रांची, 25 अगस्त 2022: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने झारखण्ड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत खनन लीज मामले में दोषी मानते हुये उन्हें विधायक के पद से अयोग्य घोषित करने किये जाने का सिफारिश राज्य के राज्यपाल रमेश बैस को सौंप दिया है।
निर्वाचन आयोग के इस सिफारिश के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी पर संकट गहरा गए हैं। इस समय इस खबर से झारखंड की राजनीति में उफान आ गया। इसके साथ JMM के लोगों ने ढोल-नगाड़े के साथ मुख्यमंत्री आवास पर आ जमे।
राज्यपाल दिल्ली से दोपहर दो बजे रांची पहुंचे। राज्यपाल ने मीडिया से कहा कि चुनाव आयोग के मंतव्य के वैधानिक पहलुओं का अध्ययन करा रहे हैं। मीडिया में संभावना जतायी जा रही है कि चुनाव आयोग के मंतव्य के अनुसार गवर्नर अपना फैसला शुक्रवार को दे सकते हैं। क्योंकि संवैधानिक प्रावधान के अनुसार राज्यपाल के लिए चुनाव आयोग का मंतव्य मानना बाध्यकारी है।
भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसी साल 10 फरवरी को पत्रकार वार्ता कर हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री रहते अपने नाम अनगड़ा में पत्थर खनन लीज लेने का मामला उठाया था। अगले दिन इस मामले को लेकर भाजपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राजभवन में राज्यपाल से मिला और हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत विधायक पद से अयोग्य ठहराने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने की मांग उठाई थी।
राज्यपाल ने इसके बाद नियमानुसार भारत निर्वाचन आयोग से इस पर परामर्श मांगा। चुनाव आयोग ने परामर्श देने से पहले सीएम सोरेन और भाजपा को दस मई तक अपना पक्ष रखने का नोटिस दिया था।
27 अप्रैल को दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिलकर राज्यपाल ने राज्य के राजनीतिक हालात से अवगत कराया। इस प्रकरण में आयोग ने 28 जून को सुनवाई शुरू की और 12 अगस्त तक मुख्य रूप से चार तारीखों पर बहस पूरी हो गयी।
आयोग में भाजपा ने दलील दी कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ खान मंत्री रहते हुये खुद अपने नाम रांची में पत्थर खनन लीज आवंटित कराया। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) इनपर लागू होती है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री को विधायकी से बेदखल करने की मांग की गई।
इसके जवाब में हेमंत सोरेन के अधिवक्ता ने कहा कि लीज आवंटित करने का मामला जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) के दायरे में नहीं आता है। इस आधार पर इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए। आयोग ने 12 अगस्त को सुनवाई पूरी करते हुये अपना मंतव्य देने से पहले 18 अगस्त तक दोनों पक्षों से लिखित जवाब मांगा। लिखित जवाब के बाद गुरुवार को आयोग ने अपना परामर्श राजभवन को दिया है।
दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बयान जारी कर कहा कि ‘कई मीडिया रिपोर्टों से जानकारी मिल रही है कि चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल को ‘एक विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की स्पष्ट रूप से चुनाव आयोग ने सिफारिश की है’। लेकिन, इस संबंध में चुनाव आयोग या राज्यपाल से सीएमओ को कोई पत्र नहीं मिला है।’
मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग के इस सिफारिश पर कहा कि “केंद्र सरकार संवैधानिक संस्थाओं को ख़त्म कर रही है लेकिन मेरे लिए जनता का समर्थन को कैसे ख़तम कर पाओगे !”
मुख्यमंत्री हेमंत ने आगे मीडिया से कहा कि “ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के एक सांसद और कुछ पत्रकारों सहित भाजपा नेताओं ने खुद ही चुनाव आयोग की रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया है। हालांकि यह मंतव्य सीलबंद होता है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय द्वारा संवैधानिक संस्थानों और केंद्रीय एजेंसियों का इस प्रकार शर्मनाक दुरुपयोग लोकतांत्रिक भारत में पहले कभी नहीं देखा गया है।” (साभार सोशल मिडिया)