कवि और कविता (http://कवि और कविता) श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की “पिता का प्यार, इसमें नई क्या बात !” …
■ पिता का प्यार, इसमें नई क्या बात ! – डॉ. प्रेरणा उबाळे
जाने के बाद भी
कल आए थे मिलने
हँसकर बात
की पूरी रात
संयोग से था फादर्स डे
कभी मनाया नहीं था हमने
हररोज ही था उनका दिन
इसमें नई क्या बात !
ऊपर रहते भी करते चिंता
पूछने
“कल किसने किया
था परेशान तुम्हें ?
बतलाओ मुझे …”
मैं कहती
“मेरी छोड़िए
अपनी कहे l
मुझसे इतनी दूर
रह पाते कैसे?”
मुस्कुराकर कहते –
“जैसे यहाँ वैसे ही वहाँ
हो गई अब पुरानी बात !”
दोनों ने गाया गीत साथ-साथ
“बादल आएँगे
तूफान आएगा
मच जाएगा शोर
पर प्रकृति के लिए
नई क्या बात !”
गरजने वाले बरसते नहीं
आँगन को टेढ़ा कहने वाले
कभी नाच पाते नहीं
इसमें नई क्या बात !
मेहनत तो है अपनी-अपनी
बुद्धि भी है अपनी-अपनी
भाग्य न छीन सकता कोई
संघर्ष बढ़ाए कोई जितना
पर तो कटेगा उनका अपना
झूठ कभी बिकता नहीं
सच कभी छुपता नहीं
नियति ही करती न्याय
इसमें नई क्या बात !
पड़ी रहने दो म्यान वहीं पर
तलवार तो है अपने हाथ
उठो, दुनिया को सिखा दो
अब नई बात !
उठो, दुनिया को सिखा दो
अब नई बात !
बात करते-करते
जाने का हो जाता वक़्त
स्वार्थी होकर
ले जाते दुख सारा
देते मुझे खुशियाँ अपार
पिता का यह प्यार
इसमें नई क्या बात !
इसमें नई क्या बात ! – डॉ. प्रेरणा उबाळे (16 जून 2024, पिता दिवस के अवसर पर)
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर पुणे-411005, महाराष्ट्र)