नई दिल्ली : देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया साइट X पर इसकी घोषणा की है।

उन्होंने इसकी घोषणा करते हुए लिखा – “मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। मैंने भी उनसे बात की और इस सम्मान से सम्मानित होने पर उन्हें बधाई दी। भारत के विकास में हमारे दौर के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक रहे आडवाणी जी का योगदान अविस्मरणीय है। उन्हें भारत रत्न देने का फ़ैसला मेरे लिए बेहद भावुक घड़ी है। मुझे उनके साथ काम करने और उनसे सीखने का कई बार मौक़े मिले”।

लालकृष्ण आडवाणी का अटल बिहारी वाजपेई के साथ सत्ता में आने तक का सफ़र पहले ज़मीनी स्तर पर काम करने से शुरू हुआ। उन्होंने गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पदभार संभाला। लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी को आगे कभी भारत के प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। वर्ष 2009 में आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव लड़ी तो हार गई।

सरकार से सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने पर आडवाणी ने कहा, “मैं पूरी विनम्रता और कृतज्ञता के साथ भारत रत्न स्वीकार करता हूं। यह न केवल एक व्यक्ति के रूप में मेरे लिए सम्मान की बात है बल्कि उन आदर्शों और सिद्धांतों का भी सम्मान है जिसकी मैं पूरी ज़िंदगी अपनी पूरी क्षमता के साथ सेवा करने के लिए प्रेरित रहा हूं।”

आडवाणी ने आरएसएस से बात किए बिना ही मुंबई के शिवाजी पार्क में बीजेपी की एक बड़ी रैली में 11 नवंबर, 1995 को संबोधित करते हुए अचानक घोषणा कर दी कि अगले चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार होंगे। आडवाणी की इस घोषणा पर पूरी भाजपा, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद का नेतृत्व और पार्टी के कार्यकर्ता हैरान हो गए।

गोविंदाचार्य के प्रश्न ‘आरएसएस से सलाह लिए बिना आपने इतनी महत्वपूर्ण घोषणा क्यों कर दी?’ पर आडवाणी ने कहा था, ‘अगर मैंने संघ को इसके बारे में बताया होता तो वे इस बात को नहीं मानते।’ अशोक सिंघल VHP ने भी कहा था कि उन्हें “बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि आडवाणी इस तरह की घोषणा करेंगे। सभी कयास यही लगा रहे रहे थे कि स्वयं लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार होंगे”।

आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री माई पीपुल’ में लिखा कि “मैंने जो कुछ भी किया वो एक त्याग नहीं था। देश और पार्टी के लिए क्या बेहतर है के तर्कसंगत आकलन के बाद इस नतीजे पर पहुंचा था और तब अटल बिहारी वाजपेई जी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी एक सही फैसला होगा। हमें अपने वोट बढ़ाने की ज़रूरत है। उसके लिए हमें अटलजी की ज़रूरत है।”

आडवाणी वर्ष 1970 में राज्यसभा के सदस्य बने थे। वे 19 वर्ष बाद नवंबर 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते। वर्ष 1984 के चुनाव में बीजेपी के बुरी तरह हार गई। इसके बाद हीं वर्ष 1986 में उन्हें पार्टी में जान फूँकने और उसकी मुख्य विचारधारा को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी मिली। उनकी मेहनत और दूरदृष्टि से वर्ष 1990 तक बीजेपी को इस तरह खड़ा कर दिया कि कांग्रेस पार्टी को बराबर की चुनौती मिलने लगी।

भारतीय राजनीति में आडवाणी के दखल के बारे में निलंजन मुखोपाध्याय ने अपनी किताब ‘द आरएसएस आरकॉन्स ऑफ़ द इंडियन राइट’ में लिखा कि “1990 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा ने राम मंदिर के मुद्दे को भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु में ला दिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुओं के सबसे पूजनीय धर्मपुरुष राम की पृष्ठभूमि में हो रही रथ यात्रा के कारण उसे देखने और उसमें भाग लेने बहुत बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए लेकिन उस यात्रा में आडवाणी की उपस्थिति ने उस आंदोलन को वो वैधता प्रदान की जो इससे पहले कभी देखी नहीं गई थी”।

भारतीय राजनीति में वर्ष 1990 का साल पूरी तरह से आडवाणी का था। 23 अक्तूबर’90 को जब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार में समस्तीपुर में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की धारा 3 के तहत गिरफ़्तार किया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण को बताया कि बीजेपी विश्वनाथ प्रताप सिंह की गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले ली।

वर्ष 1992 के 6 दिसंबर को जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई तो आडवाणी वहां मौजूद थे। इंडियन एक्सप्रेस में आडवाणी ने दो लेख में यह स्वीकार किया था कि ‘6 दिसंबर, 1992 उनके जीवन का सबसे दुखद दिन था।

लेकिन भारतीय राजनीति और संसद में आडवाणी का शुरू किया राम मंदिर आंदोलन वर्ष 2024 में अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कर सफलता प्राप्त कर लिया। यह आनेवाले वर्षों में भाजपा को लंबी अवधि तक केंद्र की सत्ता में बने रहने में शायद मदद मिले। किंतु यह विडंबना ही है कि 22 जनवरी, 2024 को हुए राम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में ख़ुद आडवाणी अयोध्या में शामिल नहीं हो पाए।

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