में निवेश नहीं करती हैं। बिहार सरकार की यह मांग अपने नाकामियों को छुपाने की एक कोशिश है और यह केंद्र पर दबाव बनाये रखने का एक राजनितिक हथकंडा है।

अगर हम बिहार के विकास में बाधा के कारण और निवारण को समझना चाहते है तो यहां व्याप्त जंगलराज्य के अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र को सम्पूर्णता में समझने की जरूरत है। राज्य के प्रशाशनिक असफलताएं और व्याप्त भ्रष्टाचार के कारणों का पता लगान होगा। जब सरकार बिछड़ा वर्ग आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और अन्य वर्ग आयोग बना सकती है तो अविकसित रहने के कारण को जानने के लिए क्यों आयोग नहीं बन सकती है ?

एक आयोग क्यों नहीं इस बात की तहकीकात करे कि बिहार में पिछले दो दशकों में क्यों एक ही जाती और जिला विशेष के लोग अधिक संख्या में पुलिस और सरकारी प्रशाशन में आये ? शराबबंदी के बाद कितने लोग गावों और शहरो में पुलिस और प्रशासन से सांठ – गाँठ करके शराब की होम डिलीवरी में लगे हुए है ? राज्य का कितना पैसा शराब की होम डिलीवरी के माध्यम से नेताओं और प्रशासन में चला जाता है ? आमदनी कि गोपनीयता बनाये रखने के लिए बिहार के कितने मंत्री और अफसरों ने राज्य के बाहर निवेश किया है ? प्रशासनिक असफलता के कारण और निवारण के उपाय क्या है ? किन कारणों से बिहार से पलायन अनवरत जारी है ? किन कारणों से उच्च शिक्षा में गिरावट आयी और पटना विश्विद्यालय समेत अन्य महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों को किसने चौपट किया ?

ये सभी ऐसे प्रश्न हैं कि अगर इनके कारणों को बारीकी से समझ कर अगर एक बहस चलाया जाय तो पता चलेगा कि बिहार के विकास के लिए राज्य को विशेष दर्जा की जरुरत नहीं बल्कि विशेष सोच की जरुरत है। समर्थ बिहार विकास नहीं होने के पीछे कारणों के जानने के लिए एक श्वेत पत्र जारी करने का प्रयास करेगा। (संजय कुमार एवं एस के सिंह, समर्थ बिहार)

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