कनिष्क दुर्घटना 1985 में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडे के पिता का भी हाथ था !

कनिष्क दुर्घटना 1985 में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडे के पिता का भी हाथ था !

कनाडा के मांट्रियाल से नई दिल्ली आ रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में 9,400 मीटर की ऊंचाई पर बम विस्फोट से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में गिर गया था। इस वर्ष इस हादसे का 40 वर्ष हो रहा है। इस खालिस्तानी आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे।

कनिष्क विमान विस्फोट में आठ देश के नागरिक मारे गए थे। जिसमें विमानकर्मी सहित भारत के 22 नागरिक, कनाडा 270, यूके 27, यूएसएसआर 3, ब्राज़ील 2, यूएस 2, स्पेन 2, फिनलैंड 1, अर्जेंटीना 1 यानी कुल 329 यात्री मारे गए थे।

इस हमले की योजना की खुफिया सूचना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मिल रही थी। तब इंदिरा गांधी ने उस समय कनाडा के प्रधानमंत्री और आज के कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के पिता पियरे ट्रूडो से इस पर चर्चा की और बब्बर खालसा के संस्थापक खालिस्तानी आतंकवादी तलबिंदर सिंह परमार और सुखदेव सिंह बब्बर को भारत को सौंपने की बात कही। लेकिन पियरे ट्रुडो ने खालिस्तानी आतंकवादी को भारत को सौंपने से मना कर दिया था। और इसे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या (31 अक्टूबर 1984) की परिणीति तक पहुंचने दिया।

कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री पियरे ट्रुडो को इस सारी गतिविधि और योजना की जानकारी थी और उसने कनिष्क विमान विस्फोट जैसी जघन्य आतंकवादी हमला होने दिया। इससे यह तो जाहिर होता ही है कि जस्टिन ट्रुडो के पिता और तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री पियरे ट्रुडो का भी हाथ उस आतंकवादी घटना में शामिल था।

आज इस हादसे को याद किया जा रहा है। कनाडा सरकार द्वारा खालिस्तानी आतंकवादियों को प्रश्रय देने तथा उनके साथ खड़े होने के कारण भी इस अवसर पर भारत में कनिष्क विमान हादसे के कारणों पर चर्चा शुरू हो गई है। यह 1984 में स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को निकालने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इस हमले को अंजाम दिया गया था।

कनिष्क विमान विस्फोट के दिन ही एक घंटे के भीतर जापान की राजधानी टोक्यो के नरिता हवाई अड्डे पर एयर इंडिया के ही एक दुसरे विमान में विस्फोट कर दिया गया और सामान ढोने वाले दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी। इस घटना में बब्बर खालसा का इंदरजीत सिंह रेयात शामिल था। विमान में बम विस्फोट के समय वह लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे के पास ही था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए दोनों बम वैंकुवर के खालिस्तानी चरमपंथियों ने 1984 के स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कराने के लिए की गई सैन्य कार्रवाई का बदला था।

भारत में पंजाब को खालिस्तान नामक अलग सिख राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे बब्बर खालसा नामक सिख अलगाववादी संगठन के सदस्य मुख्य गुनहगार थे। बब्बर खालसा यूरोप और अमेरिका में ग़ैर-क़ानूनी आतंकवादी समूह के रूप में प्रतिबंधित था। इंदरजीत सिंह रेयात ने टोक्यो हादसे में सूटकेस में बम की बात स्वीकार की थी और उसे 1991 में 10 साल के लिए जेल की सजा दी गई थी। उसे फिर 5 साल की अतिरिक्त जेल की सजा दी गई। – अरूण प्रधान

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