कितने रंग जीवन के- डॉ प्रेरणा उबाले

कितने रंग जीवन के- डॉ प्रेरणा उबाले

‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ प्रेरणा उबाळे की एक कविता

कितने रंग जीवन के .

कितने रंग जीवन के …

बादल की गूंज
बारिश की बूंद बनकर,
बिजली की चमक
चिड़ियों की चहक बनकर,
फूलों-सी हसीन
पवन- सी अलमस्त बनकर,

सूर्य की आभा
चंद्रमा की शुभ्रता बनकर,
तारों की टिमटिमाहट
बालक की मुस्कुराहट बनकर,
समुद्र की लहर
नदी का किनारा बनकर,

मिट्टी की सुगंध
रागों की गुंजन बनकर,
अमरता की शाश्वती
नश्वरता की क्षणभंगुरता बनकर,
तुलसी की पवित्रता
दीपक की ज्योति बनकर
औ’ इंद्रधनु के सात रंग बनकर

जानने का करुँ मैं प्रयास,
कितने रंग जीवन के ?
रस पीना चाहूँ जीवन का,
पर विस्मय होता अधिक गहरा !

कौन है वह रंगशिल्पी ?
सृजी जिसने यह धरती !
बना दो मुझे ऐसी मूर्ति,
जिसमें हो ये रंग सारे
हो जाए तृप्ति जीवन की
हो जाए तृप्ति जीवन की l

डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale

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