बुद्ध तुझे रहा पुकार -डॉ. प्रेरणा उबाळे

बुद्ध तुझे रहा पुकार -डॉ. प्रेरणा उबाळे

‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता ‘बुद्ध तुझे रहा पुकार …’

बुद्ध तुझे रहा पुकार …

उठो, जागो,
भीतर से, कर्म से,
जागो आत्म प्राण से l

साक्षात्कार कर ज्ञानोज्जवलता से
सुधा निश्छलता की,
उठा दो ऊंची अपार l
शांति, प्रेम,अहिंसा
लक्षण मनुष्यता के
सीख लो पुनः तुम l

हे मनुष्य,
हिंसा, युद्ध, शस्त्र,
कैसे बने तुम्हारे मित्र ?
कोलाहल में खोई वाणी,
आत्मस्वर सुन पाते कभी ?
हँस लेते हो कैसे तुम,
होठों पर रख पाबंद?
ध्वंस के मग पर पग,
क्या तुम्हारे थरथराते नहीं ?
क्रंदन धरा पर व्याप्त
और मौन चीखें हैं भरी l
भौतिक सुख की आकुल दुनिया,
शांति तलाशते बाहर- भीतर l

उठो वीर ,
युद्ध तुम्हारा “आप”से हैं
शोणित हाथ नहीं प्रतीक सत्व का
चूर अहंकार सौम्य बन,
छ्द्मता को उतार फेंक l

उठ, हो जा खड़ा,
जल प्रलय में फँसा तू,
बुला रहा तुझे आत्म-प्रकाश

मत दौड़..
आंखें बंद कर विचरने दें, हृदय को-
मुक्त श्वास से, मन विश्वास से l
निर्मल-तरल जगत
जोहता तुम्हारी बाट है l

उठो, जागो,
सुखद प्रात: के लिए,
नित्य, अविराम,
बुद्ध तुझे रहा पुकार…

डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale

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