दुमका, 10 जुलाई 2022: झारखण्ड का जामताड़ा जिला कभी साइबर अपराध के केंद्र और ऐसे अपराधियों के अड्डे के तौर पर कुख्यात हुआ था। यहाँ से अपराधी पूरे देश में बैंक खाताधारकों के डेटा चुराकर उनके खातों में जमा रकम निकाल लेते थे। काफी धर पकड़ के बाद यह अपराध का अड्डा शायद अब बंद हुआ है। अब इधर कुछ महीनों से जामताड़ा एक दुसरे वजह से अख़बारों और समाचार चैनलों व् सोशल मिडिया की सुर्ख़ियों में है।
फ़िलहाल मामला मुस्लिम समुदाय द्वारा अपनी आबादी का दबाब बनाकर सरकारी स्कूल में छुट्टी के दिन रविवार होती है उसे बदलकर जुम्मे (शुक्रवार) को करने का है।
सूत्रों के अनुसार इस तरह की करवाई लगभग दो वर्षों से चल रही है। स्थानीय मुस्लिम सरकारी स्कूलों के प्राचार्यों पर अपनी आबादी का दबाब दिखाकर ऐसा कर रहे है और ऐसी घटना लगभग 100 स्कूलों में हुआ है। इसके साथ ही वे स्कूलों में होने वाली प्रार्थना और उसके तरीकों को भी बदला है। ऐसी घटना झारखण्ड के गढ़वा जिला के कोरवाडीह में भी जबरन किया गया।
इस क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार शैलेन्द्र सिन्हा ने बताया कि यह खबर इस इलाके में कई वर्षों से चल रही है। किन्तु सरकारी स्कूलों में छुट्टी के दिन बदलने पर इधर राज्य सरकार चिंतित नहीं है। जामताड़ा विधायक डॉ. इरफ़ान अंसारी ने इस कृत्य की आलोचना की है और कहा है कि अगर ऐसा हुआ है तो गैरकानूनी है। लेकिन विधायक जी ने अभी तक इन स्कूलों और दबाब बनाने वाले ऐसे तत्वों पर किसी भी तरह की क़ानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं किया।
झारखण्ड सरकार में सहयोगी कांग्रेस पार्टी ने भी ऐसी घटनाओं की निंदा की है। बीजेपी नेता प्रतुल शाहदेव ने इस मामले कहा कि “राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की इन घटना पर चुप हैं। यह राज्य सरकार द्वारा सांप्रदायिक तुस्टीकरण की निति है और यह उसी का नतीजा भी है, जो क्षेत्रों में निचे भी दिखाई दे रहा है। जामताड़ा में 1084 एक हजार चौरासी सरकारी विद्यालय है, इसमें घोषित तौर पर सिर्फ 15 उर्दू विद्यालय हैं। जबकि 103 स्कुल ऐसे हैं जिनके नाम के आगे उर्दू लगाया गया है जो उर्दू विद्यालय नहीं है। जबकि से सामान्य विद्यालय हैं और इनकी छुट्टियाँ भी बदल दी गयी है। राज्य सरकार की तुस्टीकरण की निति इस हद तक है कि राज्य में जनजातीय भाषा में उर्दू को तो शामिल किया गया है लेकिन हिंदी को बाहर कर दिया गया है। गढ़वा के मामले में कहा गया था कि सम्बंधित व्यक्तियों और अधिकारीयों पर FIR किया जायेगा किन्तु अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं है”। जामताड़ा में बीजेपी प्रवक्ता रजिया नाज ने भी ऐसी घटनाओं की तीखी आलोचना की है और कहा है कि हमारा समाज बच्चों की शिक्षा पर जोड़ दे न कि ऐसी धार्मिक झगड़ों में प्रशिक्षित करे।
लेकिन दुमका के बीजेपी सांसद सुनील सोरेन ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर जामताड़ा जिलान्तर्गत करमाटांड़ व नारायणपुर प्रखंड के गैर अधिसूचित उर्दू विद्यालयों में रविवार की जगह शुक्रवार को होने वाली सप्ताहिक छुट्टी के मामले में संज्ञान लेने का आग्रह किया है। वहीँ गैर अधिसूचित उर्दू विद्यालयों के आगे नियमों को ताक पर रखकर उर्दू विद्यालय में परिवर्तित करने की कोशिश की गई है। यह साजिश कुछेक वर्षो से हो रही है। इन विद्यालयों में अल्पसंख्यक छात्रों के अलावे अनुसूचित जाति व जनजाति, पिछड़ा एवं सामान्य वर्ग के बच्चे भी अध्ययनरत है। जिनके मनोभाव पर प्रतिकुल असर पड़ रहा है। इस कारण गैर अधिसूचित उर्दू विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के बीच एकरूपता कायम रखने के लिए सप्ताहिक छुट्टी की यह परंपरा बदलने की आवश्यकता है। जहां करमाटांड़ व नारायणपुर प्रखंडन्तर्गत कई सरकारी विद्यालय में नियमों को ताक पर रखकर रविवार की जगह शुक्रवार को बच्चों को छुट्टी दी जा रही है। यह पूरी तरह से सरकारी नियमों का उल्लंघन है । कुल मिलाकर यह तुष्टीकरण का खेल है जिस पर अंकुश लगाना जरूरी है। पिछले दिनों समाचार पत्र व विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से यह मामला प्रकाश में आया है। खास बात यह है कि कई स्कूलों ने अपने नाम के आगे उर्दू शब्द भी जोड़ लिया है इससे पता चलता है कि इनकी मंशा सही नहीं है। सांसद ने केंद्रीय मंत्री को आग्रह किया है कि आप कृपया झारखंड सरकार से इस संबंध में रिपोर्ट ले और ऐसा कृत्य करने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई किया जाए ।
समाचारों के अनुसार झारखण्ड के कई जिलों में भी मुस्लिम आबादी बाहरी और माइग्रेंट है और यह पुरानी खबर है। झारखण्ड के अन्य इलाकों की तरह ही जामताड़ा में मुस्लिम आबादी वहां की आदिवासी और अनुसूचित आबादी से कई गुणा अधिक हो गयी है। और इसके कारण यह मुस्लिम आबादी स्थानीय आदिवासियों के जीवन में भी दखल देती है, उनके खेती, उपज और बाजार सहित संसाधनों पर भी कब्ज़ा जमा रहे हैं। यहाँ की मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा देश के अन्य मुस्लिम आबादी की तरह ही बाहरी और माइग्रेंट मुस्लिम की है, जो यहाँ आ कर बस गए और अपनी आबादी का विस्तार करती रही।