समर्थ बिहार

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‘इस सन्दर्भ में ज्ञान की बात यह है कि भाजपा जो पहले जदयू के कथित सुशासन में साथ थी और मीडिया के माध्यम से सुशासन को प्रचारित कर रही थी। और, उस समय का विपक्ष, जो कि सरकार के सुशासन के ढोल के पीछे असली खेल का पर्दाफाश कर रहे थे, दोनों ने अपने स्टैंड को बदल दिया।’

सूचना ज्ञान नहीं है। यह समझना आज के बिहार की राजनीतिक सन्दर्भ में बहुत जरूरी है। हमलोग दिन रात सूचना इकठ्ठा करने में लगे रहते हैं और उसको ही हकीकत मान लेते हैं। लेकिन सूचना उस कचरे की तरह है, जो कि हमलोग उससे अहम सूचना मिलने के बाद पुरानी सूचना को फेंक देते हैं।

सूचना का अपना महत्व है। लेकिन इसके साथ-साथ यह ज्ञान होना जरूरी है कि सूचना के पीछे की हकीकत क्या है। आज जो भी सूचना हमारे पास उपलब्ध होती है, इनमें से ज्यादा किसी खास मकसद से उपलब्ध कराई जाती हैं।

बिहार में खासकर पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से सरकार द्वारा सूचना को प्रबंध करके ‘सुशासन‘ को लोगों के बीच परोसा गया है। इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समुह को सरकारी विज्ञापन मिलने से, प्रसारित करने के लिए न चाहते हुये भी ‘सुशासन एवं विकास’ की खबर को सरकार के एजेण्डा के अनुसार चलाना पड़ा।

परिणाम यह हुआ कि लोगों के बीच सुशासन का ढोल पिटा गया और लोगों के दिल और दिमाग में यह बात बैठती चली गयी कि बिहार में पहले “जंगलराज” था और अब “सुशासन” कायम है। साथ ही यह भी प्रचारित किया गया कि बिहार में खूब विकास हो रहा है। आखिर अखबारों को भी अपने को चलाने के लिए सरकार के दबाव में उनकी सुशासन की बात को प्रबंध करना होता है। बिहार को इससे बहुत ही नुकसान हुआ। आम जनता के मन की वास्तविक स्थित प्रभावित हुई है।

इस सन्दर्भ में ज्ञान की बात यह है कि भाजपा जो पहले जदयू के कथित सुशासन में साथ थी और मीडिया के माध्यम से सुशासन को प्रचारित कर रही थी। और, उस समय का विपक्ष जो कि सरकार के सुशासन के ढोल के पीछे असली खेल का पर्दाफाश कर रहे थे, दोनों ने अपने स्टैंड को बदल दिया।

कल जो चुनावी रणनीतिकार, जो कभी ‘सुशासन’ के साथ थे, सुशासन बाबू ने कहा कि “उनको ए बी सी ABC का ज्ञान नहीं है, 2005 के बाद बिहार में बहुत काम हुआ है”।

अब चुनावी रणनीतिकार ने सही प्रश्न पूछा है कि सुशासन बाबू अपने ज्ञान को नीति आयोग को भी बतावें कि बिहार का कितना विकास हुआ है ? आखिर बिहार सबसे निचे क्यों है ? राज्य में 32 वर्षों के समाजवादी और सुशासन की सरकार रहने के बाद भी इतनी गरीबी और बेरोजगारी क्यों है ? बिहार की आधी जनता को 100 रुपया प्रतिदिन से ज्यादा क्यों नहीं मिल पा रहा है ?

यह चुनावी रणनीतिकार कभी सूचना इकठ्ठा करके जनविरोधी राजनीति का पोषण और सूचना के माध्यम से मतदाता के वोट को मैनेज करते थे, आज ज्ञान की बात करने लगे हैं ! और, कहते नहीं थक रहे हैं कि बिहार में सुशासन था ही नहीं।

अब अचानक से बिहार के चुनावी रणनीतिकार और मुख्यमंत्री एक दूसरे को ABC का ज्ञान देने लगे हैं। कारण, किसी के पास पहले ज्ञान था ही नहीं। वे तो सिर्फ सूचना से खेल रहे थे और सूचना के माध्यम से जनता का नेतृत्व कर रहे थे।

जब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का असर बढ़ा, ज्ञान की बात कम और प्रचार propeganda की बात अधिक हुई। लोगों ने प्रचार को ही सच मान लिया। कारण, सभी दल प्रोपेगेंडा में लगे थे। सभी चैनल किसी न किसी राजनीतिक दल के एजेण्डा के पीछे छिपे सच को जाने बिना या जानबूझकर उसके प्रोपेगेंडा को आगे करने में लगे रहे। लोग एक से ज्यादा चैनल देखकर भी ज्ञान की बात तक नहीं पहुँच रहे हैं, कारण ज्ञान तो अनुभव जनित है।

बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने सूचना के उपयोग से आमलोगों की रजनीतिक चेतना को प्रबंध करने का काम किया है।

ज्ञान की बात यह भी है कि बिहार के लोग राजनीतिक रूप से बहस खूब करते हैं ! किंतु बहस के बाद उसके समाधान को लाने में कम रुचि रखते हैं। आखिर बुद्धिजीवी का काम बहस करना ही तो है !

ये लोग भूल जाते हैं कि वे बिहार के ही बुद्धिजीवी थे जो इमरजेंसी के विरुद्ध बिहार से आन्दोलन की शुरुआत किये थे। आज यहाँ पर अघोषित इमरजेंसी है। इसमें विभिन्न दलों ने सामूहिक तौर पर मिलकर बिहार से लोकतंत्र का अपहरण कर लिया है और सुविधा अनुसार गठबंधन को बदलते रहते हैं। यह संभव हुआ है, सूचना के तंत्र को वश में करके। जनता मूक विद्रोह की मुद्रा में है, उसे कोई विकल्प नहीं मिल रहा।

ज्ञान का उद्गम अनुभव है और बिहार का राजनीतिक अनुभव यह है कि आज से तीन दशक पहले तक लोग अपनी राजनीतिक चेतना के लिए सूचना का नहीं बल्कि अपने अनुभव रूपी ज्ञान का उपयोग करते थे।

अब समय आ गया है कि बिहार में आम लोगों की राजनीतिक चेतना को जगाने के लिए नये राजनीतिक दलों के लिए जगह बनाया जा सके और राजनीतिक दलों के प्रोपेगेंडा का खुलासा किया जा सके। – एस के सिंह

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