खाद्य सुरक्षा तथा मानक अधिनियम, 2006 (FSSAI) UPA सरकार में भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसे दिनांक 23 अगस्‍त, 2006 को राष्‍ट्रपति की अनुमति प्राप्‍त हुई। प्रत्येक रेस्तरां या ढाबा संचालक को अपनी फर्म का नाम, अपना नाम व लाइसेंस संख्या लिखना खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार अनिवार्य है। जागो ग्राहक जागो के अंतर्गत सूचना पट पर मूल्य सूची भी लगाना अनिवार्य है।

जबकि इस्लामिक संस्थाओं द्वारा तय किया जा रहा है कि मुसलमान उपभोक्ता को इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हलाल वस्तुएं ही उपलब्ध हो। हलाल खाना खाने वाला कोई भी व्यक्ति इस्लामी मान्यताओं का पालन कर रहा है। और यह उसका मानवीय तथा भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकार भी है। जिसे भारत की प्रत्येक सरकार सुनिश्चित करती है।

अब जब सोशल मीडिया की नेटवर्क के कारण मुसलमान दुकानदारों, ढाबों, होटलों और उसमें कार्यरत मुस्लिम समुदाय के कर्मचारियों द्वारा खाने को दूषित करने, उसमें थूकने, मूतने, आदि की तस्वीरें और घटनाएं सामने आ रही है तो किसी को भी सतर्क होने की जरूरत है। यह एक व्यक्ति का अधिकार है कि वह ऐसे प्रयोग किए गए और दूषित किए गए भोजन को न खाएं और ऐसे विक्रेता व कर्मचारी को सजा दिलाया जा सके !

बाजार में ढाबों, होटलों, रेस्तरां आदि जगहों पर उपलब्ध भोजन शुद्ध, स्वच्छ और पवित्र हो यह सबका मौलिक अधिकार है। इसी क्रम में उपभोक्ता का यह भी अधिकार है कि भोजन वह किससे खरीद, ताकि वह अपने संतुष्टि के अनुसार उसका मूल्य चुकाए। उसी तरह जैसे शाकाहारियों को शुद्धता का अधिकार है जो आम सामाजिक व्यवहार में है और कई मुस्लिम भी शाकाहारी हैं और वे इस शुद्धता और पवित्रता का अपने धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पालन करते हैं। उसी अनुसार जिस प्रकार इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं में सुअर का मांस हराम है निषिद्ध है और इसे पालन करने वाला मुस्लिम व्यक्ति हलाल वस्तुएं खोजता है।

अब भारत जैसे सभी धार्मिक मान्यताओं की इज्जत करने वाला और सद्भाव-सहिष्णुता का पालन-पोषण करने वाला हिंदू जनमानस के सामने इस्लामिक संगठनों द्वारा हलाल सर्टिफाइड वस्तुएं रख कर सांप्रदायिकता के भेद को कंक्रीट किया जा रहा है। अपनी सांप्रदायिक क्रिया की प्रतिक्रिया को सांप्रदायिक शेप देने की साजिश की जा रही है।

विपक्ष के सभी चेहरे सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता को सांप्रदायिक दंगों में झोंकने के लिए तैयार बैठे हैं। इनके इतिहास उठा कर देख लें। अब के समय में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस नेतृत्व वाली INDI गठबंधन की समाजवादी पार्टी, राजद, टीएमसी, डीएमके, एनसीपी, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी आदि सभी पार्टी कही जानेवाले पारिवारिक और पॉकेट संगठन अपने को ‘निर्दोष और पवित्र’ दिखाने में लगी हैं।

भारतीय संसद भारतीय नागरिकों और आम उपभोक्ताओं के खाद्य सुरक्षा और मानक वस्तु प्राप्त किए जाने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2006 में एक कानून बनाती है। जिसके अंतर्गत उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग करने के लिए ‘जागो ग्राहक जागो’ का राष्ट्रीय अभियान भी चलाया जाता रहा है। किंतु कांग्रेस से लेकर विपक्ष की हर कथित पार्टी उत्तर प्रदेश सरकार दावा कांवड़ यात्रा में इस उपभोक्ता अधिकार को सुनिश्चित करने के अभियान को भी सांप्रदायिक रंग देने लग गई है। क्या अखिलेश यादव, क्या बहन मायावती जी, जो चुनाव को सीधा सांप्रदायिक और हिंदू विरोध पर केंद्रित करते हैं वे इस मौके को भी क्यों खाली जाने देंगे !

भारत की जमीन को अपवित्र कहना भारत के साथ सांप्रदायिक घृणा है। हलाल खाना अपने आप में सांप्रदायिक है। और, हिंदू जनमानस के भोजन की शुद्धता-पवित्रता के अधिकार का विरोध करते हुए सांप्रदायिक कहना वास्तव में एक घृणित सांप्रदायिकता है ! हलाल को दूसरे धर्मों के लोगों को इसे न खाने का पूरा अधिकार है !!

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