मुंबई : भारतीय साहित्य, कला व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान ‘शब्दसृष्टि’ का तृतीय ”डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान” विख्यात भारतीय साहित्यकार श्री वेद राही जी को प्रदान किया गया। श्री वेद राही जी का रचना संसार विस्तृत आयाम में फैला हुआ है, वह डोगरी, उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, फ़ारसी भाषा में लेखनरत कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार व अनुवादक हैं तथा फिल्मकार, फिल्म, धारावाहिक निर्माता, निर्देशक, पटकथा-संवाद लेखक भी हैं।
‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की सहसंस्थापक व पत्रिका की संस्थापक-संपादक तथा हिंदी की चर्चित लेखिका, कवयित्री, समीक्षक व अनुवादक के रूप में सुपरिचित स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (अमृत महोत्सवी वर्ष) के अवसर पर शनिवार, दिनांक 28 जनवरी 2023 को “शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान” तथा “मनोहर मीडिया” द्वारा ठाणे में वेद राही जी के निवास पर आयोजित छोटेखानी समारोह में “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ पत्रकार व “नवनीत” (हिंदी मासिक पत्रिका) के संपादक मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी के करकमलों द्वारा यह सम्मान प्रदान किया गया।
समारोह का अध्यक्षस्थान “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता व अनुवाद तपस्वी श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी ने विभूषित किया।
वेद राही जी ने डॉ. विजया जी के स्मृति को प्रणाम करते हुए अपना “मनोगत” व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के कई परिचय होते है: एक परिचय उसका वह है जो लोग उसके बारे में सोचते हैं। दूसरी पहचान उसकी वह है जो वह खुद अपने बारे में सोचता है और तीसरा परिचय वह है जो वास्तव में वह है।
जो वास्तव में वह है, उसकी मूर्ति उसके कामों ने घड़ी होती है। उन कामों की प्रेरणा उसे अपने अंदर से उपलब्ध होती है। आज तक मैंने जो लिखा है वह अपने अंदर की प्रेरणा से लिखा है।
उन्होंने कहा— व्यक्ति अपने बारे में ही गलतफहमी का शिकार होता है। अपने आपको धोखा देना सब से सरल और दिलचस्प काम है। यह जानते हुए भी मैं यह रिस्क इस समय ले रहा हूं।
अपनी अंदरूनी प्रेरणा का सुराग पाने के लिए मैंने एक कविता लिखी थी, जिसका शीर्षक था— “आदमखोर”।
मैं हूं आदमखोर
अपने आपको रखता हूं
घूंट घूंट पीकर उम्र
प्यास बुझाता हूं
श्वास श्वास में लगी है आग
जलता ही जाता हूं,
जलता ही जाता हूं
जब न रहेगी आग,
जब न रहेगी प्यास,
जब न रहेगी भूख
तब न रहूंगा मैं
तब न रहूंगा मैं
तब न रहूंगा मैं।
सोच की ऐसी शिद्दत मुझमें कैसे पैदा हुई यह कहना कठिन है।
उन्होंने अपना ‘जम्मू से मुंबई तक का सफ़रनामा’ प्रस्तुत करते हुए थोड़े भावुक हुए और उन्होंने कहा कि— “मुझे लगता था मैं एक भूल भुलैइआ में फंस गया हूं। अपने आसपास की हर चीज मुझे धोखा लगती थी। गली में चलते-चलते मैं अकसर खड़ा हो जाता था। सामने तो वही देखी-भाली हुई गली नजर आती थी पर मुझे पीछे छोड़ी हुई गली का भरोसा नहीं था कि वह वहां है। लगता था पीछे छूटा हुआ सब गायब हो रहा है। बड़ी बेचैनी और बेयकीनी का आलम था। धीरे-धीरे मैं उन भूल भुलैयियों से बाहर निकल आया पर भीतरी मनोवृत्तियों का अंत कभी नहीं हुआ।
महाकवि निराला की एक पंक्ति याद आती है— “बाहर कर दिया गया हूं, भीतर भर दिया गया हूं।” अपने “मनोगत” के अंत में उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया, जिसमें फरवरी, 2023 के “नवनीत” अंक में प्रकाशित चार कविताओं का (अंधेरा, प्यार, आदि) का समावेश था।
समारोह के प्रारंभ में ‘शब्दसृष्टि’ के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक डॉ. मनोहर जी ने अपना समयोचित वक्तव्य दिया। इसके बाद ‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की न्यासी-मानद सचिव व “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार) की संपादक सुश्री आशा रानी जी ने 28 जनवरी 2023 को डॉ. सूर्यबाला जी के करकमलों द्वारा प्रकाशित “विजयिता” ग्रंथ की प्रति श्री वेद राही जी को भेंट-स्वरूप दी तथा “सम्मान पत्र” पढ़ा। समारोह के प्रमुख अतिथि विश्वनाथ सचदेव जी तथा अध्यक्ष श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी द्वारा हुए समयोचित वक्तव्यों में श्री वेद राही जी के व्यक्तित्व व कर्तृत्व के विविध पहलूओं पर प्रकाश डाला।
“शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष व समारोह के संयोजक डॉ. अनिल यादवराव गायकवाड जी ने आभार-ज्ञापन किया तथा संपूर्ण समारोह का कुशलतापूर्वक सूत्र-संचालन “शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठान के न्यासी-कार्याध्यक्ष व “विजयिता” ग्रंथ के संपादक प्राचार्य मुकुंद आंधळकर जी ने किया। समारोह में श्री वेद राही जी के परिवार के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे। @DR.PrernaUbale