महंगाई-बाज़ार-में-कॉर्पोरेट-कंपनियों-के-मनमाने-हस्तक्षेप-है-जिम्मेदार-अरुण-प्रधान-

महंगाई-बाज़ार-में-कॉर्पोरेट-कंपनियों-के-मनमाने-हस्तक्षेप-है-जिम्मेदार-अरुण-प्रधान-

इस बार भी वर्ष के कुछ महीनों के बाद भी लगातार खाद्दान के बाज़ार में दाल और सब्जियों के कीमतों में महंगाई का ताप दिख रहा है। टमाटर और दूसरी सब्जियों के साथ अरहर दाल और अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही है। इस महंगाई के कारण ज्यादातर मध्यम आय वर्गीय परिवारों में भी रसोई का बजट बिगड़ गया है।

सरकार की नज़र में इसके कारण कुछ और हैं तथा महंगाई की मार झेल रही आम जनता में कुछ और है। सरकार और रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में करने के दावे कर रही है लेकिन महंगाई लोगों के जीवन और सपने को खाने में लगी है। सरकार की नीतियों से बड़ी कंपनियों का उत्पादन और बाज़ार पर पकड़ कसता जा रहा है किन्तु केंद्र की मोदी सरकार इन कंपनियों पर नियंत्रण नहीं लगा सकती। जब तक कि स्थिति सरकार के लिए संकट न खड़ी कर दे।

सरकारी आंकड़ों कहते हैं कि महंगाई की दर में लगातार गिरावट आ रही है, इस साल अप्रैल में ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक‘ पर आधारित महंगाई की दर 4.70 फीसदी और मार्च के 5.66 फीसदी की तुलना में मई में गिरकर 4.25 फीसदी रह गई। जाने माने अर्थशास्त्री सरकार के इन तर्कों से सहमत नहीं हैं। वे कह रहे हैं कि बाज़ार का महंगाई के पक्ष में यह तर्क कि मौसम इसका एक कारण है, सिर्फ एक तथ्य है। इससे भी बड़ा कारण भारत में कॉर्पोरेट के साथ कुछ बड़ी कंपनियों के बढ़ते दबदबे को बता रहे हैं। दूसरी तरफ यूक्रेम पर रूसी हमले के कारण पेट्रोल, खाद्य तेल, उर्वरक और खाद्यान्न आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा और महंगाई बेकाबू हो गई।

दुनिया की पांच सबसे बड़ी तेल कंपनियों ने 2022 में 200 अरब डॉलर से अधिक का मुनाफा कमाया। दुनिया में खाद्यान्न व्यापार का 75 फीसदी नियंत्रित करने वाली चार सबसे बड़ी कंपनियों ने बीते साल रेकॉर्डतोड़ मुनाफा कमाया। इन कंपनियों का मुनाफा दुनिया भर में चर्चा का विषय है।

अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार (JNU) कहते हैं कि इस वर्ष मई में महंगाई दर में गिरावट थोड़ी आई लेकिन कई जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की दर काफी ऊपर बनी हुई है। जैसे अनाजों और उनके उत्पादों की महंगाई दर अब भी दहाई अंकों (12.65 फीसदी) में बनी हुई है। मई में महंगाई दर में आई गिरावट जो दिख रही है वह अब से पिछले साल के ऊंचे दर की तुलना के कारण है। पिछले साल इस महीने में मुद्रास्फीति दर काफी ऊपर 7.04 फीसदी थी, और अभी 4.25 फीसदी और बढ़ गई।

आनन्द प्रधान, नवभारत टाइम्स में अपने हालिया लेख में कहते हैं कि मई से जून-जुलाई के बीच कई इलाकों में बेमौसमी और अत्यधिक बारिश से सब्जियों के उत्पादन और आपूर्ति पर बुरा असर पड़ने से टमाटर के साथ प्याज और दूसरी कई सब्जियों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। साथ में दालों खासकर अरहर दाल की कीमतों में उछाल आया हुआ है।

वे कहते हैं कि सवाल यह है कि रिजर्व बैंक की कोशिशों के बावजूद महंगाई काबू में क्यों नहीं आ रही है? आखिर इस महंगाई के लिए कौन जिम्मेदार है? रिजर्व बैंक और बहुतेरे अर्थशास्त्री इसके लिए मुख्यतः वैश्विक कारणों को जिम्मेदार मानते हैं। उनके मुताबिक, यह महंगाई कोविड महामारी के दौरान आम लोगों की मदद के लिए उदारता से बांटे गए भारी-भरकम प्रोत्साहन और सहायता पैकेज का नतीजा है, जिसके कारण बाजार में बहुत अधिक पैसा आ गया। इससे मांग बढ़ी लेकिन कोविड संबंधी प्रतिबंधों ने आपूर्ति को प्रभावित कर दिया और इससे कीमतें बढ़ने लगीं।

आनंद प्रधान प्रमुख पत्रिका इकॉनमिस्ट और अमेरिकी अर्थशास्त्री नौरिएल रोबिन का जिक्र कर कहते हैं कि अपने हाल के अंक में इकोनॉमिस्ट ने विकसित पश्चिमी देशों में मुद्रास्फीति की ऊंची दरों के लिए कॉरपोरेट लालच और मौजूदा महंगाई को लालचस्फीति (ग्रीडफ्लेशन) बताने को ‘बकवास” बताते हुए वैश्विक खाद्यान्न व्यापार से लेकर पेट्रोलियम कार्टेल तक, हर जगह मुट्ठी भर कंपनियों के दबदबे को जिम्मेदार कहा है। ये कंपनियां कोविड महामारी से लेकर यूक्रेन- रूस युद्ध तक हर मौके का इस्तेमाल छप्परफाड़ मुनाफे के लिए कर रही हैं। और जिससे बाजार में ओलिगोपोली (अल्पाधिकार) की स्थिति बन रही है।

अर्थशास्त्री विरल आचार्य का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एनएससी- न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी कॉन्फ्रेंस में पढ़े अपने एक शोधपत्र में आचार्य कहते हैं कि “भारत की पांच बड़ी कंपनियों की बाजार में अपने उत्पादों की कीमत तय करने की बढ़ती ताकत को इस बेकाबू महंगाई का कारण बताया”।

प्रो. अरुण कुमार और आनंद प्रधान कहते हैं कि घरेलू भारतीय बाज़ार में खाद्दान्न, सब्जी-फल, दूध आदि के भंडारण, थोक और खुदरा कारोबार में चंद बड़ी कंपनियों द्वारा कीमतों को मनमाने तरीके से निर्धारित करने में भूमिका बढ़ती जा रही है। कई मामलों में कीमतों में गिरावट को आम उपभोक्ताओं तक पहुंचने से भी ये कंपनियों रोक रही हैं। सरकार नाम की कोई संस्था इस मामले में सिर्फ आम लोगों के सामने देखने को है। सरकार की नीतियों के कारण ही ये कंपनियां आम उपभोक्ता के साथ यह खेल कर रही है। अगर सरकार इमानदार है तो महंगाई को काबू में करना है तो इसे अनदेखा करने या नकारने के बजाय रेग्युलेट करने पर ध्यान देना होगा।

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