कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “पता ही नहीं चला ” …

पता ही नहीं चला- डॉ. प्रेरणा उबाळे

बड़ा बनने की कोशिश में
इन्सान खुद से कितना
अमानवीय बन गया
पता ही नहीं चला…

भौतिक सुखों की रस्सियाँ
खींचते-खींचते
आनंद-उल्लास का घडा
कहाँ छीन गया
पता ही नहीं चला …

अंतिम पड़ाव पर इन्सान सोचता
गंभीर बनता, रोता मायूसी ले
सूखे फूलों में भी होती है सुगंध
कभी समझ ही नहीं पाया
जीना होता है क्या
पता ही नहीं चला … डॉ. प्रेरणा उबाळे (17 मई 2024)

डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर पुणे-411005, महाराष्ट्र)

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