किसान कन्वेंशन, Ranchi

रांची, 15 सितम्बर 2021: खेती बचाओ, किसानी बचाओ, देश बचाओ के नारे पर दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आन्दोलन के साथ झारखण्ड राज्य के किसानों को एकजुट करने का प्रयास झारखण्ड की वामपंथी पार्टियाँ संयुक्त तौर पर कर रही हैं|

देश के किसान आंदोलन के साथ झारखंड के किसान भी साथ साथ अपने जल जंगल जमीन खनिज की रक्षा के लिए आंदोलनरत हैं।14 सितम्बर रांची के पुरुलिया रोड स्थित सामाजिक विकास केंद्र SDC, झारखंड के किसानों का कॉन्वेंसन हुआ।

आगामी 27 सितंबर को संयुक्त किसान संगठनों के द्वारा आहूत भारत बंद झारखंड में भी एतिहासिक रूप से सफल बना कर केंद्र सरकार को किसानों के पक्ष में काला कृषि कानून वापस लेने को मजबूर किया जाएगा। किसान कॉन्वेंसन में अखिल भारतीय किसान महसभा के महासचिव राजारम सिंह, पूर्व सांसद भूवनेश्वर मेहता, माकपाके किसाननेता कृष्णा प्रसाद, मासस के किसान नेता हलधर महतो, एक्टू के प्रदेश महासचिव शुभेंदू सेन, सीटू नेता मिथिलेश सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला, पुरन महतो, भूवनेश्वर केवट समेत कई नेताओ ने कॉन्वेंसन को संबोधित किया।

अखिल भारतीय किसान महसभा के महासचिव राजारम सिंह ने अपने भाषण में कहा कि “देश के किसान आंदोलन गति अब राजनीतिक दिशा तय कर रही है। केंद्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति संवेदनहीन है। भूख के आधार पर रोटी का भाव तय करने वाली सरकार को देश के किसान सबक सिखाएगें। मोदी जी ने किसानों को आंदोलनजीवी बना दिया है अब आंदोलन ही खाना आंदोलन ही पीना और आंदोलन में ही रहना किसानों की नियति बन गई है। किसानों की निर्णायक लड़ाई निरंकुश मोदी सरकार के लिए घातक साबित होगा।

एक्टू के प्रदेश महासचिव शुभेंदू सेन अपने संबोधन में कहा की मोदी सरकार की किसान आंदोलन के प्रति अगर यही रवैया रहा तो देश के भी किसान भी यह तय कर लिया है या तो कृषि कानून वापस होगा या सरकार वापस जाएगी।

पूर्व सांसद भूवनेश्वर मेहता ने कहा कि अबतक 596 किसानो की मौत के बाद भी सरकार नहीं जागी तो देश के इतिहास में आज़ादी के आंदोलन के बाद कंपनियों की दलाली करने की दूसरी इतिहास लिखी जाएगी। सब कुछ याद रखा जाएगा। मोदी जी ने काला कृषि कानून को लेकर पूरे देश के किसानों को एकजुट कर दिया है।

सीटू नेता मिथिलेश सिंह ने अपने भाषण में कहा कि झारखण्ड आंदोलनों की धरती है। विरसा सिद्धू_ कान्हु की धरती झारखंड भी देश के किसानों के साथसाथ अपने जंगल जमीन खनिज बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। कृषि कानून के खिलाफ लड़ाई का मतलब देश की संविधान, लोकतन्त्र, भोजन का अधिकार और कॉरपोरेट लूट से देश को बचाने की लडाई है।

भूवनेश्वर केवट ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों ने देश तोड़ने वाली ताकत के खिलाफ एकता और भाईचारे को बचाने का काम किया है। किसान आंदोलन और लम्बे समय तक चला तो बंगाल से शुरू किसान आंदोलन का आक्रोश अब यूपी में भी होने लगा है, मोदी सरकार को अच्छे दिन के बजाय बुरे दिन देखने होगें।

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