International-Anti-War-Day-अंतरराष्ट्रीय-युद्ध-विरोधी-दिवस

International-Anti-War-Day-अंतरराष्ट्रीय-युद्ध-विरोधी-दिवस

इंदौर : अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के बैनर में अंतरराष्ट्रीय युद्ध विरोधी दिवस पर परिचर्चा का आयोजन 1 सितंबर 2022 को इंदौर में किया गया। इस परिचर्चा का आयोजन सोशलिस्ट पार्टी, किसान मोर्चा, सीटू, महिला फ़ेडरेशन (NFIW), प्रलेस, एमपीबीईए (MPBEA), एटक (AITUC), एप्सो (AIPSO) ने सम्मिलित तौर पर किया था। संचालन रूद्रपाल यादव और आभार प्रदर्शन विवेक मेहता ने किया।

अंतर्राष्ट्रीय युद्ध विरोधी दिवस पर परिचर्चा में भाग लेते हुए AIPSO के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि “अमेरिकी साम्राज्यवाद एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था चाहता है और दुनिया के पिछड़े हुए कमजोर देशों पर यह कहकर हमले करता है कि वह वहां प्रजातंत्र स्थापित करना चाहता है। इराक और अफगानिस्तान की बर्बादी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं जहां पर्याप्त आर्थिक संसाधन होने के बावजूद जनता को बेतहाशा संकट झेलने पड़े हैं।

उन्होंने हाल में श्रीलंका में फैली बदहाली और रूस-यूक्रेन, अमेरिका और चीन के बीच चल रहे सामरिक युद्ध के पीछे के उन कारणों पर भी रोशनी डाली जिन्हें मुख्यधारा का मीडिया छिपाता है। उन्होंने लेनिन को उद्धृत करते हुए कहा कि जब दो साम्राज्यवादी देश आपस मे युद्ध करते हैं तो वही समय क्रांतिकारी ताक़तों के लिए उपयुक्त होता है कि वे साम्राज्यवाद की व्यवस्था को उखाड़ फेंकें। बिना साम्राज्यवाद के अंत के युद्धों का अंत नहीं होगा।”

गांधीवादी विचारक और वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी ने कहा कि युद्ध जनित विनाश और विध्वंस के स्थापित आर्थिक और राजनीतिक परिणामों के अलावा भी नये-नये दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वहां मेडिकल शिक्षा के लिए गए साधारण परिवारों के 20 से 25 हजार विद्यार्थी पढ़ाई अधूरी छोड़कर सुरक्षित भारत तो आ गए लेकिन अब उनका भविष्य अधर में लटक गया। आगे उन्होने कहा कि निशस्त्रीकरण तो वैश्विक स्तर पर चाहिए ही। साथ ही देश में विचारों से लेकर हर क्षेत्र में आंतरिक युद्ध चल रहा है वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हमें इस आंतरिक संघर्ष के लिए युद्ध स्तर पर जनता के बीच जाना होगा।

एप्सो ज़िला इकाई के उपाध्यक्ष विजय दलाल ने कहा कि प्रथम महायुद्ध से लेकर जितने भी युद्ध हुए सभी के मुख्य कारण आर्थिक, खासतौर से साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपने बाजार विस्तार की भूख व वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण शस्त्रों का व्यापार रहा है, इसलिए वो हमेशा दुनिया में तनाव चाहते हैं और हरेक देश द्वारा अपने बजट का सेनाओं पर अधिक से अधिक खर्च हो यह चाहते हैं ताकि हथियारों की मांग बनी रहे और उनकी खपत होती रहे।

यह दुनिया बगैर युद्धों के होती तो आज इस दुनिया में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं सोता। सोवियत रूस के बिखराव का एक बहुत बड़ा कारण अमेरिका से शस्त्रों और स्पेस की प्रतिस्पर्धा में होने वाला बजट का बड़ा हिस्सा जो उस देश की आबादी के विकास पर खर्च होना था व्यर्थ जाना था।

माकपा राज्य सचिव मंडल सदस्य कैलाश लिम्बोदिया ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध साम्राज्यवादी अमेरिका और नाटो समूह द्वारा थोपा गया है। इस युद्ध से रुस और चीन को कमजोर करने के मंसूबे थे मगर अमेरिका उसमें कामयाब नही हो सका।

उक्त चर्चा में इस परिचर्चा का सोशलिस्ट पार्टी (Socialist Party) के रामस्वरूप मंत्री, किसान मोर्चा (Kisaan Morcha) के अरुण चौहान, सीटू(CITU) के भगीरथ कछवाय, महिला फ़ेडरेशन (NFIW) की सारिका श्रीवास्तव, प्रलेस (PWA) के केसरी सिंह चिडार, वित्त निगम (FC) के सुनील चंद्रन, एमपीबीईए (MPBEA) के मोहन कृष्ण शुक्ला, बी एस सोलंकी, योगेन्द्र महावर, एटक (AITUC) के भारत सिंह ठाकुर, एप्सो (AIPSO), दिलीप कौल उपस्थित थे।

इस युद्ध विरोधी परिचर्चा के समापन में अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस पर एप्सो के विनीत तिवारी ने “परमाणु संयंत्र के इर्दगिर्द असैन्य क्षेत्र बनाने और युद्ध को संवाद के ज़रिए हल करने” का प्रस्ताव दिया, जिसे सर्वसम्मति से सभा द्वारा पारित कर दिया गया।

विनीत तिवारी

(विनीत तिवारी के प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित) (साभार newspuran)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *