तीस्ता-सीतलवाड़

तीस्ता-सीतलवाड़

आज 27 जून 2022 को तीस्ता सीतलवाड़ गिरफ्तार कर ली गयी। तीस्ता के ही पूर्व सहयोगी रईस खान ने उन पर कई गंभीर आर्थिक और अपराधिक आरोप लगाये थे, उसी के बिना पर तीस्ता को गिरफ्तार किआ गया। तीस्ता सीतलवाड़ अपने करियर की शुरुआत पत्रकार के रूप में की और 1993 के दंगों को कवर किया। उन्होंने जावेद आनंद से शादी की। वह बचपन से ही कम्युनिस्ट विचारक थीं और 90 के दशक में उसके एनजीओ के लिए फोर्ड फाउंडेशन से फंड मिलना शुरू हुआ था।

1 अप्रैल, 2002 में तीस्ता और उनके पति ने फादर सेड्रिक प्रकाश (एक कैथोलिक पुजारी),अनिल धारकर (एक पत्रकार), एलिक पद्मसी,शायर और फिल्म गीतकार जावेद अख्तर, विजय तेंदुलकर और राहुल बोस के साथ मिलकर “सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी)” नामक एक एनजीओ की स्थापना की। उसने गुजरात सरकार पर केस के बाद केस दर्ज करना शुरू कर दिया। उनका आरोप था कि 2002 के दंगों के लिए गुजरात सरकार जिम्मेदार थी। उसने मोदी सरकार के खिलाफ बहुत सारे मामले दर्ज किए।

तीस्ता-सीतलवाड़ पर रईस खान के आरोपों के दस्तावेज

गुजरात दंगे फरवरी, मार्च 2002 में हुए। अहमदाबाद में एक हिंदू भीड़ ने मुस्लिम बहुल गुलबर्गा सोसाइटी को जला दिया गया, जिसमें कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग जिंदा जल गए। उनकी पत्नी जकिया जाफरी इस नरसंहार में बाल-बाल बच गईं।

2004 में, कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आई। 2005 तक, राजमाता ने महसूस किया कि भारत में हिंदू धर्म का उदय हो रहा है और मोदी हिंदू धर्म के पोस्टर बॉय के रूप में उभर रहे थे, इसलिए वह मोदी को फंसाना चाहती थीं। इस षड्यंत्र रचने में उन्होंने 5 लोगों की एक टीम बनाई। 1. तीस्ता सीतलवाड ( न्यायालय प्रक्रिया ), 2. श्रीकुमार (पुलिस), 3. संजीव भट्ट (पुलिस), 4. मुकुल सिन्हा और 5. राणा अय्यूब (मीडिया)

श्रीकुमार सबसे कुख्यात पुलिस कार्यालय था। वह वह व्यक्ति था जिसने 1995 में राजमाता के आदेश पर वैज्ञानिक नंबी नारायण को झूठे मामले में फँसाया था, जिन्होंने क्रायोजेनिक इंजन विकसित किया था और भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका को धता बताते हुए स्वदेशी तकनीक को प्रयुक्त कर चौंका दिया था। दंगों के समय वे अहमदाबाद के पुलिस महानिदेशक थे।

मोदी को 3 चरणों में खत्म करने की योजना थी

चरण 1: मोदी पर दबाव बनाने के लिए मीडिया ट्रायल, चरण 2: यह साबित करने के लिए मुकदमेबाजी की प्रक्रिया गुजरात में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है और मुकदमे को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करें, चरण 3: सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को समाप्त करें।

सन् 2002 से राणा अय्यूब, राजदीप, बरखा, सागरिका, एनडीटीवी और अन्य वामपंथी मीडिया की टीम लगातार गुजरात दंगों पर समाचार प्रकाशित कर रही थी और तत्कालीन सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी के कर्मठ मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ‘नर व्याघ्र’ या ‘राक्षस’ के रूप में पेश कर रही थी। जून 2006 में, टीएस ने जकिया के माध्यम से अदालत में आवेदन दायर किया और मोदी और शाह सहित 63 लोगों पर मुकदमा चलाने की मांग की।

मोदी सरकार मुस्लिम शरणार्थियों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के लिए शिविर का आयोजन कर रही थी और तीस्ता सीतलवाड़ ने इसका लाभ उठाया। उसका एनजीओ इन प्राथमिकी शिविरों के माध्यम से बहुत सी फर्जी पीड़ितों को लाया और फर्जी प्राथमिकी दर्ज की। 100 फर्जी शिकायतें, फर्जी प्राथमिकी लिखित शिकायत के रूप में देने जकिया पुलिस स्टेशन में पहुंची।

लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा प्रशिक्षित जकिया ने कहा कि वह तब तक लिखित शिकायत नहीं देंगी, जब तक कि पुलिस मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज न करेगी। यह कानूनी रूप से असंभव था और पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की। सब कुछ तीस्ता सीतलवाड़ की योजना का हिस्सा था।मार्च, 2007 में वह गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जकिया की लिखित शिकायत के बिना पुलिस कैसे एफआईआर दर्ज कर सकती है। सब कुछ स्क्रिप्टेड प्लान का हिस्सा था। योजना गुजरात से आपराधिक मामले को स्थानांतरित कर किसी उपयुक्त राज्य में दर्ज कराने की योजना बनाई गई थी।

तीस्ता सीतलवाड़ दिसंबर, 2007 में सर्वोच्च न्यायालय में पहुंची और कहा कि उच्च न्यायालय उनकी नहीं सुन रहा है। योजना के अनुसार, 2008 में, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आफताब आलम ने गुजरात से सभी मामलों को ले लिया और जकिया द्वारा गुलबर्गा समाज हत्याकांड की जांच के लिए उन 63 लोगों की भूमिका की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया।

न्यायमूर्ति आफताब आलम को भी ‘राजमाता’ ने ही लगाया था। उन्होंने ठीक वैसा ही किया, जैसा तीस्ता मनोनुकूल न्यायिक निर्देश के लिए कहती थीं। उनकी बेटी तीस्ता सीतलवाड़ के द्वारा संचालित एनजीओ का हिस्सा थी और तीस्ता सीतलवाड़ ने उपकृत करने के लिए बहुत सारी विदेश यात्राएं को प्रायोजित किया।

उस समय टीम के एक अन्य सदस्य आईपीएस संजीव भट्ट ने भी बयान दिया था कि गुजरात दंगों के पीछे मोदी का हाथ था और वह 27, फरवरी 2002 की बैठक में मौजूद थे। मोदी ने एक बैठक में कहा था कि “हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने दो।”

न्यायमूर्ति आफताब आलम ने 2 एमिकस क्यूरी को नियुक्त किया जो उनकी जांच में एसआईटी की सहायता करेंगे और वे 2 कौन थे ? 1. प्रशांत भूषण 2. राजू रामचंद्रन

दोनों चरम वामपंथी और मोदी से नफरत करते हैं। राजू अजमल कसाब के वकील भी थे।एसआईटी सदस्यों को भी तीस्ता सीतलवाड़ ने नामांकित किया, लेकिन यहां उसने गलती की। उसने एक ‘गलत व्यक्ति’ का चयन कर लिया। आरके राघवन, पूर्व सीबीआई निदेशक को एसआईटी के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने उनकी सभी भयावह योजना को नष्ट कर दिया।

तमिलनाडु कैडर के राघवन सख्त ईमानदार व्यक्ति थे और विशेष जांच के गठन में उनकी प्रतिभा और ईमानदारी के कारण प्राथमिकता दी गई। गुजरात की फास्ट ट्रैक कोर्ट भी इस मामले की सुनवाई कर रही थी। और जब 2010 में केस बंद होने वाला था तो गुजरात फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश जोशी का तबादला कर दिया गया। बाद में उन्होंने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा नरेंद्र मोदी मोदी और अमित शाह को मामले में फंसाने के लिए उन पर भरपूर मानसिक दबाव डाला गया था।

इस बीच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच टीम ने मामले की जांच शुरू कर दी। एसआईटी ने बहुत से पीड़ितों और गवाहों की जांच की और पाया कि उनमें से अधिसंख्य तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा गढ़े गए थे। उन्होंने मोदी और शाह से भी घंटों पूछताछ की। नवंबर 2010 में उन्होंने अपनी पहली प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की। (यह आलेख रायटर्स समाचार एजेंसी के द्वारा याचित आलेख प्रस्तुत किया गया है।)

क्रमशः आगामी सप्ताहांत में।

© Padmasambhava Shrivastava

https://www.facebook.com/messenger_media/?thread_id=100009529453475&attachment_id=443521544286167&message_id=mid.%24cAAAABsq3KtyH18Y_FmBpoDWknnQJ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *