मैंने डॉलर के बारे में लिखा और ब्राह्मणवाद को उससे जोड़ा कि दोनों भौकाल पर चल रहे हैं।
भारत में ब्राह्मणवाद का सबसे सशक्त विरोध महात्मा गांधी ने किया। ब्राह्मणों को स्वतन्त्रता आंदोलन से जोड़ा, उन्हें ग्लोबल बनाया और नेहरू जैसे विद्वान को सामने कर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध समाजवादी व्यवस्था पेश की।
हाल के वर्षों में ब्राह्मणवाद का विरोध सशक्त जरूर दिखता है, लेकिन उसकी श्रेष्ठता मजबूत हुई है। ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद के संरक्षकों को महामानव और विलक्षण प्रतिभा वाले व्यक्ति व विचारधारा के रूप में स्थापित किया गया है। खासकर यह अम्बेडकरवादियों ने किया है।
अभी कांवड़ यात्रा को लेकर तुलनाएं चल रही हैं और कुछ वर्षों से हर साल चल रही हैं। ऐसा प्रचारित किया जाता है कि ब्राह्मणों और अपर कास्ट्स के बच्चे कांवड़ में नहीं जाते। यह सरासर झूठ है। उनकी कांवड़ में संख्या इसलिए कम दिखती है कि हिंदुओं में उनकी आबादी ही 15 % है। अपर कास्ट्स या ब्राह्मणों में भी कांवड़ को लेकर उसी तरह का उत्साह व श्रद्धा है, जैसा अन्य में। ब्राह्मण कोई विद्वान या अद्भुत नहीं हैं इस मामले में।
राजनीति में ब्राह्मणों को टैक्टिकल वोटर्स के रूप में स्थापित किया गया है। हकीकत में ऐसा नहीं है। कांग्रेस ने गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में स्वतन्त्रता के समय से ही ब्राह्मण जाति को किक आउट कर रखा था, अभी भी हाशिये पर हैं कोई टैक्टिकल नहीं चलता।
यूपी में भी करीब 27 साल सपा बसपा का शासन रहा। ब्राह्मण का कोई टैक्टिकल नहीं चला। सपा में जनेश्वर मिश्र बृज भूषण तिवारी सहित अनेक नेता थे उन्हें ब्राह्मण अपना नेता मानते थे। उसी तरह बसपा में सतीश मिश्र के टाइम रामवीर उपाध्याय नकुल दुबे वगैरा पावरफुल नेता थे, जिन्हें ब्राह्मण अपना नेता मानते थे। जैसे अन्य जातियों के लोग अपनी जाति देखकर वोट करते थे, वैसे ब्राह्मण भी करते थे। वह कोई महामानव, चाणक्य या रावण नहीं हैं। लेकिन राजनीति में उन्हें विद्वान के रूप में स्थापित किया गया है।
आइए अब भाजपा की मौजूदा सरकार की बात कर लें। नरेंद्र मोदी 2014 में एक उम्मीद बनकर आए। जनता ने उम्मीद की कि कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार से उसे मुक्ति मिलेगी। कनॉट प्लेस से लेकर पटना तक जो धड़ाम धुडुम बम फट रहे हैं उससे मुक्ति मिलेगी। महंगाई कंट्रोल में आएगी। मुसलमानों का तुष्टिकरण खत्म होगा। ब्राह्मणों ने भी यही उम्मीद की और भाजपा के साथ आ गए।
मोदी सरकार सबको चूतिया बना रही है। नौकरियां खत्म, व्यापार खत्म, महंगाई चरम पर। हर जगह निराशा। सबके अंग विशेष में मोदीजी ने पेट्रोल छुआ दिया है और लोग नाच और भौंक रहे हैं। ऐसे में अगर यह माना जाए कि ब्राह्मण या ब्राह्मणवादी लोग भाजपा के कट्टर समर्थक हैं तो उनसे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं हुआ। यह बुद्धिमानी तो नहीं है कि खुद तबाह होकर भाजपा भाजपा गाया जाए! अगर पद प्रतिष्ठा और सम्मान की बात करें तो यूपी जैसे बड़े राज्य में भाजपा के पास एक भी ब्राह्मण नेता नहीं है। एक शर्मा आर्काइव से निकालकर डिप्टी सीएम बनाए गए जो सीन से ही गायब हो चुके हैं और बसपा से ब्रजेश पाठक को आयात कर डिप्टी सीएम बना दिया गया।
ब्राह्मण नेताओ की क्षमता बस इतनी है कि अपने लूट खा लें, वो किसी का एक काम नहीं करा सकते हैं। पहले के दौर में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, कमलापति त्रिपाठी, गोविंद वल्लभ पंत, जनेश्वर मिश्र, सतीश मिश्र, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे ब्राह्मण नेता हुआ करते थे, उनकी तुलना आज के ब्राह्मण नेताओं से कर लें। खुद फील करेंगे कि ब्राह्मण कितने पानी मे हैं।
ऐसे में अगर ब्राह्मण यूपी में अपनी सरकार मान रहे हैं तो वह बुद्धिमान नही, बुद्धिमान की पूंछ हैं।
इसलिए कहा कि ब्राह्मणवाद और डॉलरवाद एक भौकाल है। इसे गांधीवाद से ही खत्म किया जा सकता है। लोग सच बोलें। गलत को गलत कहें। सही का साथ दें। सच्चाई स्वीकार कर लें। सहज रहें। किसी के श्रेष्ठ और खुद के कमजोर होने का डर निकाल दें। समस्या खत्म हो जाएगी।