ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी , हाजी महबूब

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी , हाजी महबूब

चरमपंथी इस्लामी संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ PFI ने अदालत के ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मुक़दमे पर दिए फैसले पर कहा कि “इससे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के फासीवादी एजेंडे को हौसला मिलेगा। PFI ने फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि ये निर्णय पूजा स्थल अधिनियम 1991 की उपेक्षा करता है। अदालत के इस फैसले से अल्पसंख्यक अधिकारों पर फासीवादी हमलों को और ज्यादा बढ़ावा मिलेगा”।

वाराणसी, यूपी : श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद मुक़दमे में आये फैसले को लेकर बाबरी मस्जिद के पैरोकार रहे हाजी महबूब ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि “आरएसएस के साथ मिलकर हुकूमत अगर सब कुछ गलत करेगी, तो अब मुल्क में खून खराबा के अलावा और कुछ नहीं है”।

वाराणसी के जिला जज एके. विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की विचारणीयता को चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला उपासना स्थल अधिनियम और वक्फ अधिनियम के लिहाज से वर्जित नहीं है। लिहाजा वह इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी। जिला अदालत के ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मुक़दमे में फैसला के बाद हिंदू पक्ष मिठाइयां बांटकर खुशियां मना रहा है। हर-हर महादेव, काशी विश्वनाथ के जयकारे लग रहे हैं। तो मुस्लिम पक्ष के नेता लोगों को सांप्रदायिक उकसावे में लगे हुए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और पीआईएल मैन अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि “ज्ञानवापी मंदिर था, मंदिर है और वो हमेशा मंदिर ही रहेगा। क्योंकि मुस्लिम पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि मस्जिद की जमीन किसने दी” !

मीडिया सूत्रों के अनुसार मंगलवार को इसी मामले में बाबरी मस्जिद के पूर्व पैरोकार हाजी महबूब ने ज्ञानवापी मामले पर हिंदू पक्ष और आरएसएस को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि “आरएसएस के साथ मिलकर हुकूमत अगर सब कुछ गलत कर रही है। अयोध्या का मसला दूसरा था। हम लोगों ने अयोध्या के मसले पर खामोशी रह कर अदालत का फैसला माना और मामला खत्म हो गया। अयोध्या के मामले को लेकर हम लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन अगर ज्ञानवापी मामले को लेकर इस तरह का वाकया हुआ तो यह बहुत बुरा होगा। अगर ऐसा हुआ तो पूरे मुल्क में अब खून खराबा के अलावा कुछ नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद है और वह मस्जिद ही रहेगी. हम लोग इस फैसले को लेकर ऊपर की अदालत में जाएंगे”।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी CPIM ने मंगलवार को अपने बयान में कहा कि ज्ञानवापी मामले में जिला अदालत का फैसला उपासना स्थल कानून, 1991 का स्पष्ट उल्लंघन है। न्यायपालिका के एक हिस्से की तरफ से कानून की गलत व्याख्या किए जाने से इसके गंभीर नतीजे होंगे कि मानो यह कानून किसी चीज को रोकने के लिए था। वाम दल ने आरोप लगाया है कि इसमें कोई गोपनीय बात नहीं है कि बीजेपी इतिहास से छेड़छाड़ करती है, ताकि अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया जा सके।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया PFI के चेयरमैन ओएमए सलाम ने अपने ट्वीटर पर एक बयान जारी कर कहा कि “ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर रोजाना पूजा के लिए दी गई हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को बरकरार रखने के वाराणसी जिला जज के फैसले से अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारों पर फासीवादी हमलों को और ज्यादा मजबूती मिलेगी। इस फैसले में ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ यानी ‘पूजा स्थल अधिनियम’ को नज़रअंदाज़ किया गया है। जिसे धार्मिक संपत्तियों पर सांप्रदायिक राजनीति को रोकने के लिए पारित किया गया था। जैसा कि बाबरी मस्जिद के साथ हुआ। इसे सांप्रदायिक तत्वों ने बुरे उद्देश्य के साथ पेश किया था। देश को अब जरूरत है कि लोगों के एक वर्ग के द्वारा अन्य लोगों के धार्मिक स्थलों और संपत्तियों पर दावे करने का यह खतरनाक रुझान हमेशा के लिए खत्म हो। दुर्भाग्य से अदालत ने एक तंग नजरी भरा फैसला दिया है। ऐसा लगता है कि याचिका पर सुनवाई करते वक्त इस बात को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया गया कि किस तरह से सांप्रदायिक फासीवादियों ने भारतीय समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए दशकों तक बाबरी मस्जिद को इस्तेमाल किया। जिसके नतीजे में देशभर में कई निर्दोषों की जानें गईं और काफी तबाही भी मची”। (चित्र साभार गूगल)

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