– अरुण प्रधान (नई दिल्ली, 21 जून 2022)
सेना के पास देश में रेलवे से भी अधिक संपत्ति है| रक्षा मंत्रालय के अधिकार में देश भर में कुल 17.95 लाख एकड़ जमीन है, जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन देश भर में फैली 62 छावनियों से बाहर है। जानकर बताते हैं कि आने वाले संसद सत्र में एक ऐसा बिल पास होने जा रहा है जिसकी सहायता से देश भर में फैली हुई छावनी की जमीने नीलाम की जा सकती हैं वो भी औने पौने दाम पर| इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है| लाखों एकड़ रक्षा भूमि के सर्वेक्षण के लिए ड्रोन इमेजरी (ड्रोन के जरिये चित्र) आधारित सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग कर सर्वेक्षण को पूरा कर लिया गया है|
सेना से जुड़ी बाकि सरकारी संस्थाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है| कुछ दिन पहले की ख़बर है कि सेना की बेस वर्कशाप का संचालन निजी कंपनियों को सौंपा जा सकता है। इसके लिए प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है। शुरुआत दिल्ली की वर्कशाप से हो सकती है। कहने को वर्कशाप सरकार के नियंत्रण में ही रहेंगी, लेकिन उनका संचालन निजी कंपनियां करेंगी और जरूरत पड़ने पर वह बाहर का कार्य भी ले सकेंगी।
पिछले दिनों वर्ष 2021 में रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए साजो-सामान बनाने वाले ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ‘OFB’ (ओ.एफ.बी.) को भंग कर दिया। भाजपा शासित केंद्र सरकार के इस फैसले से 220 वर्ष पुराने देश भर में फैले 41 आयुध कारखानों में काम करने वाले 76,000 कर्मचारियों का भविष्य भी दोराहे पर आ गया, क्योंकि यह निश्चित नहीं कि अब इन सरकारी कंपनियों को सेना का कोई काम मिलेगा और अगर सेना का काम नहीं मिलेगा तो इन कंपनियों में ताले लग जाएंगे। इनके कर्मचारी संगठनों का केंद्र सरकार के इस फैसले पर कहना था कि आज सरकार ने इन कारखानों को निगम बनाया है, लेकिन जब कल इसे काम नहीं मिलेगा और यह घाटे में चल रहे होंगे तो इन्हें आराम से बेचा जा सकता है। इन सरकारी आयुध कारखानों की मौजूदा जमीन की कीमत लगभग दो लाख करोड़ रुपए की है, किन्तु केंद्र सरकार इस 62,000 एकड़ जमीन की कीमत मात्र 72,000 करोड़ लगा रही है|
इन योजनाओं को लागु करने के लिए जनता के सामने “मेक इन इण्डिया” जैसे जुमले फेंक कर प्रधानमंत्री मोदी जी अपने मित्र उद्योगपतियों की फक्ट्रियां खुलवा चुके हैं| उपरोक्त सरकारी आयुध कारखानों का निगमीकरण कर उन्हे निजी हाथों में ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी है और इसीलिए बहुत सारे उद्योगपति सरकार की अग्निविर योजना का जमकर समर्थन कर रहे हैं|
इन सब बातों और अग्निपथ व अग्निवीरों योजना को समझने के लिए सरकार के मनोविज्ञान को समझना होगा ! मनुस्य अपने इर्दगिर्द एक मनोविज्ञान से जुड़ा होता है, एक अपनापन उसे समाज से भी जोड़ता है और सुरक्षित भी महसूस करता है| होता यह है कि किसी निजी संस्थान या कारखाने में कुछ वर्ष लगातार काम करने से उस संस्था के साथ एक लगाव महसूस करने लगते हैं, उस संस्थान को अपना ही मानने लगते हैं| और, फौज के साथ तो राष्ट्र सेवा और देश की रक्षा जैसी विरासत जुड़ी हुई है| अभी जो फौजी है वो अपनी रेजीमेंट से अपनी सेना से अटूट जुड़ाव महसूस करते हैं| अन्य संस्थानों सहित सेना में भी नई भर्तियों का निकाला जाना वर्षो से बंद है और अभी जो अग्निवीर योजना निकाली गई है उसमे सैनिक मात्र चार साल की सेवा देकर रिटायर कर दिए जाएंगे| वह सेना के साथ वह जुड़ाव बिल्कुल भी महसूस न कर पाएंगे जो दशकों की सेवा के बाद एक जवान को महसूस होता है| इसलिए सेना से जुड़े संस्थानों को बेचे जाने पर उन्हें कोई आपत्ती भी नही होगी और सरकार यही चाहती है, ‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी’! यह अग्निपथ पर अग्निवीरों को दौड़ाने का मकसद सेना का आमूल-चुल निजीकरण तो नहीं !!
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