रांची, 21 अगस्त 2022: झारखण्ड में भाजपा की स्थाई सरकार (वर्ष 2014-2019) के मुख्यमंत्री रघुबर दास थे। वर्ष 2016 के दौरान (CNT-SPT Act) सीएनटी-एसपीटी कानून में संशोधन का विरोध और पत्थलगड़ी का चलाए जा रहे आंदोलन को नई ऊंचाई पर ले जाया गया। इस आंदोलन को राज्य सरकार ग्रामसभा के अधिकार के भीतर राजसत्ता के विरोध के प्रतीक के तौर पर देख रही थी। आंदोलन के दौरान गुमला जिला में पत्थलगड़ी करने वालों पर 20 दिसंबर 2016 को मुक़दमे दर्ज किये गए थे।
झारखण्ड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शनिवार, 20 अगस्त 2022 को बड़ा फैसला लेते हुए पत्थलगड़ी आन्दोलन में दर्ज सभी केस वापस लेने से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध तथा पत्थलगड़ी करने के आरोप में गुमला थाना कांड संख्या 421/2016 में जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमे दायर किये गये थे, उन्हें वापस लेने से संबंधित गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी स्वीकृति दे दी है। इस पत्थलगड़ी आन्दोलन के बारे में सोशल मीडिया में चर्चा रही है कि यह आन्दोलन चर्च द्वारा प्रायोजित है जिसमे उसके पोषित ngo और कथित जन-संगठन शामिल हैं।
झारखंड में इस पत्थलगड़ी आन्दोलन ने राज्य में भाजपा की रघुबर दास सरकार के नाक में दम कर रखा था। चर्च समर्थित ngo और सामाजिक संगठन झारखण्ड के ग्रामसभाओं को अलग आदिवासी पहचान के लिए लगातार आंदोलित करती रही है। जैसे देश में अन्य तमाम तरह के पहचान के आन्दोलन खड़े किये जा रहे हैं।
चर्चा थी कि पिछले वर्षों में झारखण्ड (पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र) में केंद्र और राज्य सरकार के शासन के विरोध में आदिवासियों की पारंपरिक रीती-रिवाज पत्थलगड़ी को आदिवासी ग्राम-सभाओं को वैकल्पिक स्वतंत्र सत्ता के लिए राज्य-विरोधी आदिवासी-सत्ता के तौर पर स्थापित करने के सतत प्रयास के तौर पर खड़ा किया जा रहा है। जबकि पत्थलगड़ी में वंशानुगत नामों को क्रमशः दर्ज किया जानेवाला एक परंपरा है।
आदिवासी ग्रामीणों में पूर्वज और मरनी (मृत व्यक्ति) के यादों को सहेज कर रखने के लिए पत्थलगड़ी की परंपरा रही है। पत्थलगड़ी की परंपरा कुछ रूपों में गैर-आदिवासी समाजों में भी पाई गयी है। पूर्व में एक आदिवासी समुदाय द्वारा दुश्मनों कबीलों या समुदायों के खिलाफ लड़कर शहीद होने वाले, अंग्रेजों के शासनकाल में शहीद हुए आदिवासी वीर सपूतों के सम्मान में भी तथा अपने समुदाय के लिए मरने वाले के लिए भी सम्बंधित गावों में पत्थलगड़ी करने की परंपरा चलती रही है।
पत्थलगड़ी झारखंड के आदिवासी समुदाय और गांव में विधि-विधान तथा संस्कार के साथ करने की पुरानी परंपरा है। अंग्रजों के समय से दावे के तौर पर इस पत्थल में वंशानुगत जानकारी के साथ ही मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी भी दिया जाने लगा। (साभार सोशल मीडिया)